युद्ध शुरू होने से पहले देवराज इंद्र ने अर्जुन से कहा कि दिव्यास्त्र पाने के लिए शिवजी को प्रसन्न करो, अर्जुन कर रहे थे तप, तभी वहां एक वनवासी आ गया

अभी सावन चल रहा है। इस माह में शिव पूजा करने का और शिव कथा पढ़ने-सुनने का विशेष महत्व है। महाभारत में भी शिवजी से जुड़े प्रसंग हैं। यहां जानिए अर्जुन और शिवजी के युद्ध का प्रसंग…

शिवजी को प्रसन्न करने के लिए अर्जुन ने किया था तप

महाभारत में युद्ध टालने के सभी प्रयास विफल हो गए थे। कौरव और पांडवों ने युद्ध के लिए तैयारियां शुरू कर दी थीं। अर्जुन दिव्यास्त्र पाना चाहते थे। इसके लिए अर्जुन इंद्रकील पर्वत पर पहुंच गए। तब वहां देवराज इंद्र प्रकट हुए और उन्होंने अर्जुन से कहा कि दिव्यास्त्र के लिए तुम्हें शिवजी को प्रसन्न करना होगा।

इंद्रदेव की बात मानकर अर्जुन ने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए तपस्या शुरू कर दी। जहां अर्जुन तप कर रहे थे, वहां मूक नाम का एक असुर सूअर का रूप धारण करके पहुंच गया। वह अर्जुन को मार डालना चाहता था।

जंगली सूअर को देखते ही उन्होंने अपने धनुष पर बाण चढ़ा लिया और जैसे ही वे बाण छोड़ने वाले थे, उसी समय एक किरात यानी वनवासी के भेष में शिवजी वहां प्रकट हुए। वनवासी ने अर्जुन को बाण चलाने से रोक दिया।

वनवासी ने अर्जुन से कहा कि इस सूअर पर मेरा अधिकार है, क्योंकि तुमसे पहले मैंने इसे अपना लक्ष्य बनाया था। इसलिए तुम इसे नहीं मार सकते, लेकिन अर्जुन ने ये बात नहीं मानी और धनुष से बाण छोड़ दिया। वनवासी ने भी तुरंत ही एक बाण सूअर की ओर छोड़ दिया।

वनवासी और अर्जुन के बीच शुरू हो गया युद्ध

अर्जुन और वनवासी के बाण एक साथ उस सूअर को लगे और वह मर गया। इसके बाद अर्जुन उस वनवासी के पास गए और कहा कि ये सूअर मेरा लक्ष्य था, इस पर आपने बाण क्यों मारा? इस तरह वनवासी और अर्जुन दोनों ही उस सूअर पर अपना-अपना अधिकार जताने लगे। अर्जुन ये बात नहीं जानते थे कि उस वनवासी के वेश में स्वयं शिवजी ही हैं। वाद-विवाद बढ़ गया और दोनों एक-दूसरे से युद्ध करने के लिए तैयार हो गए।

अर्जुन ने वनवासी पर कई बाण चलाए, लेकिन एक भी बाण वनवासी को नहीं लगा। बहुत प्रयासों के बाद भी अर्जुन वनवासी से जीत नहीं पाए। जब वनवासी ने भी प्रहार किए तो अर्जुन उन प्रहारों को सहन नहीं कर पाए और अचेत हो गए। कुछ देर बाद अर्जुन को होश आया तो उन्होंने मिट्टी का एक शिवलिंग बनाया और उस पर एक माला चढ़ाई। अर्जुन ने देखा कि जो माला शिवलिंग पर चढ़ाई थी, वह उस वनवासी के गले में दिखाई दे रही है। ये देखकर अर्जुन समझ गए कि शिवजी ने ही वनवासी की वेश धारण किया है। ये जानने के बाद अर्जुन ने शिवजी की आराधना की। शिवजी भी अर्जुन के पराक्रम से प्रसन्न हुए और पाशुपतास्त्र दिया। शिवजी की प्रसन्नता के बाद अर्जुन देवराज के इंद्र के पास गए और उनसे भी दिव्यास्त्र प्राप्त किए।

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