आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि किसी करीबी ने नई कार खरीदी हो और आपको खुशी के बजाय मन ही मन थोड़ी जलन हुई हो। या फिर ऑफिस में किसी सहकर्मी को प्रमोशन मिला हो और आप अपनी मेहनत का आकलन करने लगे हों। यही भावना जो हमारे भीतर खलबली मचाती है, ईर्ष्या है। हममें से कई लोग ऐसे हैं, जो इससे छुटकारा पाना चाहते हैं। कुछ लोग जब भी ऐसा कुछ महसूस करते हैं, उन्हें खुद से शर्मिंदगी होती है। इनमें से कई लोग ऐसे होते हैं, जो दिल से चाहते हैं कि उनका दोस्त सफलता की सीढ़ियां चढ़े। हालांकि, जब ऐसा होता है तो उन्हें जलन होती है। ऐसे समय में वे विरोधाभास महसूस करते हैं। वे समझ नहीं पाते हैं कि वे तो दोस्त की बेहतरी चाहते हैं, फिर उन्हें जलन क्यों हो रही है? जबकि ऐसा होना जरूरी नहीं है कि बुरा है। इसके पीछे कई कारण छिपे हो सकते हैं। ईर्ष्या एक ह्यूमन इमोशन है, लेकिन इसे समझना और संभालना बेहद जरूरी है। यह केवल एक भावना नहीं है, बल्कि यह हमारे रिश्तों और मानसिक स्थिति को भी प्रभावित करती है। अगर यह नियंत्रण में है तो हमारे लिए अच्छा है। वहीं आउट ऑफ कंट्रोल होने पर हमारे लिए मुसीबत बन सकती है। ऐसे में आज हम रिलेशनशिप में जानेंगे कि- ईर्ष्या क्या है? ईर्ष्या एक इमोशनल रिएक्शन है। ईर्ष्या तब होती है, जब हमें लगता है कि जो कुछ सामने वाले को मिल रहा है, वह हमारे पास नहीं है। किसी की उपलब्धि, रिश्ता या संपत्ति को देखकर मन में असुरक्षा और जलन होती है। यह भावना आमतौर पर दूसरों से तुलना के कारण पैदा होती है। ईर्ष्या और द्वेष में अंतर आमतौर पर हम ईर्ष्या और द्वेष दोनों को नेगेटिव इमोशन मानते हैं। जबकि ऐसा नहीं है। ईर्ष्या तब महसूस होती है, जब हम किसी के पास कुछ देखकर उसे पाने की चाह रखते हैं। ईर्ष्या किसी के प्रति असुरक्षा का संकेत हो सकती है, जबकि द्वेष एक नुकसान पहुंचाने वाली भावना है। द्वेष ईर्ष्या का चरम रूप है, जहां हम न केवल किसी की उन्नति से जलते हैं, बल्कि उसका नुकसान करने की भी कोशिश करते हैं। ईर्ष्या आमतौर पर रोमांटिक रिश्तों में देखी जाती है। हालांकि, यह दोस्ती और सहकर्मियों या किसी भी रिश्ते में हो सकती है। व्यक्ति जब सामने वाले को कोई काम करते हुए और सफल होते हुए देखता है तो उसमें ईर्ष्या की भावना पैदा हो सकती है। ईर्ष्या में व्यक्ति खुद से भी नाराज हो सकता है। ईर्ष्यालु व्यक्ति को यह महसूस हो सकता है कि वह ऐसा क्यों नहीं कर सका। द्वेष और ईर्ष्या एक नहीं है। द्वेष अधिकतर रिश्तों में तकरार का कारण बनता है, जबकि ईर्ष्या हमें दूसरे के सफलता या संपत्ति से असंतुष्ट करती है। साथ ही साथ हमें बेहतर करने के लिए पुश कर सकती है। ईर्ष्या का मन और शरीर पर प्रभाव ईर्ष्या महसूस करने पर हमारी मेंटल और फिजिकल रिएक्शंस में बदलाव हो सकते हैं। आइए इसे ग्राफिक के जरिए समझते हैं। क्यों होती है ईर्ष्या? ईर्ष्या का कारण हर व्यक्ति में अलग हो सकता है, लेकिन कुछ कारण सब में देखे जा सकते हैं। जैसे व्यक्ति असुरक्षित महसूस करता है, खुद को नाकामयाब समझता है या उसे अकेलेपन का डर होता है, तो उसमें ईर्ष्या की भावना अधिक हो सकती है। इसके अलावा सेल्फ-रिस्पेक्ट कम होने पर या हमेशा दूसरों से अपनी तुलना करने वाले लोग भी ईर्ष्या का शिकार हो सकते हैं। आइए इसे ग्राफिक के जरिए समझते हैं। क्या ईर्ष्या हमें नुकसान पहुंचा सकती है? ईर्ष्या