महाकुंभ का सबसे बड़ा दिन, मौनी अमावस्या आज:प्रयागराज न जा पाएं तो घर पर तीर्थ स्नान करने की विधि

आज (29 जनवरी) माघ मास की अमावस्या है, इसका नाम है मौनी अमावस्या। ये महाकुंभ का सबसे बड़ा दिन है। प्रयागराज के कुंभ में आज दूसरा अमृत (शाही) स्नान है। नदी स्नान और धर्म-कर्म के नजरिए से मौनी अमावस्या का महत्व काफी अधिक है। इस पर्व पर मौन रहकर धर्म-कर्म करने की और पूरे दिन मौन रहने की परंपरा है। मौनी अमावस्या क्यों है महाकुंभ का सबसे बड़ा दिन, इस बारे में शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का कहना है- तीर्थ राज प्रयाग में तब कुंभ नाम का योग होता है जब माघ महीने में सूर्य और चंद्रमा मकर राशि में हो और वृष राशि में गुरु चले गए हों। उसी दिन अमावस्या तिथि हो तो मुख्य रूप से वही कुंभ है। मौन व्रत रखना तपस्या है इस अमावस्या पर ब्रह्म, पद्म और वायु पुराण में मौन व्रत करने की बात कही गई है। इनके अनुसार माघ महीने की अमावस्या पर भगवान विष्णु और पितरों की पूजा के साथ इस दिन मौन व्रत रखने से महापुण्य मिलता है। श्रीमद् भगवद गीता में मौन को तप कहा गया है। माना जाता है कि इस तिथि पर मौन व्रत रखने से तप के समान पुण्य फल मिलता है। अपनी इच्छाओं पर काबू पाने के लिए युगों से मौन व्रत किया जा रहा है। इस व्रत से मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। इससे डिप्रेशन, चिंता और तनाव में कमी आती है। इससे सेल्फ कंट्रोल और सहनशक्ति भी बढ़ती है। मौन व्रत यानी साइलेंस फास्टिंग पर रिसर्च मौन व्रत को रेगुलर प्रैक्टिस नहीं करना चाहिए, वर्ना डिप्रेशन बढ़ सकता है। मौन व्रत महीने में एक बार या दो महीने में एक बार कर सकते हैं। – डॉ. प्रीतेश गौतम, (एमडी) साइकेट्रिस्ट, जेके हॉस्पिटल, भोपाल मौन व्रत पर संतों के विचार सबसे ज्यादा अपराध वाणी की वजह से ही होते हैं। किसी की निंदा करना, किसी के लिए कठोर वचन बोलना, व्यर्थ की बातें करना, आदतें हमारी आध्यात्मिक और शारीरिक ऊर्जा को खत्म करती हैं। मौन रहेंगे तो इन बुराइयों से बच जाएंगे। जब बहुत ज्यादा बोलने की इच्छा हो तो नाम जप करें। व्यर्थ बात करने वाला अंर्तमुखी नहीं हो सकता है और अंर्तमुख के बिना परमात्मा की कृपा नहीं मिलती है। – प्रेमानंद महाराज, वृंदावन हम जितने भी शब्द बोलते हैं, वही बातें 50 प्रतिशत कम शब्दों में कहने की कोशिश करनी चाहिए। ऐसा करने से आप हर बात के लिए सचेत हो जाएंगे। मौन का अभ्यास करना चाहिए। हमें कम से कम थोड़ी देर मौन रहने का अभ्यास करना चाहिए। – सद्गुरु भारतीय संस्कृति में मौन को तप कहा गया है। मौन के समय आपकी संपूर्ण शक्तियां, दिव्याताओं का जागरण होता है। आपकी ऊर्जा भी चैतन्य होकर आपके आसपास एक दिव्यता को प्रकट करती है, लेकिन जहां मौन बड़ा साधन है, वहीं आपका बोलना भी एक कला है। आप अच्छा बोलना सीखें। उसमें माधुर्य, सत्यता, प्रियता और दृढ़ विश्वास रहे। इसलिए बोलने में अथवा अभिव्यक्ति में दिव्यता रहे। – स्वामी अवधेशानंद जी गिरि तीर्थ स्नान का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व