आज वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी है। इसे मोहिनी एकादशी कहा जाता है। स्कंद पुराण के वैष्णव खंड के मुताबिक समुद्र मंथन से निकले अमृत की रक्षा करने के लिए इस दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप लिया था। इस एकादशी का व्रत करने वाले को एक दिन पहले यानी दशमी तिथि की रात से ही व्रत के नियमों का पालन करना होता है। इस व्रत में सिर्फ फलाहार किया जाता है। वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष में होने से ये भगवान विष्णु की पूजा, व्रत और दान के लिए ये दिन बहुत ही खास माना जाता है। इस दिन नियम संयम से रहकर किए गए पूजा-पाठ और दान का फल कई यज्ञ के जितना होता है। ये एकादशी व्रत सतयुग से चला आ रहा है। सतयुग में कौटिन्य मुनि ने इस व्रत के बारे में शिकारी को बताया था। व्रत करने से उस शिकारी के पाप खत्म हो गए। इसके बाद त्रेतायुग में महर्षि वशिष्ठ ने ये कथा श्रीराम को सुनाई। फिर द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इस व्रत के बारे में बताया। तब से मोहिनी एकादशी व्रत चला आ रहा है। पूजा और व्रत की विधि मोहिनी एकादशी का महत्व
मान्यता है कि वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत रखने से मानसिक और शारीरिक मजबूती मिलती है। इस उपवास से मोह खत्म हो जाता है, इसलिए इसे मोहिनी एकादशी कहते हैं। कुछ ग्रंथों में बताया गया है कि इस एकादशी का व्रत करने से गौदान के बराबर पुण्य मिलता है। ये व्रत हर तरह के पाप खत्म कर आकर्षण बढ़ाता है। ये व्रत करने से ख्याति बढ़ती है।
मान्यता है कि वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत रखने से मानसिक और शारीरिक मजबूती मिलती है। इस उपवास से मोह खत्म हो जाता है, इसलिए इसे मोहिनी एकादशी कहते हैं। कुछ ग्रंथों में बताया गया है कि इस एकादशी का व्रत करने से गौदान के बराबर पुण्य मिलता है। ये व्रत हर तरह के पाप खत्म कर आकर्षण बढ़ाता है। ये व्रत करने से ख्याति बढ़ती है।