सवाल- मेरी उम्र 38 साल है और मैं देहरादून में रहती हूं। जब मैं 14 साल की थी तो एक बार हम लोग रात में घर की छत पर खड़े थे। तभी नीचे से गोलियां चलने की आवाज आई। मेरी दीदी, जो तब 19 साल की थीं, वो नीचे झांककर देखने लगीं। तभी बंदूक की गोलियों के कुछ छर्रे आकर उनकी आंखों में लग गए। उनकी आंखों की रोशनी जाती रही। दीदी का इलाज कराने में हमारी सारी जमा-पूंजी और परिवार का सुख-चैन खत्म हो गया। नीचे जिन लोगों के बीच फायरिंग हुई थी, वो शायद दो गैंग्स की आपसी लड़ाई थी, जिससे मेरे परिवार और दीदी का कोई लेना-देना नहीं था। लेकिन उसकी कीमत हमने चुकाई। उस घटना के इतने सालों बाद भी बंदूक, गोली या किसी भी तरह के वॉयलेंस को लेकर मेरे मन में एक ट्रॉमा सा बैठ गया है। मुझे आज भी कई बार उस रात के सपने आते हैं, जब दीदी को गोली लगी थी। मैं फिल्म में भी गोली चलते देख लूं तो घबरा जाती हूं। पहलगाम जैसी हिंसा की खबर से मेरा ट्रॉमा और ट्रिगर हो जाता है। 28 साल की उम्र में मैंने कुछ वक्त तक थेरेपी भी ली थी। डॉक्टर का कहना था कि मैं PTSD से जूझ रही हूं। थेरेपी बहुत महंगी होती है। मैं रेगुलर थेरेपी अफोर्ड नहीं कर सकती। मुझे क्या करना चाहिए। एक्सपर्ट– डॉ. द्रोण शर्मा, कंसल्टेंट साइकेट्रिस्ट, आयरलैंड, यूके। यूके, आयरिश और जिब्राल्टर मेडिकल काउंसिल के मेंबर। जवाब– थेरेपिस्ट ने आपकी कंडीशन को PTSD के रूप में डायग्नोस किया है। PTSD यानी पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर। ये तब होता है, जब किसी बुरी घटना के कारण हुआ ट्रॉमा घटना के बीत जाने के बाद भी मानसिक और भावनात्मक रूप से परेशान करता है और कई बार उसकी वजह से फिजिकल सिम्प्टम भी दिखाई देने लगते है। PTSD क्यों होता है? अगर मैं आपसे पूछूं कि आपने अपना 18वां जन्मदिन कैसे मनाया था या पिछले साल अपनी मैरिज एनीवर्सरी पर आपने क्या किया था तो मुमकिन है कि आप उस दिन की एक–एक घटना मुझे विस्तार से बता दें। हमने केक काटा, घूमने गए, उस दिन घर पर अमुक–अमुक दोस्त आए। वहीं अगर मैं आपसे ये पूछूं कि उसके एक दिन पहले या चार दिन बाद आपने क्या किया था या अभी परसों आपने क्या किया था तो आपको याद नहीं होगा। दरअसल होता ये है कि कोई भी ओवरव्हेल्मिंग घटना, चाहे वो पॉजिटिव हो या निगेटिव, वो हमारे दिमाग में एक नक्शे की तरह छप जाती है, इसलिए याद रह जाती है। उस वक्त कॉर्टिसोल हॉर्मोन का लेवल हाई होता है, जबकि सामान्य दिनों में ऐसा नहीं होता। PTSD के कॉमन लक्षण PTSD के कॉमन सिम्पटम कुछ इस प्रकार हो सकते हैं। आपको देखना है कि इसमें से कौन सी बात आप पर लागू होती है। सेल्फ डायग्नोसिस कैसे करें? ऊपर ग्राफिक में दिए गए लक्षणों के अलावा हम आपको 17 सवालों की लिस्ट दे रहे हैं। खुद से ये सवाल पूछें। हर सवाल का ईमानदारी से जवाब दें। अपने जवाब को नीचे दिए गए स्केल पर परखें और उसके अकॉर्डिंग नंबर दें। जैसे अगर सवाल का आपका जवाब बिल्कुल नहीं है तो 0 नंबर दें और बहुत ज्यादा है तो 4 नंबर दें। इस तरह हर सवाल के लिए खुद को नंबर दें। 