रामलला के प्राण प्रतिष्ठा की पहली वर्षगांठ तारीख से नहीं बल्कि तिथि से मनाई जा रही है। ये तिथि पौष महीने के शुक्ल पक्ष की द्वादशी है। जो इस बार 11 जनवरी को पड़ रही है और इसी साल ये तिथि 31 दिसंबर को भी आ रही है। तो सवाल है कि क्या एक साल में दो बार प्राण प्रतिष्ठा उत्सव मनेगा? जानिए इस बारे में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के पुजारी और ट्रस्ट के सदस्य का क्या कहना है रामलला मंदिर अयोध्या के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास का कहना है साल में दो बार प्रतिष्ठा उत्सव मनेगा या नहीं, इस बारे में विचार नहीं किया गया है। अगली बार जब पौष शुक्ल द्वादशी आएगी तब विचार किया जाएगा। ट्रस्टी श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के ट्रस्टी डॉ. अनिल मिश्र का कहना है पौष शुक्ल पक्ष की द्वादशी इस साल दो बार आ रही है इस बात की जानकारी नहीं है। जब आएगी तब विचार किया जाएगा
अब जानते हैं ज्योतिषियों की क्या राय… राम मंदिर का भूमि पूजन में शामिल हुए बीएचयू के प्रो. विनय पांडेय का कहना है प्रतिष्ठा द्वादशी यानी अयोध्या राम मंदिर की वर्षगांठ तिथि के अनुसार ही मनाया जाना शास्त्र सम्मत है। जनवरी से दिसम्बर तक चलने वाले अंग्रेजी कैलेंडर में पौष महीने की द्वादशी तिथि का दो बार आ जाना स्वाभाविक है। क्योंकि ऐसी स्थिति हर 2–3 साल में आ ही जाती है। काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी के अनुसार ज्योतिषी कालगणना के अनुसार एक साल में दो बार इस तिथि का आना स्वाभाविक है। जब भी ये तिथि पड़ रही हो तब ही प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव मनाया जाना चाहिए। चांद्र वर्ष और सौर वर्ष में तालमेल नहीं होने के कारण ऐसा हो रहा है। अब समझते हैं हिंदी और अंग्रेजी महीने का गणित… जब अंग्रेजी कैलेंडर का नया साल शुरू होता है तब हिंदी कैलेंडर का दसवां महीना यानी पौष मास रहता है। हर अंग्रेजी महीने में दो हिंदी महीने आते हैं। इस तरह साल के आखिरी में दोबारा पौष महीना आ जाता है। महीने के बाद अब तिथि की गड़बड़ी समझिए… तिथियां घटने से इस साल दो बार रहेगा प्राण प्रतिष्ठा मुहूर्त, इसके बाद 2027 में आएगा अंग्रेजी और हिंदी कैलेंडर में तालमेल नहीं हो पाने के कारण पौष महीने के शुक्ल पक्ष की द्वादशी इस साल 11 जनवरी और 31 दिसंबर को रहेगी। 2025 में दो बार होने के कारण 2026 में ये तिथि आएगी ही नहीं। सीधे 2027 में 19 जनवरी को रहेगी। तिथियों की घट-बढ़ के चलते ये तिथि साल में दो बार आ जाती है। हर 2-3 सालों में ऐसा हो जाता है। अंग्रेजी तारीखें रात 12 बजे बदलती हैं, लेकिन तिथि बदलने का तय समय नहीं होता है पंचांग में तिथियां चंद्रमा के आधार पर तय होती हैं, इसलिए चांद्र वर्ष यानी पंचांग का एक साल 354 दिनों का होता है। वहीं, अंग्रेजी कैलेंडर 365 दिनों का रहता है। जिससे दोनों कैलेंडर में 11 दिनों का अंतर हो जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर में रात 12 बजे नई तारीख शुरू जाती है। लेकिन पंचांग के गणित के अनुसार जब सूर्य और चंद्रमा के बीच 12 डिग्री का अंतर पूरा होता है तब तिथि बदल जाती है। तिथि बदलने का समय फिक्स नहीं होता है। ये सुबह, शाम, रात कभी भी हो सकता है। इसी वजह से तिथियां घट जाती हैं। क्यों चुनी गई पौष महीने के शुक्ल पक्ष की बारहवीं तिथि… 11 जनवरी के मुहूर्त में रहेंगे 5 बड़े शुभ योग शनिवार को बुधादित्य, पारिजात और गजकेसरी नाम के तीन बड़े राजयोग बन रहे हैं। इनके साथ सर्वार्थसिद्धि, अमृतसिद्धि योग भी रहेंगे। ये पांच बड़े योग दिन को बेहद शुभ बना रहे हैं। इनमें किए गए मांगलिक कामों का प्रभाव और बढ़ जाएगा। इन राजयोग में की गई पूजा से शांति और समृद्धि बढ़ती है। पौष शुक्ल पक्ष द्वादशी: सूर्य उत्तरायण की ओर बढ़ता है, ये भगवान विष्णु का दिन पंडितों का मानना है कि पौष शुक्ल द्वादशी पर सूर्य उत्तरायण की तरफ बढ़ता है और चंद्रमा अपनी पूर्णता की ओर। दोनों ग्रहों के शुभ स्थिति में होने से इस दिन सकारात्मक ऊर्जा बढ़ी रहती है। ग्रंथों में इसे भगवान विष्णु का दिन माना गया है। इस दिन विष्णु अवतारों की पूजा से मोक्ष मिलने की भी मान्यता है। पुराणों में इसे दान-पुण्य के लिए खास दिन माना गया है। इसे वैकुंठ द्वादशी कहा जाता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार इस तिथि पर ऋषि बड़े यज्ञ और शुभ कामों की शुरुआत करते थे। जानकारों का ये भी मानना है कि राजा दशरथ का पुत्रेष्टि यज्ञ इसी तिथि पर पूरा हुआ।
