रामायण में श्रीराम और रावण के बीच युद्ध चल रहा था। रावण के कई योद्धा मारे जा चुके थे। अंत में रावण ने शक्तिशाली भाई कुंभकर्ण को जगाने का निर्णय लिया। कुंभकर्ण ब्रह्मा जी के वरदान से 6 महीने तक लगातार सोता रहता था और फिर केवल एक दिन के लिए जागता था। रावण ने उसे नींद से जगाया और युद्ध की स्थिति बताई। जैसे ही कुंभकर्ण नींद से जागा, उसने सबसे पहले रावण से युद्ध की वजह पूछी। जब रावण ने सीता हरण की बात बताई तो कुंभकर्ण ने इस बात का विरोध किया। कुंभकर्ण ने रावण को समझाते कहा कि भाई, तुमने जो किया, वह अधर्म है। श्रीराम कोई साधारण मानव नहीं हैं। उनका साथ देने वाले लक्ष्मण और हनुमान जैसे बलशाली और धर्मपरायण योद्धा हैं। तुमने पूरी लंका को संकट में डाल दिया है। रावण ने कुंभकर्ण की ये बातें सुनीं तो उसने सोचा कि ये तो ज्ञान की बातें कर रहा है, रावण को लगा कि कुंभकर्ण कहीं उसके खिलाफ न हो जाए। रावण ने तुरंत ही कुंभकर्ण के सामने मांसहार और शराब रखवा दिए। कुंभकर्ण ने मांस खाया, शराब पी और कुछ ही पलों में उसकी सोच बदल गई। अब वही कुंभकर्ण, जो अभी तक ज्ञान की बातें कर रहा था, रावण के पक्ष में युद्ध करने को तैयार हो गया। युद्ध में जब कुंभकर्ण का सामना विभीषण से हुआ। विभीषण श्रीराम के पक्ष में था। विभीषण ने कहा कि मैंने भाई रावण को बहुत समझाया था, लेकिन जब उसने मेरी नहीं मानी और मुझे लात मारकर निकाल दिया तो मैंने श्रीराम की शरण ले ली। कुंभकर्ण ने जवाब दिया कि भाई, तूने ये अच्छा किया। तूने धर्म का रास्ता चुना, लेकिन मैं अब ऐसा नहीं कर सकता। मैंने मांस-मदिरा का सेवन कर लिया है। अब मेरे मन पर रावण छा गया है। मैं जानता हूं कि मैं गलत कर रहा हूं, फिर भी मैं रावण के लिए युद्ध करूंगा। प्रसंग से सीखें जीवन प्रबंधन के 3 सूत्र अपने विवेक को कैसे मजबूत बनाएं?