राइट ऑफ वाले कर्ज एनपीए नहीं होते हैं लेकिन इनकी वसूली भी नहीं कर पा रहे हैं बैंक, 7-8 प्रतिशत की महज हो रही है रिकवरी

सरकार और भारतीय रिजव बैंक (आरबीआई) ने बार-बार यह कहा है कि कर्ज का राइट ऑफ मतलब एनपीए या माफी नहीं होती है। इसका मतलब है कि इस तरह के कर्ज की वसूली होती रहेगी। पर आंकड़े बताते हैं कि बैंकों द्वारा राइट ऑफ किया गया कर्ज एक तरह से डूबा हुआ ही है। बस यह घोषित नहीं होता है कि यह डूब गया है। बैंक केवल 7-8 प्रतिशत की रिकवरी कर पाते हैं।

राइट ऑफ मतलब वसूली ठंडे बस्ते में

दरअसल जब भी किसी कर्ज को राइट ऑफ किया जाता है तो उसकी वसूली ठंडे बस्ते में चली जाती है। सूचना अधिकार (आरटीआई) के तहत मिली जानकारी के मुताबिक देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने 2012 से 2020 के दौरान एक लाख 23 हजार 432 करोड़ रुपए का कर्ज राइट ऑफ किया है। 31 मार्च 2020 तक इसमें से केवल 8,969 करोड़ रुपए की वसूली हुई है। यानी 7.26 प्रतिशत। बाकी की रकम की वसूली आज तक नहीं हो पाई है।

एसबीआई के बड़े कर्जदार ये हैं

एसबीआई के जो बड़े कर्ज खोर हैं उसमें वीडियोकॉन, आलोक इंडस्ट्रीज और भूषण स्टील का समावेश है। इसी तरह से बैंक ऑफ बड़ौदा ने पिछले 8 सालों में (2012-2020) में 10 हजार 457 करोड़ रुपए कर्ज को राइट ऑफ किया। इसमें से उसने अब तक महज 607 करोड़ रुपए की वसूली की है। यानी यह वसूली महज 5 प्रतिशत रही है।

यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने किया 26072 करोड़ का राइट ऑफ

सरकारी बैंक यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने इसी तरह से 26 हजार 72 करोड़ रुपए के कर्ज को राइट ऑफ किया। हालांकि बैंक ने कितनी वसूली की, यह नहीं बताया, पर अनुमान यह है कि इसने भी 7-8 प्रतिशत की ही वसूली की है। बैंक ऑफ महाराष्ट्र ने बताया कि उसने इसी दौरान 14,641 करोड़ रुपए के कर्ज को राइट ऑफ किया है। इसमें से उसने 252 करोड़ रुपए की वसूली की है। यानी यह कुल राइट ऑफ का महज 4 प्रतिशत है।

आईडीबीआई ने किया 45,693 करोड़ का राइट ऑफ

डूबने की कगार पर पहुंचे आईडीबीआई बैंक की मेजोरिटी हिस्सेदारी हाल में एलआईसी ने लिया है। इसने 8 सालों में 45,693 करोड़ रुपए के कर्ज को राइट ऑफ किया है। इसमें से इसने 8 प्रतिशत की वसूली की है। यानी यह करीबन 3,704 करोड़ रुपए रिकवर कर पाया है। हालांकि यह बैंकों द्वारा वसूली तो है, पर इस वसूली पर बैंकों ने खर्च भी किया है। उदाहरण के दौर पर आईडीबीआई को इस प्रक्रिया पर 29 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च करना पड़ा है।

राइट ऑफ अमूमन 100 करोड़ से ऊपर का कर्ज होता है

बता दें कि बैंक बड़े कर्जदारों के कर्ज को राइट ऑफ करते हैं। यह राइट ऑफ 100 करोड़ रुपए से ज्यादा के कर्ज को किया जाता है। पिछले कुछ समय में देश में ऐसे सैकड़ों कर्जदार हैं जिन्होंने बैंकों से 100 करोड़ से ज्यादा का कर्ज लिया है। बाद में जब वसूली नहीं हुई तो उन्हें बैंकों ने राइट ऑफ कर दिया। यानी यह कर्ज न तो एनपीए है न बैंकों ने वसूली की है। जब तक पैसा मिलेगा तब तक ठीक है। हर बैंक इस तरह से बड़े कर्ज की रिकवरी न कर पाने की स्थिति में राइट ऑफ करते हैं।

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Write-off loans are not NPAs, but banks are not able to recover them, only 7-8 percent is getting recovery