शादी करना और पेरेंट्स बनना जीवन की दो सबसे चुनौतीपूर्ण भूमिकाएं हैं। जहां शादी में दो लोग मिलकर एक नया जीवन शुरू करते हैं, वहीं पेरेंट्स बनने के बाद वे अपने बच्चे को हर खुशी देना चाहते हैं। हालांकि कई बार शादी और पेरेंटिंग के बीच संतुलन बनाना कठिन हो जाता है। इसका एक अहम कारण ये है कि बहुत से लोग सिर्फ महिलाओं को ही बच्चे की देख-रेख के लिए जिम्मेदार मानते हैं। वे उनसे ही बच्चे का डायपर बदलने से लेकर खिलाने-पिलाने तक सभी कामों की उम्मीदें करते हैं। इससे रिश्ते में असंतुलन आ सकता है, जो तनाव का कारण बन सकता है। पेरेंटिंग के लिए दोनों पार्टनर्स को मिलकर समझदारी से काम लेना चाहिए क्योंकि पेरेंटिंग किसी अकेले का काम नहीं है। इसके लिए एक सपोर्ट सिस्टम की जरूरत होती है। आज रिलेशनशिप कॉलम में बात शादी और पेरेंटिंग के बीच बैलेंस बनाने की। साथ ही जानेंगे कि दोनों के बीच संतुलन न होने से रिश्ते पर क्या प्रभाव पड़ता है। पेरेटिंग सिर्फ महिलाओं का काम नहीं प्रकृति ने बच्चा पैदा करने के लिए तो महिलाओं को ही चुना है। लेकिन इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि बच्चे की देखभाल भी सिर्फ महिला ही करे। इसमें पति और परिवार के लोगों की बराबर की हिस्सेदारी होनी चाहिए। जब एक महिला बच्चे को जन्म देती है तो उसके अंदर कई परिवर्तन होते हैं। ये परिवर्तन शारीरिक और मानसिक दोनों तरह के होते हैं। ऐसे समय में पति को उनका सहारा बनना चाहिए और बच्चे की देखभाल में मदद करनी चाहिए। महिलाएं रात-रात भर जागकर बच्चे को ब्रेस्टफीड कराती हैं। इससे उनकी नींद पूरी नहीं हो पाती। ऐसे समय में पति की जिम्मेदारी बनती है कि वह पत्नी और बच्चे, दोनों की केयर करे। इसके अलावा बच्चे के बड़े होने के दौरान भी पुरुष को पेरेंटिंग में बराबर की भूमिका निभानी चाहिए। ध्यान रखें कि पेरेंटिंग सिर्फ महिलाओं का काम नहीं है। शादी और पेरेंटिंग के बीच संतुलन क्यों जरूरी? पार्टनर से पेरेंट्स बनने तक के सफर में कपल के रिश्ते में बदलाव आना स्वाभाविक है। हालांकि कई बार माता-पिता बच्चे की केयर में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि उन्हें एक-दूसरे के बारे में सोचने का समय ही नहीं मिलता। ऐसे में पार्टनर्स के बीच दूरियां बढ़ने लगती हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि बच्चे की देखभाल करना जरूरी है, लेकिन इसके साथ ही अपने रिश्ते में भी रोमांच बनाए रखना चाहिए। इसके लिए दोनों पार्टनर को मिलकर काम करने की जरूरत होती है। शादी और पेरेंटिंग के बीच असंतुलन का रिश्ते पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसे नीचे दिए ग्राफिक से समझिए- शादी और पेरेंटिंग के बीच संतुलन कैसे बनाएं? एक खुशहाल परिवार के लिए शादी और पेरेंटिंग के बीच संतुलन बनाना बेहद जरूरी है। इसमें से किसी भी एक पहलू को नजरअंदाज करने से आपसी रिश्ते और बच्चों की पेरेंटिंग पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। शादी और पेरेंटिंग के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। इसे नीचे दिए ग्राफिक से समझिए- आइए, अब ऊपर दिए पॉइंट्स के बारे में विस्तार से बात करते हैं। पेरेंटिंग की जिम्मेदारियों को बांटें किसी एक पर पेरेंटिंग के सारे कामों का दबाव न डालें। घर के कामों और बच्चे की देखभाल में बराबर की हिस्सेदारी होनी चाहिए। इससे न केवल कामों का बोझ कम होगा, बल्कि रिश्ते में सामंजस्य भी बना रहेगा। आसपास एक मजबूत सपोर्ट सिस्टम बनाएं पेरेंटिंग में माता-पिता के अलावा परिवार और दोस्तों की भी भूमिका होती है। ये लोग एक सपोर्ट सिस्टम की तरह काम करते हैं। इनकी मदद से कभी-कभी थोड़ी राहत मिलती है। एक डेली शेड्यूल बनाएं अपने दिनभर के कामों का एक शेड्यूल बनाएं। इससे दिनचर्या में संतुलन बना रहता है। साथ ही बच्चे और पार्टनर, दोनों के लिए समय निकालना आसान हो जाता है। बच्चे को अन्य फैमिली मेंबर्स के साथ रहना सिखाएं बच्चे को परिवार के अन्य सदस्यों के साथ समय बिताने की आदत डालें। इससे उनमें सोशल स्किल डेवलप होती है। साथ ही पेरेंट्स को एक-दूसरे के लिए क्वालिटी टाइम बिताने का मौका मिलता है। एक-दूसरे के लिए समय निकालें पेरेंटिंग की जिम्मेदारी के बीच पार्टनर्स के लिए एक-दूसरे के लिए समय निकालना चैलेंजिंग हो जाता है। लेकिन बच्चों की देखभाल करते हुए भी एक-दूसरे के लिए समय निकालना जरूरी है। इससे रिश्ते में रोमांस बरकरार रहता है। अपने लिए समय निकालने पर गिल्ट फील न करें कई बार माता-पिता पेरेंटिंग के बीच खुद के लिए समय निकालने पर गिल्ट महसूस करते हैं। ऐसे में इस बात का ध्यान रखें कि सेल्फ केयर भी जरूरी है। जब आप पेरेंटिंग से कुछ देर के लिए फ्री होते हैं तो अपने बारे में बेहतर तरीके से सोच पाते हैं। मूवी या डिनर डेट पर जाएं पेरेंटिंग के बीच समय निकालकर कभी-कभार बाहर जाने का प्लान करें। इससे न केवल आप दोनों एक साथ टाइम स्पेंड करेंगे, बल्कि रिश्ते में ताजगी महसूस करेंगे। बच्चों के सामने कभी भी झगड़ा न करें बच्चों के सामने बात-बहस और विवाद से बचें। यह उन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। उन्हें इनसिक्योरिटी फील हो सकती है। एक-दूसरे से खुलकर बातें करें कम्युनिकेशन किसी भी रिश्ते की नींव होती है। अगर आप अपनी भावनाओं और चिंताओं को खुलकर शेयर करते हैं तो रिश्ते में ईमानदारी बनी रहेगी।