रिलेशनशिप- टाइगर पेरेंटिंग बच्चे के लिए खतरनाक:इन 9 संकेतों से पहचानें कहीं आप टाइगर पेरेंट तो नहीं, साइकोलॉजिस्ट के 10 सुझाव

हर पेरेंट की इच्छा होती है कि उनका बच्चा अच्छे संस्कार सीखे और जीवन में खूब तरक्की हासिल करे। इसके लिए वे पूरी कोशिश करते हैं। लेकिन कई बार पेरेंट्स जाने-अनजाने में बच्चे के दुश्मन बन जाते हैं। वे बच्चे के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए उसके साथ काफी सख्त व्यवहार करते हैं। इसे ही टाइगर पेरेंटिंग कहा जाता है। ‘टाइगर पेरेंटिंग’ शब्द का इस्तेमाल सबसे पहले प्रोफेसर एमी लिन ने साल 2011 में किया था। उन्होंने एक किताब लिखी- ‘बैटल हिम्न ऑफ द टाइगर मदर।’ इस किताब में वह विस्तार से इस टर्म की व्याख्या करती हैं। प्रोफेसर एमी अमेरिका के येल लॉ स्कूल में प्रोफेसर हैं। किताब में एमी अपने बचपन के बारे में लिखती हैं कि कैसे उनके पेरेंट्स बेहद सख्त थे। फिर अपनी बेटियों के साथ भी उन्होंने वही सख्ती बरतने की कोशिश की, जो उनके माता-पिता ने उनके साथ बरती थी। यह किताब उन्हीं अनुभवों और उससे मिले सबक की कहानी है। टाइगर पेरेंटिंग में माता-पिता अपने बच्चों के जीवन से जुड़े सभी फैसले खुद लेते हैं और उनकी हमेशा निगरानी करते रहते हैं। हालांकि इस तरह की सख्त पेरेंटिंग बच्चों के लिए नुकसानदायक होती है। अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन के मुताबिक, टाइगर पेरेंटिंग से बच्चों में प्रतिभा का विकास नहीं हो पाता है। आज रिलेशनशिप कॉलम में हम टाइगर पेरेंटिंग के बारे में बात करेंगे। साथ ही जानेंगे कि- टाइगर पेरेंटिंग क्या है? टाइगर पेरेंटिंग एक ऐसी पेरेंटिंग स्टाइल है, जिसमें माता-पिता अपने बच्चे को कठोर अनुशासन में रखते हैं। इसे अथॉरिटेरियन पेरेंटिंग भी कहा जाता है। इसमें पेरेंट्स बच्चों के साथ डिक्टेटर की तरह बर्ताव करते हैं और उन पर सिर्फ हुक्म चलाते हैं। वे अपने बच्चे के लिए गोल सेट करते हैं और उससे उस गोल को अचीव करने की उम्मीद करते हैं। टाइगर पेरेंटिंग के संकेत आमतौर बहुत से पेरेंट्स ये जान नहीं पाते कि उनके व्यवहार का बच्चे पर कैसा असर पड़ेगा। ऐसे में वे अनजाने में बच्चे के साथ ज्यादा सख्ती बरतते हैं। उन्हें इसके साइड इफेक्ट के बारे में नहीं पता होता है। कहीं आप भी अपने बच्चे के साथ टाइगर पेरेंट की तरह व्यवहार तो नहीं करते। नीचे ग्राफिक में इसके कुछ संकेत दिए गए हैं, इसे ध्यान से समझिए- टाइगर पेरेंटिंग अपनाने की वजह टाइगर पेरेंट्स मानते हैं कि बच्चे के भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए सख्ती जरूरी है। वे ये भी मानते हैं कि इससे बच्चों को स्कूल में अच्छे मार्क्स, म्यूजिक और खेल जैसी एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज में सफल होने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। इसलिए कुछ पेरेंट्स ऐसी पेरेंटिंग स्टाइल काे फॉलो करते हैं। हालांकि इसका बच्चों पर पॉजिटिव के बजाय नेगेटिव प्रभाव देखने को मिलता है। टाइगर पेरेंटिंग का बच्चों पर नकारात्मक असर टाइगर पेरेंटिंग में माता-पिता बच्चे से बहुत ज्यादा उम्मीदें करते हैं। जब बच्चे पेरेंट्स की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाते तो इससे उन्हें शर्मिंदगी महसूस हो सकती है। इससे वह धीरे-धीरे अकेलेपन में रहना शुरू कर देते हैं और उन्हें कई तरह की मेंटल प्रॉब्लम्स हो सकती हैं। इस माहौल में पले बच्चों में निर्णय लेने की क्षमता खत्म हो जाती है क्योंकि उनके जीवन के ज्यादातर फैसले पेरेंट्स ही ले रहे होते हैं। इसके अलावा टाइगर पेरेंटिंग बच्चों को और किस तरह प्रभावित करती है, इसे नीचे दिए ग्राफिक समझिए- टाइगर पेरेंटिंग का बच्चों की मेंटल हेल्थ पर प्रभाव टाइगर पेरेंटिंग का बच्चों की मेंटल हेल्थ पर नकारात्मक असर पड़ता है। जब बच्चे पर सभी क्षेत्रों में बेहतर करने का दबाव बनाया जाता है तो इससे उसमें स्ट्रेस, एंग्जाइटी और डिप्रेशन का खतरा बढ़ जाता है। कई बार बच्चे के मन में सुसाइड तक के विचार आ सकते हैं। खासकर जब वह पेरेंट्स की उम्मीदों को पूरा नहीं कर पाता है। जब माता-पिता अपने बच्चों के प्रति बहुत सख्त होते हैं तो बच्चे उनसे दूरी बनाने लगते हैं। वे पेरेंट्स से अपने मन की बात नहीं कह पाते हैं। इससे उनके बीच भावनात्मक दूरियां आने लगती हैं। टाइगर पेरेंटिंग में पले बच्चे खुद पर आसानी से भरोसा नहीं कर पाते। इससे उनमें आत्मविश्वास की कमी हो सकती है। बच्चों की परवरिश का सही तरीका बच्चों की परवरिश कोई आसान काम नहीं है क्योंकि पेरेंटिंग से ही उनका भविष्य तय हाेता है। जहां कुछ पेरेंट्स अपने बच्चे को हर तरह के फैसले लेने की छूट देते हैं, वहीं कुछ लोग बच्चे को सही-गलत का फर्क समझाते हैं। जबकि कुछ अपने बच्चों से सख्ती से पेश आते हैं। हालांकि बच्चे की परवरिश में इन तीनों का संतुलन होना जरूरी है। वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. मनीष बोरासी बताते हैं कि बच्चे मिट्‌टी के बर्तन की तरह होते हैं। उन्हें जिस तरह ढाला जाता है, वे वैसे ही ढल जाते हैं। इसलिए बच्चे को बचपन से ही अच्छा माहौल देना चाहिए। जैसेकि-