मैस्क्यूलिनिटी यानी मर्दानगी को लंबे समय से ताकत और सेल्फ-डिपेंडेंसी से जोड़कर देखा जाता रहा है। समाज ने कुछ ऐसे आदर्श बना दिए हैं, जैसे ‘मर्द को दर्द नहीं होता’, ‘मर्द रोते नहीं।’ और ‘आंसू बहाना कमजोर लोगों की निशानी है’ इन बातों से पुरुषों की भावनाओं को दबाने की कोशिश की जाती है। लेकिन क्या यह मैस्क्यूलिनिटी का सही अर्थ है? जवाब है- बिल्कुल नहीं। मैस्क्यूलिनिटी का मतलब सिर्फ ताकत दिखाना या कठोर होना नहीं है। इसका सही अर्थ अपनी भावनाओं को सही तरीके से जाहिर करना और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाना होता है। जब पुरुष अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल करने लगते हैं, दूसरों पर धौंस जमाते हैं और इमोशंस को छिपाते हैं, तो यह ‘टॉक्सिक मैस्क्यूलिनिटी’ बन जाती है। यह सिर्फ पुरुषों के लिए ही बुरा नहीं है, बल्कि इससे पूरा समाज प्रभावित होता है। इससे रिश्तों में झगड़े बढ़ते हैं, समाज में भेदभाव बढ़ता है और हिंसा की घटनाओं में इजाफा होता है। ऐसे में आज हम रिलेशनशिप में जानेंगे कि- टॉक्सिक मैस्क्यूलिनिटी क्या है? जब हम ‘मर्दानगी’ की बात करते हैं, तो हमारे मन में ताकतवर और भावनाओं को छुपाने वाले एक पुरुष छवि उभरती है। ऐसा पुरुष जिसे किसी की मदद की जरूरत नहीं पड़ती है। ये छवि समाज ने वर्षों से हमारे सामने रखी है और यहीं से समस्या शुरू होती है। समाज ने मैस्क्यूलिनिटी को सीमित और कठोर दायरे में बांध दिया है। इसी सोच से टॉक्सिक मैस्क्यूलिनिटी जन्म लेती है। कैसे पनपती है टॉक्सिक मैस्क्यूलिनिटी? टॉक्सिक मैस्क्यूलिनिटी का मतलब उन आदतों और मान्यताओं से है, जो मर्दानगी को आक्रामकता, धौंस जमाने और भावनात्मक कमजोरी से जोड़ती हैं। हमारे घर-परिवार में छोटे बच्चों को बचपन से यह सीख दी जाती है कि ‘लड़के रोते नहीं’, ‘मजबूत बनो’, ‘आंसू बहाना कमजोर होने की पहचान है।’ बचपन में परिवार, समाज और सिनेमा से सीखी गई बातें बच्चों की सोच और व्यवहार पर गहरी छाप छोड़ती हैं। ‘मर्द बनो’ और ‘लड़के लड़कियों से बेहतर होते हैं’ जैसी बातें बच्चों के अंदर धीरे-धीरे इस धारणा मजबूत करती हैं कि रोना या इमोशंस जाहिर करना कमजोर होने की पहचान है। आजकल सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म भी इस समस्या को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाते हैं। फेक प्रोफाइल और बिना जवाबदेही के माहौल में लोग खुलेआम आक्रामक, असंवेदनशील और हिंसक विचार फैलाते हैं। टॉक्सिक मैस्क्यूलिनिटी के नुकसान टॉक्सिक मैस्क्यूलिनिटी सिर्फ पुरुषों को ही नहीं, बल्कि उनके आसपास के हर व्यक्ति को प्रभावित करती है। जब किसी को बचपन से यह सिखाया जाए कि आंसू बहाना कमजोरी है, भावनाएं जाहिर करने से बचना चाहिए, तो यह आदत उसके मेंटल हेल्थ को बुरी तरह प्रभावित करती है। आइए टॉक्सिक मैस्क्यूलिनिटी के नुकसान को ग्राफिक के जरिए समझते हैं। इमोशंस को दबाने से मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम टॉक्सिक मैस्क्यूलिनिटी पुरुषों को अपनी भावनाओं को दबाने, दूसरों पर हावी होने और कमजोरियों को छिपाने के लिए मजबूर करती है। लंबे समय तक अपने इमोशंस को जबरदस्ती दबाने से कई तरह की मेंटल हेल्थ समस्याएं हो सकती हैं। इससे आत्महत्या के विचार आ सकते हैं। साथ ही नशे की लत और डिप्रेशन जैसी समस्याएं हो सकती हैं। रिलेशन पर