राजस्थान का सियासी संकट अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। विधानसभा स्पीकर सीपी जोशी ने हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। यह कहा है कि बागी विधायकों को कारण बताओ नोटिस भेजने का अधिकार स्पीकर को है। कोई भी अदालत इसकी समीक्षा नहीं कर सकती।
क्या है यह पूरा मामला? हाईकोर्ट ने क्या कहा था, जिस पर भड़के स्पीकर?
- सचिन पायलट समेत 19 विधायकों ने पार्टी के विधायक दल की बैठक से दूरी बनाई थी। 14 जुलाई को इसकी शिकायत पार्टी के चीफ व्हिप महेश जोशी ने स्पीकर सीपी जोशी से की थी।
- स्पीकर सीपी जोशी ने 14 जुलाई को इन 19 विधायकों को कारण बताओ नोटिस जारी किए। उनसे कहा कि 17 जुलाई तक बताएं कि उनकी विधानसभा में सदस्यता क्यों न बर्खास्त की जाए?
- विधायकों ने स्पीकर के नोटिस का जवाब देने की बजाय राजस्थान हाईकोर्ट की शरण ली। हाईकोर्ट ने 21 जुलाई को इस मामले में सुनवाई की और नतीजा 24 जुलाई तक सुरक्षित रख लिया।
- साथ ही, हाईकोर्ट ने यह भी कह दिया कि 24 जुलाई तक स्पीकर इन विधायकों के खिलाफ कार्यवाही नहीं कर सकते। इसी बात को लेकर स्पीकर सीपी जोशी भड़के हुए हैं और सुप्रीम कोर्ट गए हैं।
क्या है विधानसभा स्पीकर की आपत्ति?
- स्पीकर ने याचिका में सुप्रीम कोर्ट के 1992 के फैसले को आधार बनाया है। इसमें कोर्ट ने कहा था कि अपवाद छोड़कर फैसला होने तक कोई भी अदालत प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं करेगी।
- 1992 के फैसले को किहोतो होलोहन केस के तौर पर भी जाना जाता है। इसमें कोर्ट की कॉन्स्टिट्यूशनल बेंच ने कहा था कि दलबदल कानून के तहत विधायकों को स्पीकर अयोग्य ठहरा सकता है।
- यहां पर यह देखना दिलचस्प रहेगा कि यदि सुप्रीम कोर्ट ने इस केस को अपवाद के तौर पर लिया तो हाईकोर्ट का प्रक्रिया में हस्तक्षेप करना उचित होगा। स्पीकर की आपत्ति खारिज हो जाएगी।
- वहीं, स्पीकर जोशी का कहना है कि विधायकों से सिर्फ जवाब मांगा है। फैसला नहीं लिया है। ऐसे में संवैधानिक संस्थाओं में टकराव टालने के लिए ही सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया है।
हाईकोर्ट ने क्यों दिए स्पीकर को कार्यवाही रोकने के निर्देश?
- इसके जवाब में सचिन पायलट खेमे की याचिका पर उनकी ओर से राजस्थान हाईकोर्ट में पेश हुए सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे की दलीलें महत्वपूर्ण हैं।
- साल्वे का कहना है कि पायलट और अन्य विधायकों ने न तो पार्टी के विरोध में कोई बयान दिया और न ही कोई ऐसा काम किया जो यह साबित करें कि वे पार्टी के खिलाफ साजिश रच रहे थे।
- किसी व्यक्ति विशेष (गहलोत) के खिलाफ की गई टिप्पणी को पार्टी से जोड़कर देखना गलत है। यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है। यह नोटिस ही गलत तरीके से दिया गया है।
- वहीं, पायलट खेमे की दलील यह है कि व्हिप का पालन सदन में किया जाता है, बाहर नहीं। ऐसे में स्पीकर के पास नोटिस देने या कार्यवाही करने का अधिकार नहीं था। यह गलत तरीके से भेजा गया है।
क्या है 10वें शैड्यूल का मुद्दा, इसमें स्पीकर को क्या अधिकार दिए हैं?
- दलबदल नया विषय नहीं है। पिछले 40 साल से यह मुद्दा अक्सर गरमाता रहा है। इसी वजह से 1985 में संविधान में 52वें संशोधन के जरिये 10वां शैड्यूल जोड़ा गया था।
- इस 10वें शैड्यूल को ही दलबदल विरोधी कानून भी कहा जाता है। इसमें दलबदल करने वाले सदस्यों को अयोग्य ठहराने संबंधी नियमों को विस्तार से समझाया गया है।
- दलबदल में सबसे चर्चित किस्सा है ‘आयाराम गयाराम’ का। 1967 में हसनपुर के विधायक गयालाल ने एक ही दिन में तीन बार पार्टी बदली। कांग्रेस से जनता पार्टी में गए और फिर कांग्रेस में लौट गए। नौ घंटे बाद फिर जनता पार्टी में चले गए थे।
- इस कानून के तहत स्पीकर दलबदल करने वाले विधायकों को नोटिस जारी कर जवाब तलब कर सकता है। यदि संतुष्ट नहीं हो तो वह विधायकों की सदस्यता बर्खास्त कर सकता है।
दलबदल कानून से जुड़े मामलों में सुप्रीम कोर्ट का रुख क्या रहा है?
- सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2020 में संसद से कहा था कि दलबदल कानून के तहत स्पीकर को दिए विधायकों को बर्खास्त करने के अधिकार को संविधान में संशोधन कर छीन लेना चाहिए।
- सुप्रीम कोर्ट ने तो यह भी कहा था कि पैसे या सत्ता के लालच में दलबदल करने वाले विधायक या सांसद के भविष्य पर फैसला लेने के लिए स्वतंत्र ट्रिब्यूनल बनाना चाहिए।
- नवंबर 2019 में कर्नाटक में विधायकों को अयोग्य ठहराने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि स्पीकर आखिर एक पार्टी का कार्यकर्ता होता है। उस पर पार्टी के दबाव हो सकते हैं।
- जनवरी 2020 में मणिपुर के विधायक की बर्खास्तगी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निष्पक्षता के साथ फैसला लेने से ही दसवें शैड्यूल को ताकत मिलेगी। स्पीकर से अधिकार छीन लेना चाहिए।
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