अमेरिका में मोटापे की दर बढ़ने के साथ कोरोना वायरस पर नियंत्रण में उसकी भूमिका पेचीदा वैज्ञानिक सवाल बन गया है। अभी हाल में कई अध्ययनों से पता लगा है कि अधिक वजन वाले लोग दूसरों के मुकाबले बीमारी के गंभीर हमले का शिकार हो सकते हैं। इंसान और जानवरों की कोशिकाओं पर प्रयोगों से पता लगा है कि अधिक चर्बी किस तरह शरीर के इम्यून सिस्टम को अस्त-व्यस्त कर सकती है।
मोटापे के कारण हाई बीपी और डायबिटीज से भी जूझ रहे
मोटापे एवं कोविड-19 के बीच संबंध पेचीदा और रहस्यमय है। हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज जैसी कई बीमारियों का संबंध अधिक वजन से है। इन बीमारियों से प्रभावित व्यक्तियों के लिए कोविड-19 से लड़ना कठिन है। विशेषज्ञ कहते हैं, शरीर में चर्बी की अधिक मात्रा फेफड़ों के निचले हिस्सों को दबा सकती है। इससे सांस लेने में मुश्किल होती है।
मोटे लोगों के खून में जल्दी थक्के बनते हैं। शरीर की धमनियों में रक्त प्रवाह रुकता है और कोशिकाओं,ऊतकों को ऑक्सीजन कम मिलती है। अमेरिका में अश्वेत और लेटिन अमेरिकी देशों से आए लोगों में मोटापे का अनुपात बहुत अधिक है। अन्य लोगों की तुलना में इनके वायरस से प्रभावित होने का जोखिम अधिक है।
अलग डोज देना पड़ेगी
नार्थ केरोलिना यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर डॉ. बेक बताती हैं, 30 साल के अधिक वजन वाले कुछ लोगों में पाई गई इम्यून कोशिकाएं 80 वर्षीय लोगों जैसी थी। इस समस्या से कोरोना वायरस की वैक्सीन के प्रभाव में अंतर पड़ सकता है। मोटे लोगों को वैक्सीन की अलग तरह की डोज देना पड़ेगी। कुछ वैक्सीन निर्माता संभवत: इस पहलू पर काम न करें।
मोटे लोगों को भर्ती होने का खतरा 50 फीसदी से अधिक
कोविड-19 और मोटापे के बीच संबंध चिंताजनक है। पिछले माह प्रकाशित एक रिसर्च में बताया गया है कि कोरोना वायरस से प्रभावित मोटे लोगों के अस्पताल में भर्ती होने की दोगुना और मरने की आशंका 50 प्रतिशत अधिक होती है।
एक अन्य स्टडी के अनुसार अमेरिका में भर्ती 17 हजार कोरोना मरीजों के बीच 77 प्रतिशत से अधिक मोटे या ज्यादा वजन के लोग थे। 2009 में एच1एन1 फ्लू के समय पता लगा कि मोटे लोगों के अस्पताल में दाखिल होने और मरने की अधिक आशंका रही। अधिक वजन वाले लोगों पर फ्लू की वैक्सीन ज्यादा असरकारक नहीं पाई गई थी।