रिलेशनशिप- क्या आपका बच्चा शर्मीला है:इन 7 कारणों से ऐसा हो सकता है, बच्चे का संकोच कैसे दूर करें साइकोलॉजिस्ट के 11 सुझाव

आपने अपने आसपास ऐसे कई बच्चों को देखा या सुना होगा, जो लोगों के साथ बात करने या उनसे घुलने-मिलने से घबराते हैं। ऐसे बच्चों को शर्मीले स्वभाव का माना जाता है। बच्चों में शर्मीलापन होना कोई बड़ी बात नहीं है। ये काफी सामान्य है। आमतौर पर ये समय के साथ धीरे-धीरे कम हो जाता है। लेकिन कई बच्चों में यह लंबे समय तक बना रहता है, जो कि आगे चलकर उनकी आदत बन जाती है। इसका बच्चे की मेंटल हेल्थ पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा ये बच्चे की इमोशनल और सोशल ग्रोथ में भी बाधक बनता है। हालांकि अगर पेरेंट्स बचपन से ही इस पर ध्यान दें तो बच्चे के शर्मीलेपन पर काबू पाया जा सकता है। आज रिलेशनशिप कॉलम में हम बच्चों के शर्मीलेपन के बारे में विस्तार से बात करेंगे। साथ ही जानेंगे कि- शर्मीलापन क्या है? शर्मीलापन हमारे व्यक्तित्व का एक लक्षण है, जिसमें सामाजिक स्थितियों में झिझक, असहजता या संकोच महसूस होता है। यह लक्षण जेनेटिक हो सकता है। इसमें व्यक्ति कुछ भी करने से पहले खुद को कमजोर या अयोग्य महसूस करने लगता है। ओवरप्रोटेक्टिव पेरेंटिंग से बच्चा बन सकता है शर्मीला बच्चों में शर्मीलेपन की बड़ी वजह ओवरप्रोटेक्टिव पेरेंटिंग स्टाइल है। अगर पेरेंट्स में से कोई एक शर्मीले स्वभाव का है तो इसका भी बच्चे पर प्रभाव पड़ सकता है। इसके अलावा कई अन्य वजहें हो सकती हैं, इसे नीचे दिए ग्राफिक से समझिए- बच्चों में शर्मीलेपन के संकेत शर्मीले बच्चों में कई संकेत देखने को मिलते हैं। पेरेंट्स इसकी आसानी से पहचान कर सकते हैं। जैसेकि- बच्चे के शर्मीलेपन में पेरेंट्स की भूमिका बच्चे के शर्मीले स्वभाव में पेरेंट्स की अहम भूमिका है। अगर पेरेंट्स बच्चे के इस स्वभाव को समय रहते नोटिस करें और सही मार्गदर्शन दें तो बच्चे इससे जल्दी उबर सकते हैं। लेकिन इसे नजरअंदाज करने पर बच्चों में शर्मीलापन बना रहता है, जो कि उनके भविष्य के लिए नुकसानदायक हो सकता है। इसके लिए पेरेंट्स बच्चों को प्यार और सपोर्ट दें, ताकि वे अपने डर व संकोच को बेझिझक उनसे शेयर कर सकें। बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए छोटी-छोटी सफलताओं पर उसकी तारीफ करें। इसके अलावा खुद भी एक उदाहरण पेश करें। ध्यान रखें कि अगर पेरेंट्स खुद शर्मीले हैं तो बच्चे में भी ये प्रवृत्ति आ सकती है। इसलिए बच्चे को शिक्षा देने के साथ-साथ खुद भी कॉन्फिडेंट रहें। शर्मीलेपन का बच्चे की मेंटल हेल्थ पर प्रभाव अगर बच्चे का स्वभाव लंबे समय तक शर्मीला बना रहता है तो यह उसकी मेंटल हेल्थ को प्रभावित कर सकता है। बच्चे का शर्मीला व्यवहार उस पर हावी हो सकता है, जो कि उसके आत्मविश्वास को कम कर सकता है। ऐसे बच्चे खुद को दूसरों से कम समझते हैं और किसी नए काम को करने से डरते हैं। शर्मीले बच्चे अक्सर किसी इवेंट में भाग लेने से कतराते हैं। इससे उन्हें अकेलेपन का सामना करना पड़ सकता है, जो कि बच्चों में डिप्रेशन, एंग्जाइटी और स्ट्रेस को बढ़ा सकता है। शर्मीला व्यवहार समय के साथ बच्चे की पर्सनैलिटी का हिस्सा बन सकता है। ऐसे बच्चे बड़े होकर भी अपनी भावनाओं को ठीक ढंग से व्यक्त नहीं कर पाते हैं, जो उनकी पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ पर असर डाल सकता है। शर्मीलेपन से निपटने में करें बच्चे की मदद बच्चे के शर्मीलेपन से निपटने में माता-पिता एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। ध्यान रखें कि बच्चा जिद की वजह से शर्मीला नहीं होता है। इसलिए सजा देने के बजाय उसे प्यार से समझाएं। उसके साथ धैर्य और समझदारी से पेश आएं। इसके लिए सबसे जरूरी ये है कि पेरेंट्स कभी भी किसी के सामने अपने बच्चे को ‘शर्मीला’ न कहें। दूसरों को भी उसे ‘शर्मीला’ न कहने दें। इससे बच्चे पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उसकी आलोचना करने के बजाय उसका साथ दें, उसके प्रति सहानुभूति रखें और उसे समझें। बच्चे से उसके डर के बारे में पूछें। ऐसी एक्टिविटीज करें, जिससे बच्चे का कॉन्फिडेंस बढ़े। इसके अलावा कुछ और बातों का ध्यान रखें। इसे नीचे ग्राफिक से समझिए- दूसरे बच्चों से न करें अपने बच्चे की तुलना साइकोलॉजिस्ट डॉ. विनय मिश्रा बताते हैं कि अगर आपका बच्चा शर्मीला है तो सबसे पहले बच्चे की शर्म की वजह का पता लगाएं, फिर उसे कम करने की कोशिश करें। बच्चे से हर रोज नए-नए विषय पर बातें करें। इससे न केवल उसके विचार खुलेंगे, बल्कि वह शर्म को भी आसानी से दूर कर पाएगा। पेरेंट्स अक्सर अपने बच्चे की तुलना दूसरे बच्चों से करते हैं। इससे उसका आत्मविश्वास कम होता है। यह भी एक कारण है कि वह किसी भी व्यक्ति के सामने जाने से कतराता है और शर्म महसूस करता है। इसलिए पेरेंट्स को बच्चे की किसी दूसरे बच्चे से तुलना करने से बचना चाहिए।