सवाल: मैं बेंगलुरु में एक कॉर्पोरेट जॉब करता हूं और अपनी पार्टनर के साथ लिव इन में रहता हूं। मेरी उम्र 29 साल है। हम दोनों के पेरेंट्स को ये बात पता नहीं है। हम दोनों ही बहुत छोटे शहरों से आते हैं। वहां की दुनिया अभी लिव-इन जैसे कॉन्सेप्ट के लिए बिल्कुल तैयार नहीं है। हमारे पेरेंट्स काफी कंजरवेटिव हैं, जो इसे पूरी तरह गलत और अनैतिक मानते हैं। हम दोनों के घर से अक्सर शादी के लिए दबाव बनता है, जिसे हम तरह-तरह के बहाने बनाकर टाल देते हैं। हमारी समस्या ये है कि हम दोनों ही शादी नहीं करना चाहते। हम साथ रहते हैं, एक-दूसरे के लिए लॉयल हैं, अपने रिश्ते की बहुत वैल्यू करते हैं। हमारे बीच वो सारी बातें हैं, जो एक हेल्दी रिश्ते में होनी चाहिए, लेकिन हमें शादी नहीं करनी। पर हमें साथ भी रहना है। अब समस्या ये है कि हम पुराने ख्यालों वाले अपने पेरेंट्स को ये बात कैसे समझाएं। एक्सपर्ट: डॉ. अपर्णा माथुर, कपल थेरेपिस्ट, बेंगलुरु जवाब: जाहिर है, अपने पेरेंट्स को लिव-इन रिलेशनशिप के लिए मनाना आसान नहीं है। आपने बताया कि आपकी उम्र 29 साल है। इसका मतलब है कि आपके और आपके पेरेंट्स बहुत अलग-अलग जेनरेशन के परिवेश में पले-बढ़े हैं। इसलिए उन्हें आपका ये फैसला सुनकर कल्चरल शॉक तो लगेगा ही, नतीजतन वे नाराज होंगे। आपके फैसले पर नाखुशी भी जताएंगे। आपको यह भी समझने की जरूरत है कि आपके पेरेंट्स को लिव-इन कॉन्सेप्ट क्यों गलत लगता है और आपको सही लगता है- पेरेंट्स को क्यों नहीं सही लगता लिव-इन? आपने खुद बताया है कि आपके पेरेंट्स ऐसी जगह रहते हैं, जहां की सोसायटी अभी लिव-इन कॉन्सेप्ट को समझने के लिए और एक्सेप्ट करने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं है। इसलिए अगर पेरेंट्स को लिव-इन सही नहीं लगता है तो इसके ये कारण हो सकते हैं- सही अप्रोच से बदलेगी बात अगर सही अप्रोच के साथ पेरेंट्स के सामने अपनी बात रखी जाए तो संभव है कि वे आपकी बात मान जाएंगे। पेरेंट्स को इस बात का भरोसा दिलाना बहुत जरूरी है कि आप उनके फैसलों का सम्मान करते हैं, लेकिन अपनी जिंदगी को लेकर भी आप उतने ही गंभीर हैं। आप जो भी फैसला ले रहे हैं, उसके लिए पूरी तरह तैयार हैं और जिम्मेदार भी हैं। आपने किसी आवेश में या जल्दबाजी में यह फैसला नहीं लिया है। उनके डर को समझें और भरोसा दिलाएं हम ये नहीं कह रहे हैं कि आप अचानक जाकर अपने पेरेंट्स को सबकुछ बता दें, लेकिन सही मौका जरूर तलाशें। इसके लिए आप छोटी सी तैयारी भी कर सकते हैं। पेरेंट्स से खुलकर और धैर्यपूर्वक बात करें। उनके डर को और सवालों को समझें और धीरे-धीरे उन्हें भरोसा दिलाएं कि आपने यह फैसला बहुत सोच-समझकर लिया है। इसमें कोई जल्दबाजी नहीं की है तो बहुत संभव है कि समय के साथ वे आपकी खुशियों के लिए इसे स्वीकार कर लेंगे। दो पीढ़ियों की सोच में फर्क होता ही है दो पीढ़ियों की सोच में बड़ा अंतर होता है। इसकी वजह ये है कि दोनों के बीच सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक बदलाव होते हैं। इसके कारण दोनों की सोच भिन्न होती है और फिर हल्का-फुल्का टकराव भी स्वाभाविक है। आपके पेरेंट्स जिस दौर में बड़े हुए, उसमें शादी को रिश्तों का अंतिम सत्य माना जाता था। जबकि आपकी पीढ़ी रिश्तों को ज्यादा खुले और व्यावहारिक नजरिए से देखती है। यह अंतर सिर्फ आपकी नहीं, बल्कि हर बदलती पीढ़ी की कहानी है। बहुत संभव है कि ठीक ऐसी ही समस्या का सामना आपके और आपके बच्चों के बीच आए। इस अंतर को बढ़ाने से समस्या सुलझेगी नहीं, बल्कि रिश्ते और तनावपूर्ण हो जाएंगे। इसे आप थोड़े विनम्र होकर सुलझा सकते हैं। पेरेंट्स की भावनाओं को समझें हर कोई यह चाहता है कि उनके पेरेंट्स उनकी बात समझें। इसके लिए सबसे पहला कदम यह होगा कि आप उन्हें समझें। उनके डर, संकोच और चिंताओं को नजरअंदाज न करें। उनकी भावनाओं का सम्मान करें और उनसे स्नेहपूर्ण, सम्मानजनक तरीके से बातचीत करें। जैसे ही उन्हें समझा आएगा कि आप अपनी जिम्मेदारियों को समझते हैं। आपने लिव-इन का फैसला किसी विद्रोह की तरह नहीं, बल्कि सोच-समझकर लिया है तो उनका रुख धीरे-धीरे नरम पड़ सकता है। पेरेंट्स को समझाएं ये बातें- …………………………..
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