सिंगल पेरेंटिंग, जैसा कि शब्द से ही इसका अर्थ जाहिर है, इसमें बच्चे की परवरिश का जिम्मा किसी एक व्यक्ति पर होता है और उसे ही माता-पिता दोनों की भूमिका निभानी होती है। आपके आसपास भी ऐसे बहुत से लोग देखने को मिल जाएंगे, जो अकेले दम पर अपने बच्चे की परवरिश करते हैं। यूनाइटेड नेशंस की ‘प्रोग्रेस ऑफ द वर्ल्ड वुमन 2019-2020’ रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में करीब 1.3 करोड़ सिंगल मदर हैं, जिनका परिवार पूरी तरह से उन पर निर्भर है। वहीं 3.2 करोड़ सिंगल मदर जॉइंट फैमिली में रह रही हैं। ये आंकड़ा दर्शाता है कि भारत में बड़ी संख्या में सिंगल मदर्स हैं, जो अकेले या परिवार की मदद से अपने बच्चे की परवरिश कर रही हैं। सिंगल पेरेंटिंग अपने आप में एक चुनौतीपूर्ण काम है। उसमें भी अगर पेरेंट वर्किंग है तो ये और ज्यादा चैलेंजिंग हो जाता है। वर्किंग सिंगल पेरेंट को अपने काम और बच्चे की जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाने में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। हालांकि थोड़ी सी समझदारी और टाइम मैनेजमेंट के साथ सिंगल पेरेंटिंग को आसान बनाया जा सकता है। आज रिलेशनशिप कॉलम में बात सिंगल पेरेंटिंग की। साथ ही जानेंगे कि- सिंगल पेरेंटिंग क्या है? जब एक व्यक्ति अकेले ही अपने बच्चे की परवरिश करता है तो उसे सिंगल पेरेंटिंग कहते हैं। इसका मतलब ये है कि बच्चा अपनी मां या पिता में से सिर्फ एक के साथ रहता है और वही बच्चे की सभी जिम्मेदारियां निभाता है। यह तब होता है, जब माता-पिता एक-दूसरे से तलाक ले लेते हैं अथवा सेपरेट हो जाते हैं। पेरेंट्स में से किसी का एक निधन हो जाता है या जब कोई अकेले ही बच्चे की परवरिश करने का निर्णय लेता है। इसके अलावा अगर कोई महिला सिंगल पेरेंट बनना चाहती है तो वह IUI (इंट्रा यूटेराइन इन्सेमिनेशन) या IVF (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) के जरिए कंसीव कर सकती है या फिर बच्चा गोद ले सकती है। वहीं अगर कोई पुरुष सिंगल पेरेंट बनना चाहता है तो वह बच्चा गोद ले सकता है या सेरोगेसी की मदद ले सकता है। बच्चे और पेरेंट दोनों के लिए चुनौतीपूर्ण है सिंगल पेरेंटिंग जहां बच्चे की सारी जिम्मेदारी निभाने के साथ खुद को आर्थिक रूप से मजबूत बनाना या अपनी वर्किंग लाइफ को मैनेज करना सिंगल पेरेंट के लिए असान नहीं होता है। वहीं ये बच्चे के लिए भी एक उतार-चढ़ाव से भरी यात्रा होती है। बच्चे को कभी-कभार यह लग सकता है कि वह अपने जीवन में पूरी तरह से माता या पिता के प्यार से वंचित रह गया है। इसके अलावा सिंगल पेरेंट चाइल्ड को कभी-कभी समाज में भेदभाव का सामना करना पड़ सकता है, जिससे उसका आत्मविश्वास कमजोर हो सकता है। अगर बच्चे के माता-पिता अलग रहते हैं तो उसे अपनी स्थिति के बारे में शर्मिंदगी महसूस हो सकती है। खासकर तब, जब दोस्त उसके परिवार के बारे में सवाल पूछते हैं। सिंगल पेरेंटिंग में परिवार की भूमिका अगर परिवार के सदस्य सिंगल पेरेंट की मदद करते हैं तो ये उसके लिए आसान हो जाता है। अगर पेरेंट वर्किंग है तो परिवार के लोग बच्चे की देखभाल में सहयोग कर सकते हैं। जैसे बच्चे को स्कूल के लिए तैयार करना, उसका होमवर्क कराना और उसके साथ खेलना। इसके अलावा सिंगल पेरेंट को कभी-कभी आर्थिक संकट का सामना भी करना पड़ता है। इस स्थिति में फैमिली मेंबर्स उनकी मदद कर सकते हैं। सिंगल पेरेंटिंग में समाज की भूमिका समाज का एक तबका आज भी सिंगल पेरेंट और चाइल्ड को अच्छी निगाह से नहीं देखता है। खासकर तब, जब महिलाएं अपने पति से अलग होने का फैसला लेती हैं। शायद यही वजह है कि आज भी बहुत सी महिलाएं टॉक्सिक रिलेशन में होने के बावजूद रिश्ते से अलग नहीं हो पातीं। जो महिलाएं ये फैसला ले भी लेती हैं, समाज में उन्हें उनके कैरेक्टर को लेकर जज किया जाता है। इसका सिंगल पेरेंट की मेंटल हेल्थ पर नेगेटिव असर पड़ता है। समाज के लोगों को सिंगल पेरेंट और बच्चे को सपोर्ट करना चाहिए। उनके प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए। इससे उन्हें अपनी परिस्थितियों से लड़ने की ताकत मिलती है। सिंगल पेरेंटिंग का बच्चों पर प्रभाव सिंगल पेरेंटिंग बच्चे को पॉजिटिव और नेगेटिव दोनों तरह से प्रभावित करता है। जहां उनका अपने पेरेंट के साथ रिश्ता मजबूत होता है। वहीं उन्हें अक्सर अकेलेपन का भी सामना करना पड़ता है। नीचे ग्राफिक से इसे समझिए- सिंगल पेरेंटिंग को ऐसे बनाएं आसान सिंगल पेरेंटिंग चुनौतीपूर्ण है, लेकिन कुछ बातों काे ध्यान में रखकर इसे आसान बनाया जा सकता है। नीचे दिए ग्राफिक से इसे समझिए- सिंगल पेरेंटिंग में न करें ये गलतियां सिंगल पेरेंटिंग में थोड़ी सी लापरवाही भी बच्चे को बिगाड़ सकती है। इसलिए इसमें कुछ बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। इसे नीचे पॉइंटर्स से समझिए-