मनचाहे आर्थिक परिणाम नहीं देने वाले मुक्त व्यापार समझौतों की समीक्षा कर सकती है सरकार : एस जयशंकर

सरकार मनचाहे आर्थिक परिणाम नहीं दे पाने वाले मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) की समीक्षा कर सकती है। यह बात दूरदर्शन पर एक चर्चा में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कही। उन्होंने कहा कि भारत ने विभिन्न देशों के साथ जो एफटीए किया है, उससे देश की अर्थव्यवस्था को क्षमता निर्माण का लाभ नहीं मिल सका है।

भारत ने श्रीलंका के साथ 1998 में, अफगानिस्तान के साथ 2003 में, थाईलैंड के साथ 2004 में, सिंगापुर के साथ 2005 में, नेपाल के साथ 2009 में, दक्षिण कोरिया के साथ 2009 में, मलेशिया के साथ 2011 में और जापान के साथ 2011 में एफटीए किया है। इसके अलावा भारत ने दो क्षेत्रीय व्यापार समझौता भी किया है। ये हैं 2004 का साफ्टा और 2010 का भारत-आसियान समझौता। साफ्टा में अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका सदस्य हैं। आसियान समूह में इंडोनेशिया, थाईलैंड, मलेशिया, सिंगापुर, फिलीपींस, वियतनाम, ब्रुनेई, म्यांमार, कंबोडिया और लाओस शामिल हैं। एशिया से बाहर भारत ने चीली के साथ 2006 में और दक्षिण अमेरिकी व्यापारिक गुट मरकोसुर के साथ 2004 में एफटीए किया है।

दुनिया के साथ व्यापार करने के लिए एफटीए एकमात्र तरीका नहीं

उन्होंने हालांकि कहा कि सभी एफटीए एक जैसे नहीं हैं। दुनिया के साथ व्यापार करने के कई तरीके हो सकते हैं। एफटीए एकमात्र तरीका नहीं है। उन्होंने कहा कि कोरोनावायरस महामारी के बाद संरक्षणवाद ज्यादा हावी हो गया है। एफटीए में दो देश एक दूसरे के लिए शुल्क घटा लेते हैं, जबकि अन्य देशों के साथ शुल्क जारी रहता है।

अंतरराष्ट्र्रीय स्थिति का फायदा लेने के लिए अवसरों का उपयोग करना होगा

उन्होंने भारत और इसके पड़ोसी देशों के आपसी संबंध को जटिल बताया। उन्होंने कहा कि ये देश भारत का इस्तेमाल आमतौर पर पंचिंग बैग की तरह करते हैं। उन्होंने कहा कि विभिन्न देशों की घरेलू राजनीति से जो अस्थिरता पैदा होती है, उसका निदान स्ट्रक्चरल लिंकेज बनाकर किया जा सकता है। यदि हमें अंतरराष्ट्रीय स्थिति का फायदा उठाना है, तो हमें देश से बाहर पैदा हो रहे अवसरों का उपयोग करना होगा।

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मंत्री ने कहा, भारत ने विभिन्न देशों के साथ जो एफटीए किया है, उससे देश की अर्थव्यवस्था को क्षमता निर्माण का लाभ नहीं मिल सका है