हमारे आसपास और घर-परिवार में कई औसत जीवन व्यतीत करने वाले लोग रहते हैं। हालांकि, हममें से बहुत लोग औसत बनकर जिंदगी नहीं जीना चाहते हैं। अमेरिकी कॉमेडी टीवी सीरीज ’द ऑफिस’ का किरदार माइकल स्कॉट कहता है, ‘मेरी मां हमेशा कहती थीं कि औसत लोग सबसे खास हैं। यही कारण है कि भगवान ने इतने सारे बनाए।’ हालांकि, कई बार हममें से बहुत से लोग ‘एवरेज’ शब्द से डरते हैं। हमें इस बात का डर लगता है कि कहीं जिंदगी साधारण सी न रह जाए। इसे ‘कोइनोफोबिया’ कहते हैं यानी अपनी जिंदगी को बेरंग और आम मानने का डर। क्या आपको लगता है कि आपकी जिंदगी में कुछ खास नहीं है। आप दूसरों से अलग नहीं खड़े हो पाएंगे? यह डर कोई बीमारी नहीं है, लेकिन बहुत से लोग इससे परेशान रहते हैं। यह शब्द ‘डिक्शनरी ऑफ ऑब्सक्योर सॉरोस’ से लिया गया है। सच तो यह है कि ‘औसत’, ‘साधारण’ या ‘बेमिसाल’; जैसे शब्द सबके लिए अलग-अलग हैं। हम सब किसी काम में औसत हो सकते हैं और किसी काम में निपुण। हालांकि, कोइनोफोबिया खासतौर पर उस डर को दर्शाता है कि आपकी जिंदगी ऐसी हो जाएगी जो किसी के लिए यादगार न हो। क्या आप भी इस डर से जूझ रहे हैं? अगर हां, तो चिंता न करें। क्योंकि आज हम रिलेशनिशिप कॉलम में जानेंगे कि- कोइनोफोबिया क्या है? कोइनोफोबिया एंग्जायटी या सोशल फोबिया की तरह कोई मेडिकल बीमारी नहीं है। इंटरनेट पर लोग इसके बारे में चर्चा करते हुए मिल जाते हैं। हालांकि, इसके बारे में रिसर्च कम हुई है। इस डर का कोई एक कारण नहीं है। यह शायद इसलिए होता है क्योंकि लोग चाहते हैं कि वे कुछ खास करें और हमेशा याद रखे जाएं। कुछ को डर है कि उनकी जिंदगी साधारण रह जाएगी और कोई उनकी बात नहीं करेगा। जिन लोगों में आत्मविश्वास कमी होती है, वे भी इस डर से परेशान हो सकते हैं। उन्हें लगता है कि अगर वे खास न बनें, तो लोग उन्हें पसंद नहीं करेंगे। उनके माता-पिता को उन पर गर्व नहीं होगा। वे सोचते हैं कि सफलता से उनकी कीमत बढ़ेगी। क्या यह डर नया है या बढ़ रहा है, यह स्पष्ट नहीं है। कुछ लोग कहते हैं कि सोशल मीडिया पर दिखावा इसकी बड़ी वजह है। लोग सिर्फ अपनी अच्छी बातें शेयर करते हैं, जिससे लगता है कि सब हमसे बेहतर हैं। इससे औसत होने का डर और बढ़ता है। कोइनोफोबिया होने पर कैसा महसूस होता है? और इसके लक्षण क्या हैं? कोइनोफोबिया पर बहुत रिसर्च नहीं होने की वजह से कोई भी ढंग की जानकारी नहीं है। हालांकि, हर किसी के पास इसकी अलग-अलग वजह हो सकती है। आइए इसे ग्राफिक के जरिए समझते हैं। हर किसी का अनुभव अलग होता है: कोइनोफोबिया के लक्षण के लिए कोई तय नियम नहीं हैं। हर व्यक्ति इसे अलग तरीके से महसूस करता है। जिन चीजों से आपको डर लगता है, वह किसी और के लिए सामान्य बात हो सकती है। जैसे आप बहुत सारा पैसा कमाना चाहते हैं। लेकिन, पूंजीपति के लिए पैसे कमाना सामान्य बात है। खुद को लेकर चिंता और नकारात्मक सोच: अगर आपको लगता है कि आप औसत हैं या बेहतर नहीं हैं तो खाली बैठने पर एंग्जाइटी हो सकती है। जबकि जिंदगी का मतलब चौबीस घंटे काम करना नहीं होता है। आत्म-संशय और आत्म-सम्मान में कमी: खुद को लेकर हमेशा संदेह में रहते हैं। आत्म-सम्मान में कमी महसूस करते हैं और आत्मविश्वास गंवा बैठते हैं। निरंतर तुलना करना: आप खुद की दूसरों से तुलना करते रहते हैं और यह महसूस करते हैं कि आप दूसरों जितना अच्छा नहीं कर पा रहे हैं। सफलता का आनंद न ले पाना: जब आप किसी लक्ष्य को प्राप्त करते हैं, तो आप उसे पूरा करने का आनंद नहीं ले पाते हैं। क्योंकि आपको हमेशा लगता है कि आप और बेहतर कर सकते थे। ज्यादा मेहनत से स्वास्थ्य