आजकल पेरेंट्स बच्चों की परवरिश के लिए कई अलग-अलग तरह की पेरेंटिंग स्टाइल फॉलो करते हैं। पिछले कुछ वर्षों से जानवरों से प्रेरित कई पेरेंटिंग स्टाइल ट्रेंड में हैं। डॉल्फिन पेरेंटिंग इनमें से एक है। डॉल्फिन्स अपने बच्चों को स्वतंत्रता देती हैं, जिससे उनकी क्षमता पूरी तरह से विकसित होती है और वे अपने फैसले खुद ले पाते हैं। इसलिए बहुत से लोग डॉल्फिन पेरेंटिंग को बच्चों के लिए परफेक्ट पेरेंटिंग स्टाइल मानते हैं, जो बच्चों को सही दिशा में बढ़ने के लिए प्रेरित करती है। ‘डॉल्फिन पेरेंटिंग’ शब्द का इस्तेमाल पहली बार ब्रिटिश साइकेट्रिस्ट डॉ. शिमी कांग ने अपनी किताब ‘द डॉल्फिन वे: ए पेरेंट्स गाइड टू राइजिंग हेल्दी, हैप्पी एंड मोटिवेटेड किड्स’ में किया था। शिमी कांग साइकेट्रिस्ट और ब्रिटिश कोलंबिया यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। आज रिलेशनशिप कॉलम में हम डॉल्फिन पेरेंटिंग के बारे में बात करेंगे। साथ ही जानेंगे कि- डॉल्फिन पेरेंटिंग क्या है? डॉल्फिन पेरेंटिंग एक ऐसी पेरेंटिंग स्टाइल है, जो बच्चों को स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बनाने पर केंद्रित है। डॉल्फिन पेरेंट्स बच्चों के लिए कुछ साधारण नियम जरूर बनाते हैं, लेकिन वे क्रिएटिविटी को भी महत्व देते हैं। डॉल्फिन पेरेंटिंग का उद्देश्य बच्चों के जीवन में संतुलन बनाए रखना है। डॉल्फिन पेरेंटिंग स्टाइल बच्चों को अपना निर्णय खुद लेने और समस्याओं का समाधान करने के लिए प्रोत्साहित करती है। डॉल्फिन और टाइगर पेरेंटिंग में अंतर आमतौर लोग दो तरह की पेरेंटिंग स्टाइल को फॉलो करते हैं। कुछ पेरेंट्स सख्त होते हैं, वहीं कुछ सरल होते हैं। इन्हें हम टाइगर पेरेंट और डॉल्फिन पेरेंट के रूप में देख सकते हैं। दोनों पेरेंटिंग स्टाइल एक-दूसरे से विपरीत हैं। डॉल्फिन पेरेंटिंग में संतुलन होता है, जबकि टाइगर पेरेंटिंग में बच्चों पर सिर्फ हुक्म चलाया जाता है। डॉल्फिन पेरेंटिंग में बच्चों को गलतियां करने और उनसे सीखने की आजादी दी जाती है। वहीं टाइगर पेरेंटिंग में बच्चों को कंट्रोल में रखा जाता है। इन दोनों पेरेंटिंग स्टाइल के बीच और भी कुछ अंतर हैं, इसे नीचे दिए ग्राफिक से समझिए- डॉल्फिन पेरेंटिंग में माता-पिता की भूमिका किसी भी अन्य पेरेंटिंग स्टाइल की तरह डॉल्फिन पेरेंटिंग में भी माता-पिता की भूमिका अहम होती है। डॉल्फिन पेरेंट अपने बच्चे को जीवन के उतार-चढ़ाव का सामना करने के लिए मजबूत बनाते हैं। वे बच्चे को पढ़ाई के साथ-साथ एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करते हैं। वे अपने बच्चे पर पढ़ाई का दबाव नहीं डालते हैं और किसी गलती पर उसे बहुत कठोर सजा नहीं देते हैं। नीचे दिए ग्राफिक से डॉल्फिन पेरेंटिंग के संकेतों को समझिए- डॉल्फिन पेरेंटिंग बच्चों के लिए जरूरी डॉल्फिन पेरेंटिंग बच्चों पर सकारात्मक प्रभाव डालती है क्योंकि इसमें बच्चों को खुलकर जीने का मौका मिलता है। वे अपने आसपास की दुनिया को एक्सप्लोर करते हैं। ऐसे पेरेंट्स अपने बच्चे की शिक्षा के साथ-साथ उसकी पसंद का भी ख्याल रखते हैं। उनका लक्ष्य अपने बच्चे के साथ एक अच्छी बॉन्डिंग बनाना हाेता है, ताकि बच्चा कोई भी काम बिना डरे कर सके। इससे वे शारीरिक और मानसिक तौर पर काफी एक्टिव रहते हैं। डॉल्फिन पेरेंट्स की एक और खासियत ये है कि वे अलग-अलग उम्र में अपने बच्चे की जरूरतों के अनुसार बदलते रहते हैं। इसका उनके बच्चों पर पॉजिटिव असर देखने को मिलता है। इसे नीचे दिए पॉइंटर्स से समझिए- डॉल्फिन पेरेंटिंग के संभावित नुकसान वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी बताते हैं कि बहुत सी अच्छाई के साथ-साथ डॉल्फिन पेरेंटिंग में कुछ खामियां भी हैं। जैसेकि- डॉल्फिन पेरेंटिंग के लिए कुछ जरूरी सुझाव डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी बताते हैं कि डॉल्फिन पेरेंटिंग बच्चों के लिए बेहतर है। लेकिन इसमें पेरेंट्स को कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। जैसेकि- अंत में यही कहेंगे कि अच्छी परेंटिंग ही एक बच्चे के बेहतर भविष्य की नींव है। इसके लिए समझदारी, धैर्य, सहानुभूति, विश्वास और पूरे परिवार के सपोर्ट की जरूरत होती है।