अब जानते हैं ज्योतिषियों की क्या राय… राम मंदिर का भूमि पूजन में शामिल हुए बीएचयू के प्रो. विनय पांडेय का कहना है प्रतिष्ठा द्वादशी यानी अयोध्या राम मंदिर की वर्षगांठ तिथि के अनुसार ही मनाया जाना शास्त्र सम्मत है। जनवरी से दिसम्बर तक चलने वाले अंग्रेजी कैलेंडर में पौष महीने की द्वादशी तिथि का दो बार आ जाना स्वाभाविक है। क्योंकि ऐसी स्थिति हर 2–3 साल में आ ही जाती है। काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी के अनुसार ज्योतिषी कालगणना के अनुसार एक साल में दो बार इस तिथि का आना स्वाभाविक है। जब भी ये तिथि पड़ रही हो तब ही प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव मनाया जाना चाहिए। चांद्र वर्ष और सौर वर्ष में तालमेल नहीं होने के कारण ऐसा हो रहा है। अब समझते हैं हिंदी और अंग्रेजी महीने का गणित… जब अंग्रेजी कैलेंडर का नया साल शुरू होता है तब हिंदी कैलेंडर का दसवां महीना यानी पौष मास रहता है। हर अंग्रेजी महीने में दो हिंदी महीने आते हैं। इस तरह साल के आखिरी में दोबारा पौष महीना आ जाता है। महीने के बाद अब तिथि की गड़बड़ी समझिए… तिथियां घटने से इस साल दो बार रहेगा प्राण प्रतिष्ठा मुहूर्त, इसके बाद 2027 में आएगा अंग्रेजी और हिंदी कैलेंडर में तालमेल नहीं हो पाने के कारण पौष महीने के शुक्ल पक्ष की द्वादशी इस साल 11 जनवरी और 31 दिसंबर को रहेगी। 2025 में दो बार होने के कारण 2026 में ये तिथि आएगी ही नहीं। सीधे 2027 में 19 जनवरी को रहेगी। तिथियों की घट-बढ़ के चलते ये तिथि साल में दो बार आ जाती है। हर 2-3 सालों में ऐसा हो जाता है। अंग्रेजी तारीखें रात 12 बजे बदलती हैं, लेकिन तिथि बदलने का तय समय नहीं होता है पंचांग में तिथियां चंद्रमा के आधार पर तय होती हैं, इसलिए चांद्र वर्ष यानी पंचांग का एक साल 354 दिनों का होता है। वहीं, अंग्रेजी कैलेंडर 365 दिनों का रहता है। जिससे दोनों कैलेंडर में 11 दिनों का अंतर हो जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर में रात 12 बजे नई तारीख शुरू जाती है। लेकिन पंचांग के गणित के अनुसार जब सूर्य और चंद्रमा के बीच 12 डिग्री का अंतर पूरा होता है तब तिथि बदल जाती है। तिथि बदलने का समय फिक्स नहीं होता है। ये सुबह, शाम, रात कभी भी हो सकता है। इसी वजह से तिथियां घट जाती हैं। क्यों चुनी गई पौष महीने के शुक्ल पक्ष की बारहवीं तिथि… 11 जनवरी के मुहूर्त में रहेंगे 5 बड़े शुभ योग शनिवार को बुधादित्य, पारिजात और गजकेसरी नाम के तीन बड़े राजयोग बन रहे हैं। इनके साथ सर्वार्थसिद्धि, अमृतसिद्धि योग भी रहेंगे। ये पांच बड़े योग दिन को बेहद शुभ बना रहे हैं। इनमें किए गए मांगलिक कामों का प्रभाव और बढ़ जाएगा। इन राजयोग में की गई पूजा से शांति और समृद्धि बढ़ती है। पौष शुक्ल पक्ष द्वादशी: सूर्य उत्तरायण की ओर बढ़ता है, ये भगवान विष्णु का दिन पंडितों का मानना है कि पौष शुक्ल द्वादशी पर सूर्य उत्तरायण की तरफ बढ़ता है और चंद्रमा अपनी पूर्णता की ओर। दोनों ग्रहों के शुभ स्थिति में होने से इस दिन सकारात्मक ऊर्जा बढ़ी रहती है। ग्रंथों में इसे भगवान विष्णु का दिन माना गया है। इस दिन विष्णु अवतारों की पूजा से मोक्ष मिलने की भी मान्यता है। पुराणों में इसे दान-पुण्य के लिए खास दिन माना गया है। इसे वैकुंठ द्वादशी कहा जाता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार इस तिथि पर ऋषि बड़े यज्ञ और शुभ कामों की शुरुआत करते थे। जानकारों का ये भी मानना है कि राजा दशरथ का पुत्रेष्टि यज्ञ इसी तिथि पर पूरा हुआ।