सवाल– मैं 35 साल की डिवोर्स्ड महिला हूं। पांच साल पहले मेरी अरेंज मैरिज हुई थी, जो सिर्फ डेढ़ साल चली। लड़के के घरवाले बहुत कंजरवेटिव और कंट्रोलिंग थे। लड़का भी बहुत शक्की था। मेरा डिवोर्स काफी मुश्किल था क्योंकि मेरे घरवालों ने भी शुरू-शुरू में एडजेस्टमेंट करने का ही दबाव बनाया। मेरे पापा आर्मी में रह चुके हैं और काफी पुराने ख्यालों के हैं। हालांकि उन्होंने बेटियों की एजूकेशन में कोई कमी नहीं की, लेकिन कास्ट, मैरिज वगैरह को लेकर उनकी सोच बहुत रूढि़वादी है। मैं एक आईटी प्रोफशनल हूं और गुड़गांव में जॉब कर रही हूं। पापा अभी भी मुझे ऐसे फील करवाते हैं कि जैसे मेरी वजह से समाज में उनकी नाक कट गई। तलाकशुदा होना उनके लिए कलंक की तरह है। वो मेरी तकलीफ नहीं समझते। उन्हें सिर्फ अपनी इज्जत की परवाह है। इन सबका असर मेरी मेंटल हेल्थ पर पड़ रहा है। कई बार पैनिक अटैक भी हो चुके हैं। मैं एंग्जाइटी की दवाइयां ले रही हूं। मैं क्या करूं। ऐसा नहीं कि मैं दूसरी शादी नहीं करना चाहती, लेकिन अब मुझे शादी के ख्याल से डर लगता है। मुझे क्या करना चाहिए। एक्सपर्ट– डॉ. द्रोण शर्मा, कंसल्टेंट साइकेट्रिस्ट, आयरलैंड, यूके। यूके, आयरिश और जिब्राल्टर मेडिकल काउंसिल के मेंबर। जवाब– अपने जवाब की शुरुआत मैं एक फैक्ट के साथ करना चाहूंगा। हमारा समाज अभी जिस सांस्कृतिक बदलाव के दौर से गुजर रहा है, वहां ये बहुत सारी लड़कियों की कहानी है। हमने लड़कियों को पढ़ाने और आत्मनिर्भर बनाने के आइडिया को तो स्वीकार कर लिया है, लेकिन अभी भी उन्हें अपने जीवन की एजेंसी और जिम्मेदारी देने के लिए तैयार नहीं हैं। हमें लगता है कि घर की इज्जत की रक्षा करना लड़की की ही जिम्मेदारी है। और ये इज्जत भी बहुत अजीब सी कोई चीज है, जो हमारी खुशी और वेलबीइंग से ज्यादा इंपॉर्टेंट है। डिवोर्स से गुजरना आसान नहीं होता। ये खासतौर पर तब और ज्यादा मुश्किल हो जाता है, जब आसपास सपोर्ट सिस्टम न हो, फैमिली आपके फैसले के साथ न हो। लेकिन ऐसे में पर्सनल इमोशनल हीलिंग और क्रिटिकल हो जाती है। जैसाकि आपने लिखा है कि डिवोर्स के लिए आपको जिम्मेदार ठहराया जा रहा है और पिता आपके इस फैसले के साथ नहीं थे। ऐसे में हमें परिवार के साथ आपके रिश्ते और पेरेटिंग से जुड़े कुछ सवालों के जवाब भी ढूंढने होंगे। इमोशनल हीलिंग तब सबसे कारगर होती है, जब वो कलेक्टिव हो, जब परिवार भी उस हीलिंग प्रोसेस का हिस्सा हो, लेकिन ऐसा होना हर बार आसान नहीं होता। इसलिए आपको एक बार सचमुच गहराई से उतरकर इस सवाल का जवाब ढूंढना होगा कि क्या ये सिर्फ वक्ती मामला था या आपके पेरेंट्स सचमुच टॉक्सिक हैं। क्या पेरेंट्स की तरफ से नाराजगी और असहयोग आपने पहली बार सिर्फ डिवोर्स के समय महसूस किया या उसके पहले भी