पर असर: आप खुद को बहुत ज्यादा काम करने के लिए मजबूर कर सकते हैं। इससे शारीरिक और मानसिक परेशानियां हो सकती हैं। खुद को लेकर असंतोष: आप अपने बारे में नकारात्मक बातें सोच सकते हैं, जैसे कि आपकी कोई भी सफलता कभी भी आपके लिए काफी नहीं होती है। इसका मानसिक स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ता है? अगर किसी का लक्ष्य दुनिया पर बड़ा प्रभाव छोड़ना है तो काम कभी खत्म नहीं होगा। हमेशा कुछ-न-कुछ करने, सुधारने और हासिल करने की कोशिश करते रहने को होगा। लगातार कुछ-न-कुछ करते रहने की इस दौड़ में आराम और तरोताजा होने का समय नहीं मिल पाता, जिससे आप बुरी तरह थक सकते हैं। इसमें उदासी, चिंता, ऊर्जा की कमी, थकावट और सोचने-समझने की क्षमता में कमी जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं शामिल हैं। कोइनोफोबिया से कैसे निपटें? अगर औसत होने का डर आपको बहुत परेशान कर रहा है या आपकी जिंदगी में रुकावट डाल रहा है, तो मदद मांगने में कोई बुराई नहीं है। अपनी चिंता के लिए सहारा लेना ठीक है। औसत होने के डर से निपटने के कुछ तरीके यहां दिए गए हैं। आइए इसे ग्राफिक के जरिए समझते हैं। खुद को पूरी तरह से स्वीकार करना सीखें: आपका औसत होने का डर कम आत्म-सम्मान से जुड़ा हो सकता है, इसलिए जैसे हैं खुद को वैसे ही स्वीकार करें। इससे आप ठीक महसूस कर सकते हैं। टाइम मैनेजमेंट के गुर सीखें: कभी-कभी हम अपने काम और लक्ष्यों को लेकर इतना अधिक चिंतित होते हैं कि हम आराम करना भूल जाते हैं। अपने समय का सही तरीके से प्रबंधन करें और काम के साथ-साथ आराम के लिए भी समय निकालें। इससे मानसिक थकान कम होगी और आप एनर्जी से भरे रहेंगे। स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित करें: आप जानते हैं कि आपको क्या करना है, तो मेहनत करने में आसानी होती है। अपने लक्ष्यों को स्पष्ट रूप से निर्धारित करें और उन्हें छोटे हिस्सों में बांटें। इससे आपको पता रहेगा कि आपको कहां पहुंचना है और हर कदम पर ध्यान केंद्रित करना आसान होगा। अच्छी आदतें विकसित करें: सफलता मेहनत और सही आदतों का परिणाम होती है। अच्छे कार्यों और आदतों को अपनी दिनचर्या में शामिल करें। जैसे जल्दी उठना, नियमित व्यायाम करना, हेल्दी डाइट लेना और समय पर काम पूरा करना। इससे मेहनत करना आसान होगा और परिणाम अच्छे होंगे। अवसरों का फायदा उठाएं: अपनी मेहनत को सही दिशा में लगाने के लिए अवसरों का सही समय पर फायदा उठाएं। नए अवसरों को पहचानें और उनका पूरा लाभ उठाने की कोशिश करें। निरंतर सीखते रहें: निरंतर सीखते रहना आपकी मेहनत को अधिक प्रभावी बना सकता है। नई चीजें सीखने से आपकी समझ बढ़ती है, जिससे आप काम को अधिक स्मार्ट तरीके से कर सकते हैं। किताबें पढ़ें, ऑनलाइन कोर्स करें, या अपने क्षेत्र में अन्य लोगों से सीखें। सोशल मीडिया से ब्रेक लें: अगर आपको दूसरों की उपलब्धियां देखकर खुद को कमतर महसूस होता है, तो सोशल मीडिया से दूर रहें और कुछ ऐसा करें जिसमें आपको मजा आता हो। छोटे-छोटे लक्ष्य तय करें: जिंदगी में कुछ हासिल करना अच्छी बात है, लेकिन अपने लिए ऐसे लक्ष्य चुनें जो आप आसानी से पा सकें। इससे आप खुद पर ज्याादा दबाव नहीं डालेंगे। किसी थेरेपिस्ट से बात करें: किसी मेंटल हेल्थ स्पेशलिस्ट से बात करें। वे कोइनोफोबिया से जुड़े दुख को कम करने में आपकी मदद कर सकते हैं। खासकर, कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (CBT) आपको अपने नकारात्मक विचारों और उन गहरे विश्वासों को पहचानने में मदद कर सकती है, जो आपके औसत होने के डर को बढ़ाते हैं।