0 – बिल्कुल नहीं 1 – बहुत मामूली 2 – औसत 3 – थोड़ा ज्यादा 4 – बहुत ज्यादा PTSD सेल्फ डायग्नोसिस के लिए खुद से पूछें ये सवाल सेल्फ डायग्नोसिस का रिजल्ट सारे सवालों के जवाब के हिसाब से खुद को नंबर देेें। फिर अपने स्कोर को नीचे ग्राफिक में दिए स्कोर चार्ट से मिलाएं। अगर आपका स्कोर 19 से कम है तो आपके PTSD के लक्षण बहुत मामूली या ना के बराबर हैं। अगर आपका स्कोर 40 से ज्यादा आता है तो आपको थेरेपी और ट्रीटमेंट की जरूरत है। सेल्फ थेरेपी कैसे करें? आपने लिखा है कि आपने कुछ वक्त तक थेरेपी भी की थी, लेकिन बहुत महंगा होने के कारण आप अब उसे अफोर्ड नहीं कर पा रही हैं। इसलिए मैं यहां आपको चार हफ्तों का सेल्फ थेरेपी का एक प्लान दे रहा हूं। पहला हफ्ता स्टेबलाइजिंग और ग्राउंडिंग (स्थिर और शांत होना) लक्ष्य: डेली प्रैक्टिस : 1. किसी सुरक्षित स्थान की कल्पना करना (रोज 10 मिनट) चुपचाप बैठें और एक सुरक्षित, शांत स्थान जैसे जंगल, समुद्र तट, झील, कमरे की कल्पना करें। गहरी सांस लें। अपनी सारी इंद्रियों को फोकस करें। 2. योग करना (रोज 15 मिनट) योग में प्रतिदिन ये आसन करें प्रत्येक आसन के दौरान सांस पर ध्यान केंद्रित करें। ऐसा आसन न करें, जिसमें असुरक्षित महसूस हो। 3. एक व्यवस्थित डेली रूटीन बनाएं 4. रोज पॉजिटिव जर्नलिंग करें यानी डायरी लिखें रोज की फीलिंग्स डायरी में नोट करें, जैसेकि- दूसरा हफ्ता प्रोसेस करना और अपने विचारों को रीस्ट्रक्चर करना लक्ष्य : डेली प्रैक्टिस : 1. राइटिंग एक्सपोजर थेरेपी (रोज 15 मिनट) 2. कॉग्निटिव रीस्ट्रक्चरिंग 3. योग करना (रोज 20 मिनट) 4. रोज पॉजिटिव जर्नलिंग करें यानी डायरी लिखें अपनी डायरी में उन बातों को लिखें, जिन्हें आप कंट्रोल कर सकते और बदल सकते हैं। जैसेकि- तीसरा हफ्ता अपनी भावनाओं को रेगुलेट करना और रिलैक्स करना लक्ष्य: डेली प्रैक्टिस : 1. ब्रीदिंग एक्सरसाइज (प्राणायाम- रोज 10 मिनट) 2. माइंडफुल मेडिटेशन (रोज 15 मिनट) 3. रोज पॉजिटिव जर्नलिंग यानी डायरी लिखना चौथा हफ्ता अपनी भावनाओं को रेगुलेट करना और रिलैक्स करना लक्ष्य : दैनिक अभ्यास : 1. बिहेवियरल एक्टिवेशन (30 मिनट/दिन) 2. खुद को याद दिलाना 3. योग (रोज 30 मिनट) 4. ग्रैटीट्यूड जर्नल हर रात सोने से पहले डायरी में उन 3 चीजों के बारे में लिखना, जिसके लिए आप कृतज्ञ हैं। …………………………….. मेंटल हेल्थ को लेकर ये खबर भी पढ़ें… मेंटल हेल्थ– मम्मी–पापा मेरे डिवोर्स के खिलाफ हैं:मैं पेरेंट्स को ये कैसे समझाऊं कि शक्की आदमी के साथ नहीं रह सकती मैं 35 साल की डिवोर्स्ड महिला हूं। पांच साल पहले मेरी अरेंज मैरिज हुई थी, जो सिर्फ डेढ़ साल चली। लड़के के घरवाले बहुत कंजरवेटिव और कंट्रोलिंग थे। लड़का भी बहुत शक्की था। मेरा डिवोर्स काफी मुश्किल था क्योंकि मेरे घरवालों ने भी शुरू-शुरू में एडजेस्टमेंट करने का ही दबाव बनाया। मैं एक आईटी प्रोफशनल हूं और गुड़गांव में जॉब कर रही हूं। पापा अभी भी मुझे ऐसे फील करवाते हैं कि जैसे मेरी वजह से समाज में उनकी नाक कट गई। तलाकशुदा होना उनके लिए कलंक की तरह है। इन सबका असर मेरी मेंटल हेल्थ पर पड़ रहा है। कई बार पैनिक अटैक भी हो चुके हैं। मैं एंग्जाइटी की दवाइयां ले रही हूं। मैं क्या करूं। पूरी खबर पढ़िए…