दुष्प्रभाव जब पुरुषों को सिखाया जाता है कि रिश्ते में सामने वाले पर दबाव बनाकर रखना चाहिए, तो यह सोच उनके निजी और पेशेवर संबंधों को खराब करती है। घरेलू हिंसा, भावनात्मक शोषण जैसी समस्याएं इसी मानसिकता की देन हैं। समाज पर बुरा असर टॉक्सिक मैस्क्यूलिनिटी सिर्फ व्यक्ति तक सीमित नहीं रहती, बल्कि समाज को भी प्रभावित करती है। यह महिलाओं, LGBTQ+ समुदाय और अन्य हाशिए पर खड़े लोगों या समुदाय के खिलाफ भेदभाव और हिंसा को बढ़ावा देती है। क्या अन्य रिश्ते भी प्रभावित होते हैं? रिश्ते आपसी समझ, एक-दूसरे के सम्मान और इमोशन पर टिके होते हैं, लेकिन जब समाज पुरुषों को यह सिखाता है कि ‘कमजोरी’ दिखाना या अपने साथी पर निर्भर होना गलत है, तो रिश्तों में दरार आना स्वाभाविक है। पार्टनरशिप में, जब एक व्यक्ति हमेशा दूसरे पर प्रभुत्व बनाए रखने की कोशिश करता है, तो प्यार और सम्मान की जगह असुरक्षा और कड़वाहट ले लेती है। इसी वजह से कई बार महिलाएं अपने पार्टनर के साथ सुरक्षित महसूस नहीं करतीं हैं। प्रभावित होता है पिता-पुत्र का रिश्ता पिता अपने बेटों के लिए रोल मॉडल होते हैं, लेकिन जब पिता भी टॉक्सिक मैस्क्यूलिनिटी के शिकार होते हैं, तो वे अनजाने में अपने बेटों को भी वही सीख देते हैं। ‘तुम लड़कियों जैसे रो क्यों रहे हो?’, ‘क्या तुमने औरतों की तरह चूड़ियां पहन रखी हैं’ जैसी बातें बच्चों पर गहरा असर छोड़ती हैं। हेल्दी मैस्क्यूलिनिटी क्या है? समाज को यह समझने की जरूरत है कि मर्दानगी कमजोरियों को छुपाने या सामने वाले पर धौंस दिखाने का नाम नहीं है। हेल्दी मैस्क्यूलिनिटी का मतलब संवेदनशीलता और दयालुता है। क्या है समाधान? हेल्दी मैस्क्यूलिनिटी के लिए कोई जादुई छड़ी नहीं है कि हमने घुमाया और हासिल कर लिया। खासतौर से तब, जब बचपन से हमें टॉक्सिक मैस्क्यूलिनिटी की ट्रेनिंग दी गई हो। ऐसे में हम धीरे-धीरे अपनी आदतों में बदलाव लाकर और अभ्यास से हेल्दी मैस्क्यूलिनिटी को हासिल कर सकते हैं। आइए इसे ग्राफिक के जरिए समझते हैं। इमोशनल होना समझदारी: पुरुषों को यह समझना चाहिए कि इमोशनल होना कमजोरी नहीं, बल्कि एक सामान्य मानवीय गुण है। भावनाओं को व्यक्त करने से तनाव कम होता है और रिश्तों में मजबूती आती है। मदद मांगना कमजोरी नहीं: मदद मांगना कमजोरी नहीं, बल्कि साहस और आत्मविश्वास का प्रतीक है। हर किसी को कभी न कभी मदद की जरूरत पड़ती है। मदद मांगने से समस्याएं जल्दी हल होती हैं और व्यक्ति अकेलापन महसूस नहीं करता। सुरक्षित माहौल दें: अपने आसपास के लोगों को उनकी भावनाओं और व्यक्तित्व को अपनाने का मौका दें। एक ऐसा माहौल बनाएं, जहां लोग बिना किसी डर और झिझक के अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकें। साथ ही दूसरों की भावनाओं का सम्मान करना और उन्हें समझना बहुत जरूरी है। सामाजिक स्तर पर बदलाव शिक्षा और जागरूकता: स्कूलों और घरों में बच्चों को सिखाना चाहिए कि पुरुष और महिलाएं बराबर हैं। रोल मॉडल: ऐसे पुरुषों को प्रोत्साहित करें, जो हेल्दी मैस्क्यूलिनिटी को अपनाते हैं। वहीं, खुद भी ऐसे रोल मॉडल अपनाएं। हेल्दी मैस्क्यूलिनिटी को समाज में अपनाने के लिए हमें लगातार प्रयास करने की जरूरत है। खासतौर से स्कूल और पैरेंटिंग के तौर-तरीकों में बदलाव की कोशिश सबसे बेहतर प्रक्रिया है। जब नई नस्लें समझदार और इमोशनल होंगी तो एक बेहतर समाज का निर्माण होगा।