राजस्थान का सियासी घटनाक्रम हर दिन नए रंग दिखा रहा है। आम तौर पर विधायकों के पार्टी छोड़ने पर मुख्यमंत्री विश्वास मत साबित करने से बचते दिखते हैं। लेकिन राजस्थान में जो हो रहा है, वह इसके उलट है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत चाहते हैं कि विधानसभा सत्र बुलाया जाए, लेकिन राज्यपाल कलराज मिश्र इसके खिलाफ हैं। डर है कि विधानसभा सत्र के दौरान कोरोनावायरस का संक्रमण बढ़ सकता है। इससे सवाल यह उठता है कि क्या कोई केंद्र सरकार की सिफारिश पर नियुक्त होने वाला राज्यपाल किसी राज्य की निर्वाचित सरकार के फैसले को पलट सकता है?
क्या है पूरा मामला?
- यह पूरा विवाद सचिन पायलट की बगावत से शुरू हुआ। उनके साथ 18 विधायक हैं। कांग्रेस विधायक दल की बैठकों में इनके भाग न लेने पर पार्टी ने इनकी सदस्यता रद्द करने की अपील स्पीकर को की थी।
- स्पीकर सीपी जोशी ने 19 विधायकों को कारण बताओ नोटिस भेजा तो वे हाईकोर्ट चले गए। हाईकोर्ट ने भी सभी पक्षों को सुना और कह दिया कि स्पीकर उन 19 विधायकों पर कोई कार्रवाई नहीं कर सकते।
- इस बीच, स्पीकर जोशी सुप्रीम कोर्ट गए, जिसने हाईकोर्ट को फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। हाईकोर्ट का फैसला आ चुका है, जिसका सोमवार को रिव्यू सुप्रीम कोर्ट में होगा यानी उसके बाद ही स्थिति स्पष्ट होगी।
- दूसरी ओर, हाईकोर्ट का फैसला आते ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विधानसभा सत्र बुलाने की जिद पकड़ ली। इस संबंध में राजभवन भेजे गए कैबिनेट नोट में राज्यपाल कलराज मिश्र ने छह आपत्तियां उठाई तो विधायकों के साथ पांच घंटे तक राजभवन में धरना दिया।
क्या आपत्ति है राज्यपाल को विधानसभा सत्र बुलाने से?
- राज्यपाल कलराज मिश्र का कहना है कि संवैधानिक मर्यादा से ऊपर कोई नहीं है। किसी भी तरह दबाव की राजनीति नहीं होनी चाहिए। सरकार के पास बहुमत है तो सत्र बुलाने की क्या जरूरत है?
- सरकार ने 23 जुलाई की रात जल्दबाजी में नोटिस के साथ सत्र बुलाने की मांग की। कानून विशेषज्ञों ने इसमें छह आपत्तियां निकाली हैं। इस पर राजभवन ने एक नोट भी जारी किया था।
- इन आपत्तियों के मुताबिक, सत्र किस तारीख से बुलाना है, इसका न कैबिनेट नोट में जिक्र था, न ही कैबिनेट ने इसका अनुमोदन किया।
- कैबिनेट नोट में कम समय में सूचना पर सत्र बुलाने का न तो कोई औचित्य बताया, न ही एजेंडा। सामान्य प्रक्रिया में सत्र बुलाने के लिए 21 दिन का नोटिस देना जरूरी होता है।
- राज्यपाल कलराज मिश्र ने सरकार को यह भी तय करने के निर्देश दिए हैं कि सभी विधायकों की स्वतंत्रता और उनकी स्वतंत्र आवाजाही भी तय की जाए, जो हर बार दिया जाता है।
- 19 विधायकों की सदस्यता का मामला सुप्रीम कोर्ट में है। इस बारे में भी सरकार को नोटिस लेने के निर्देश दिए हैं। कोरोना को देखते हुए सत्र कैसे बुलाना है, इसकी भी डिटेल देने को कहा है।
राज्यपाल की आपत्ति पर गहलोत सरकार का क्या रुख है?
- मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने शुक्रवार देर रात कैबिनेट की बैठक की। अब खबरें आ रही हैं कि सरकार ने 31 जुलाई से विधानसभा सत्र बुलाने का दूसरा नोट राजभवन भेजा है।
- दूसरी ओर, मुख्यमंत्री यह माहौल बनाना चाहते हैं कि भाजपा सरकार के खिलाफ साजिश कर रही है। इसी वजह से राज्यपाल पर विधानसभा सत्र न बुलाने का दबाव है।
- यह प्रचारित करने के लिए विधायकों ने राजभवन में धरना दिया। विधानसभा का सत्र जल्द बुलाने की मांग की। धमकी भी दी कि यदि पीएम निवास पर धरना देना पड़ा तो उसके लिए भी तैयार हैं।
उधर, सचिन पायलट समर्थकों और भाजपा का क्या रुख है?
- भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया के नेतृत्व में 13 नेताओं का एक दल शनिवार शाम को राज्यपाल से मिला। उसके बाद कहा कि मुख्यमंत्री राज्यपाल को धमका रहे हैं, यह गलत बात है।
- वहीं, सचिन पायलट ने गहलोत और कांग्रेस के अन्य नेताओं के उकसाने वाले बयानों का भी अब तक संयम के साथ जवाब दिया है। उनके समर्थकों ने स्पष्ट किया कि वे बंधक नहीं हैं।
- फिलहाल, मामला सुप्रीम कोर्ट में है। लिहाजा, लगता नहीं कि भाजपा और पायलट समर्थक विधायक सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले अपना रुख स्पष्ट करेंगे। सोमवार बाद ही नए समीकरण बनेंगे।
अब मुद्दे की बात, राज्यपाल क्या निर्वाचित सरकार के फैसले पलट सकते हैं?
- नहीं। तमाम सीनियर एडवोकेट और संविधान एक्सपर्ट कह रहे हैं कि राज्यपाल को संविधान में इतनी शक्ति नहीं है कि वह किसी भी निर्वाचित सरकार के फैसले को खारिज करें।
- सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसले भी यही इशारा कर रहे हैं कि राज्यपाल को देर-सबेर विधानसभा सत्र बुलाना ही होगा। गहलोत सरकार ने भी इसी वजह से दूसरा कैबिनेट नोट तैयार कर लिया है।
…तो क्या राज्यपाल को कोई अधिकार नहीं है? संविधान क्या कहता है?
- विधानसभा सत्र बुलाने, उसका अवसान करने और सदन को भंग करने के राज्यपाल के अधिकारों का जिक्र संविधान के दो प्रावधानों में है।
- आर्टिकल 174 के तहत राज्यपाल निर्धारित वक्त और स्थान पर विधानसभा सत्र बुला सकता है। आर्टिकल 174 (2) (ए) कहता है कि सरकार समय-समय पर सदन का अवसान कर सकते हैं। वहीं, आर्टिकल 174 (2) (बी) राज्यपाल को विधानसभा भंग करने का अधिकार देता है।
- दूसरी ओर, आर्टिकल 163 कहता है कि राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करेगा। लेकिन यदि संविधान के लिए आवश्यक है तो वह बिना सलाह के भी अपने विवेक पर फैसले ले सकता है।
- मद्रास हाईकोर्ट ने 1973 में राज्यपाल के विवेकाधिकार से जुड़े प्रश्न पर कहा था कि राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह और सुझाव पर काम करने को बाध्य है।
सुप्रीम कोर्ट राज्यपाल के विवेकाधिकार पर क्या कहता है?
- इस संबंध में 2016 में नबम रेबिया केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अरुणाचल में संवैधानिक संकट खड़ा हो गया था। इसमें कहा गया था कि राज्यपाल सिर्फ मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही काम करेगा।
- अरुणाचल में 20 बागी कांग्रेस विधायकों, 11 भाजपा विधायकों और एक निर्दलीय के संयुक्त अनुरोध पर राज्यपाल ने 14 जनवरी 2016 के बजाय 15 दिसंबर 2015 को ही सत्र बुला लिया था।
- यह विधायक स्पीकर और सरकार से खुश नहीं थे। उस समय रेबिया ही अरुणाचल प्रदेश के स्पीकर थे। तब उन्होंने राज्यपाल के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी।
- इस केस में कोर्ट ने यह भी कहा था कि यदि राज्यपाल के पास यह भरोसा करने के कारण है कि मंत्रिपरिषद सदन का विश्वास खो चुकी है तो फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया जा सकता है।
यह तो हो गई कानूनी बातें, कोरोना के डरे के बाद भी गहलोत क्यों अड़े हैं?
- दरअसल, कहानी शुरू हुई थी गहलोत और पायलट के टकराव से। गहलोत जनता के सामने साबित करना चाहते हैं कि सचिन पायलट कमजोर नेता हैं और वह ही राज्य में कांग्रेस के बडे़ नेता हैं।
- दूसरा, पायलट समेत 19 विधायकों को अयोग्य ठहराने की एक कोशिश नाकाम रही है। अब सत्र होता है तो पायलट खेमे को व्हिप का पालन करना होगा, यानी गहलोत खेमे को दूसरा मौका मिलेगा।
- वैसे, गहलोत सरकार पर फिलहाल कोई संकट नहीं दिख रहा। सचिन पायलट गुट के 19 विधायकों को छोड़ भी दें तो भी इस समय गहलोत के साथ 200 के सदन में 102 विधायक दिख रहे हैं।
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