रिलेशनशिप- सेलिब्रिटीज अपना रहे पांडा पेरेंटिंग स्टाइल:यह क्या है, 10 जरूरी बातें, रिलेशनशिप कोच से जानें यह कैसे फायदेमंद

पांडा को धरती के सबसे प्यारे जानवरों में से एक माना जाता है। वे खुद के लिए बेहद प्रोटेक्टिव होते हैं। उनकी पेरेंटिंग स्टाइल अन्य जानवरों की तुलना में काफी अलग होती है। वे अपने बच्चों को कंट्रोल करने के बजाय स्वतंत्र छोड़ देते हैं। हालांकि वे उन पर दूर से नजर रखते हैं और कोई भी परेशानी आने पर उनकी सुरक्षा करते हैं। आजकल पांडा पेरेंटिंग स्टाइल की खूब चर्चा हो रही है। तमाम सेलिब्रिटीज इस पेरेंटिंग स्टाइल को अपना रहे हैं। यह स्टाइल बच्चों को स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने और आगे बढ़ने की अनुमति देती है। पांडा पेरेंटिंग बच्चों को गलतियां करने और उससे सीखने पर जोर देती है। तो आज रिलेशनशिप कॉलम में हम पांडा पेरेंटिंग के बारे में बात करेंगे। साथ ही जानेंगे कि- पांडा पेरेंटिंग क्या है? पांडा पेरेंटिंग एक ऐसी पेरेंटिंग स्टाइल है, जिसमें बच्चों को सपोर्ट और गाइडेंस के साथ निर्णय लेने की स्वतंत्रता दी जाती है। जब बच्चे अपने फैसले खुद लेते हैं और खुद के लिए सोचते हैं तो शुरू से ही उनमें जिम्मेदारी की भावना आ जाती है। पांडा पेरेंटिंग का उद्देश्य बच्चों को बचपन से ही एक मजबूत आधार देना है। इससे उन्हें जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना करने और अपने लक्ष्यों को हासिल करने में मदद मिलती है। पांडा पेरेंटिंग के लिए करें ये 10 जरूरी काम पांडा पेरेंटिंग में माता-पिता का अपने बच्चों को इमोशनल प्यार और सपोर्ट देना जरूरी है। साथ ही उन्हें सुरक्षित और खुशहाल माहौल देना चाहिए, जिसमें वह खुलकर अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकें। इसके अलावा पांडा पेरेंटिंग में माता-पिता को कुछ बातों का विशेष ख्याल रखना चाहिए। इसे नीचे ग्राफिक से समझिए- आइए, अब ऊपर दिए पॉइंट्स के बारे में विस्तार से बात करते हैं। बच्चों को खुद से निर्णय लेने दें पांडा पेरेंटिंग में बच्चों को खुद से निर्णय लेने की स्वतंत्रता देना जरूरी है। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ता है। अगर बच्चा कोई गलती करता है तो उसे खुद से सीख मिलती है। उन्हें गलती करने की आजादी दें हर कोई अपनी गलती से ही सीखता है। बच्चों में ये क्षमता और तेज होती है। इसलिए बच्चों को गलती करने के लिए पर्याप्त स्पेस और आजादी देनी चाहिए। उन पर अपनी राय न थोपें पेरेंट्स को बच्चों पर अपनी राय थोपने के बजाय उनकी भी बात सुननी चाहिए। बच्चा क्या पढ़ना चाहता है, क्या सीखना चाहता है। इसके लिए उसकी राय का सम्मान करें। बच्चों की जरूरतों का ख्याल रखें पांडा पेरेंटिंग में बच्चों की फिजिकल, मेंटल और इमोशनल जरूरतों का पेरेंट्स को ध्यान रखना चाहिए। इसके लिए बच्चे की भावनाओं और विचारों को समझें। उनकी डाइट, नींद और सुरक्षा की जिम्मेदारी निभाएं। बच्चों की पसंदीदा एक्टिविटीज पर लगाम न लगाएं बच्चों की पसंदीदा एक्टिविटीज फिजिकल और मेंटल ग्रोथ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अगर बच्चे को क्रिकेट, फुटबॉल या कोई अन्य खेल पसंद है तो उस पर लगाम न लगाएं। इससे वे खुश और संतुष्ट महसूस करते हैं। साथ ही शारीरिक रूप से फिट भी रहते हैं। बच्चों के लिए खुशनुमा माहौल बनाएं जब बच्चा सुरक्षित और प्यार भरे माहौल में रहता है तो वे अपनी भावनाओं को सही तरीके से व्यक्त कर पाता है। खुशनुमा माहौल बच्चों को तनावमुक्त और खुश रखता है। बच्चों को लेकर ओवरप्रोटेक्टिव न हों पांडा पेरेंटिंग में बच्चों को लेकर ओवरप्रोटेक्टिव नहीं होना चाहिए। जब पेरेंट्स बच्चे को हर कदम पर रोकते या कंट्रोल करते हैं तो उन्हें अपनी गलतियों से सीखने का मौका नहीं मिलता। वे कुछ भी नया करने से डरते हैं। गलती पर डांटने के बजाय उन्हें समझाएं अगर बच्चा कोई गलती कर रहा है तो डांटने के बजाय उसे समझाएं कि उसने क्या गलती की है। उसे गलती सुधारने का मौका जरूर दें। इससे वह बार-बार अपनी गलती नहीं दोहराएगा। बच्चे की तारीफ करने से न हिचकिचाएं अच्छे काम के लिए बच्चों की तारीफ करने से नहीं हिचकिचाना चाहिए। इससे वे और बेहतर करने की कोशिश करते हैं। तारीफ से बच्चों में सकारात्मक सोच विकसित होती है। अगर बच्चा कुछ अच्छा काम करता है तो उसे जरूर महसूस कराएं कि आप कितने खुश हैं। पांडा पेरेंटिंग से बच्चों पर पड़ते ये सकारात्मक प्रभाव पांडा पेरेंटिंग का बच्चों की फिजिकल और मेंटल हेल्थ पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इससे उनका आत्मविश्वास तो बढ़ता ही है, साथ ही वे बचपन से किसी भी स्थिति से निपटने के लिए तैयार रहते हैं। नीचे दिए ग्राफिक से पांडा पेरेंटिंग के फायदे समझिए- पांडा पेरेंटिंग में माता-पिता इन बातों का रखें ध्यान पांडा पेरेंटिंग के फायदे तो ढेर सारे हैं, लेकिन इसके कुछ संभावित नुकसान भी हैं। हालांकि पेरेंट्स अपनी समझदारी से इसे हल कर सकते हैं। इसे नीचे पॉइंटर्स से समझिए-