हमारे मेंटल और फिजिकल हेल्थ को नुकसान पहुंचा सकती है। ईर्ष्या के कारण करीबी रिश्तों में खटास पैदा हो सकती है। इसकी वजह से हम बार-बार दूसरों से तुलना करने लगते हैं और इस वजह से हमारा आत्मविश्वास कम हो जाता है। इससे डिप्रेशन और एंग्जाइटी जैसी समस्याएं पैदा हो सकती हैं। इस वजह से हम अपने काम पर फोकस नहीं कर पाते हैं। ईर्ष्या के दुष्प्रभाव क्या हो सकते हैं? ईर्ष्या के कई नेगेटिव प्रभाव हो सकते हैं। इसकी वजह से स्ट्रेस हो सकता है, ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है। अगर आप अपने ईर्ष्यालु स्वभाव से परेशान रहते हैं तो इससे दिल की बीमारी भी हो सकती है। ईर्ष्यालु स्वभाव के लंबे समय तक बने रहने से डिप्रेशन हो सकता है। ईर्ष्या की भावना असंतोष पैदा करती है, जिससे काम करने की और आगे बढ़ने की एनर्जी खत्म हो जाती है। द्वेष की वजह से हम दूसरों का नुकसान करने लगते हैं। इससे हमारे करीबी रिश्ते में भी खटास आ जाती है। क्या फायदे भी हैं? यह सुनने में अजीब लग सकता है, लेकिन ईर्ष्या हमारी कमजोरियों और इच्छाओं को समझने में मदद करती है। ईर्ष्या का कारण क्षमता से कम हासिल करना हो सकता है। ऐसे में ईर्ष्या से हम यह जान सकते हैं कि हमें क्या चाहिए। इसके लिए हम कड़ी मेहनत कर सकते हैं। मोटिवेशन: अगर ईर्ष्या को सही तरीके से समझा जाए, तो यह खुद को बेहतर बनाने के लिए प्रेरित कर सकती है। कमजोरियों को समझना: ईर्ष्या हम यह सीख सकते हैं कि हमें कहां सुधार करने की जरूरत है। इच्छाओं को पहचानना: ईर्ष्या हमें हमारे लक्ष्य और इच्छाओं के प्रति सचेत कर सकती है। बचाव के उपाय क्या हैं? हमारे भीतर पनपने वाली ईर्ष्या की भावना द्वेष का रूप धरे, इससे पहले हमें संभल जाना चाहिए। वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी के बताए 7 जरूरी सलाह के बारे में जानते हैं। स्वीकार करें: सबसे पहले, इस भावना को स्वीकार करें। इसे दबाने या इनकार करने से यह बढ़ सकती है। तुलना बंद करें: दूसरों से तुलना करना छोड़कर खुद पर ध्यान दें। हर कोई विशेष होता है और उनमें अनूठी काबिलियत होती है। ध्यान और योग: मानसिक शांति पाने के लिए मेडिटेशन करें। इससे शांत रहकर सोचने-समझने की शक्ति बढ़ेगी और खुद पर काम सकेंगे। थैंकफुल रहें: जो कुछ भी आपके पास है, उसके लिए कृतज्ञ बनें और जो नहीं है उसके लिए पूरे मन से प्रयास करें। खुद को समय दें: अपनी कमजोरियों को सुधारने के लिए खुद को समय दें। खुद पर लगातार काम करने से आप मेहनत का महत्व समझेंगे। इससे आपमें दूसरों की प्रशंसा करने की भावना की पैदा होगी। रिश्ते सुधारें: जिस व्यक्ति से आपको ईर्ष्या हो रही है, उसके साथ बातचीत करें और उससे सीखने की कोशिश करें। एक्सपर्ट की मदद लें: अगर आप ईर्ष्यालु स्वभाव से परेशान हो गए हैं, तो एक्सपर्ट से सलाह लें क्योंकि समय के साथ यह द्वेष में बदल सकती है। ईर्ष्या एक सामान्य ह्यूमन इमोशन है, लेकिन इसे सही तरीके से समझना और संभालना जरूरी है। यह हमें बेहतर बनने के लिए प्रेरित कर सकती है, लेकिन अगर इसे नियंत्रण में न रखा जाए, तो लाइफ में कई सारी परेशानियां हो सकती हैं। अपनी पॉजिटिव एनर्जी को पहचानें और ईर्ष्या को खुद को मोटिवेट करने के लिए इस्तेमाल करें। याद रखें, हर इंसान अपनी जिंदगी में स्पेशल है। किसी की खुशी देखकर खुश होना सीखें, क्योंकि दूसरों की सफलता आपकी हार नहीं है।