उनका व्यवहार हमेशा कंट्रोल करने, आलोचना करने और सिर्फ अपनी बात मनवाने वाला ही था। इसका उत्तर ढूंढने के लिए आपको खुद से कुछ सवाल पूछने होंगे और बाकायदा उनका जवाब एक डायरी में लिखना होगा। हमारे मन में जो छवियां या यादें होती हैं, वो कई बार कनफ्यूजिंग और धुंधली हो सकती हैं। इसलिए सोच को क्लैरिटी देने के लिए जरूरी है कि हर चीज को कागज पर लिखकर धैर्य से उसके बारे में विचार किया जाए। नीचे ग्राफिक में दिए 10 सवालों का जवाब एक कागज पर विस्तार से लिखिए। बचपन से लेकर अब तक की पुरानी घटनाओं को याद करिए और देखिए कि आपका उत्तर हां है या ना। अगर इन सवालों में ऊपर के 8 सवालों का जवाब हां है तो शायद पेरेंट्स की तरफ से कोई उम्मीद रखना अब बेमानी होगा। वे टॉक्सिक पेरेंटिंग का क्लासिक उदाहरण हैं। लेकिन अगर आखिर के दो सवालों का जवाब भी हां में है तो पेरेंट्स के साथ बातचीत करने और उन्हें अपना पक्ष समझाने की उम्मीद बची हुई है। लेकिन दोनों ही स्थितियों में आपको ये चंद बातें याद रखने की जरूरत है– इन चीजों को लेकर दिमाग में एक क्लैरिटी होना बहुत जरूरी है। इस क्लैरिटी के साथ सेल्फ हीलिंग के लिए आपको ये बातें जेहन में रखनी चाहिए– सेल्फ हीलिंग की शुरुआत इन सारे सवालों पर एक क्लैरिटी हासिल करने के साथ होगी। जैसे–जैसे आप परिवार से उम्मीद और निर्भरता छोड़ेंगी और अपने जीवन की एजेंसी खुद अपने हाथों में लेंगी तो आगे का रास्ता खुद–ब–खुद ज्यादा साफ नजर आने लगेगा। हालांकि किसी नए रिश्ते की शुुरुआत से पहले खुद से कुछ और सवाल पूछने भी जरूरी हैं। जैसेकि– आप एक एजूकेटेड और फाइनेंशियली इंडीपेंडेंट महिला हैं। आईटी प्रोफशनल हैं और गुड़गांव में जॉब कर रही हैं। जो इमोशनल ट्रॉमा आपको भीतर से परेशान कर रहा है, आपको उसे हील करना है, ताकि आप यह साफ–साफ देख पाएं कि सामने एक अच्छा, ब्राइट फ्यूचर है। आपको अपने डर से लड़ना होगा, रेड फ्लैग्स देखना सीखना होगा। पुरानी बातों को भुलाकर, उनसे सबक सीखकर ही आगे बढ़ा जा सकता है।
ये खबर भी पढ़ें… फैटी लिवर का कारण बन सकती है ये आदत:जब परेशानी में ज्यादा खाना लगे अच्छा, तो समझें आप इमोशनल ईटिंग के शिकार हैं मेरी उम्र 33 साल है और मैं रांची में रहता हूं। मुझे लगता है कि पिछले डेढ़ साल से मैं इमोशनल ईटिंग का शिकार हूं। जब भी कोई तनाव या परेशानी होती है तो मैं पूरा पैकेट चिप्स, केक, कुकीज या आइसक्रीम का पूरा बॉक्स खा जाता हूं। इस वजह से मेरा वजन भी बढ़ रहा है। हाल ही में ब्लड टेस्ट कराया तो उसमें फैटी लिवर निकला। पूरा दिन कंट्रोल भी करता हूं, लेकिन फिर रात होते-होते स्नैक्स का पैकेट खोल ही लेता हूं। क्या ये मेंटल हेल्थ इश्यू है? पूरी खबर पढ़िए…
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