रिलेशनशिप- 8 वजहों से बच्चे नहीं सुनते पेरेंट्स की बात:उन्हें कैसे समझाएं, रखें 8 बातों का ध्यान, साइकोलॉजिस्ट के जरूरी सुझाव

बहुत से पेरेंट्स की शिकायत रहती है कि बच्चे उनकी बात नहीं सुनते हैं। एक ही बात को बार-बार दोहराने पर भी उन पर कोई असर नहीं होता है। थोड़ा सा भी सख्ती दिखाने पर वे तुरंत बहस करने के लिए तैयार हो जाते हैं। लेकिन क्या कभी हमने खुद से ये पूछा है कि आखिर क्यों बच्चे हमारी बात नहीं मानते? क्या सिर्फ बच्चे ही गलत हैं या हमारी परवरिश में भी कुछ कमी है। आज रिलेशनशिप कॉलम में हम ये जानने की कोशिश करेंगे कि बच्चे आखिर पेरेंट्स की बातों को क्यों अनसुनी करते हैं। साथ ही जानेंगे कि इसके लिए पेरेंट्स को क्या करना चाहिए। बच्चे इसलिए नहीं सुनते पेरेंट्स की बातें बच्चे जैसे-जैसे बड़े होते हैं, वे अपनी पहचान बनाने की कोशिश करते हैं। वे स्वतंत्रता चाहते हैं और पेरेंट्स के हर फैसले को स्वीकार नहीं करना चाहते हैं। इसके बजाय वे अपने दोस्तों से प्रभावित होते हैं और उनकी बातों को अधिक महत्व देते हैं। कई बार पेरेंट्स और बच्चे के बीच कम्युनिकेशन की कमी होने से गलतफहमी पैदा हो जाती है। बच्चे को लगता है कि पेरेंट्स उसे समझते नहीं हैं। कुछ बच्चे माता-पिता का ध्यान आकर्षित करने के लिए उनकी बातें नहीं सुनते हैं। वे चाहते हैं कि माता-पिता उनसे बात करें और उनकी भावनाओं को समझें। वहीं अगर पेरेंट्स स्वयं अपनी बातों पर अमल नहीं करते हैं तो भी बच्चे उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लेते हैं। अगर बच्चे को पेरेंट्स से प्यार नहीं मिलता तो भी वह उनकी बातों को अनसुना करते हैं। इसके अलावा और भी कुछ कारण हैं, जिनकी वजह से बच्चे अपने पेरेंट्स की बातें नहीं सुनते हैं। इसे नीचे दिए ग्राफिक से समझिए- आइए, अब ऊपर दिए पॉइंट्स के बारे में विस्तार से बातें करते हैं। समझ की कमी से बच्चों की मेंटल और इमोशनल ग्रोथ डेवलपिंग स्टेज में होती है। ऐसे में उन्हें यह समझने में मुश्किल होती है कि पेरेंट्स क्या चाहते हैं। उनकी सोच का दायरा भी सीमित होता है। इससे वे पेरेंट्स की बातों को नजरअंदाज कर सकते हैं। खराब परवरिश और अनुशासन की कमी से खराब परवरिश की वजह से बच्चों में अनुशासन नहीं होता है। ऐसे में उनमें पेरेंट्स की बातों को न मानने की आदत विकसित हो जाती है। वे नियमों और सीमाओं का सम्मान करना नहीं सीखते हैं। गलत परवरिश बच्चों को जिद्दी और अवज्ञाकारी बना सकती है। पेरेंट्स के खराब बर्ताव की वजह से अगर पेरेंट्स बच्चे के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते हैं तो वह भी उनका सम्मान नहीं करते हैं। चीखने-चिल्लाने, गाली-गलौज या शारीरिक दंड से भी बच्चे पेरेंट्स की बातों को कम सुनते हैं। पेरेंट्स के गलत उदाहरण बच्चे को गलत व्यवहार करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। पेरेंट्स के ऊंची आवाज में बात करने से पेरेंट्स के ऊंची आवाज में बात करने से बच्चे डर सकते हैं या चिढ़ सकते हैं। वे पेरेंट्स की बातों को सुनने के बजाय अपनी रक्षा करने पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। इससे बच्चे और पेरेंट्स के बीच तनाव बढ़ सकता है। अधिक स्वतंत्रता की जरूरत महसूस होने से उम्र में तेजी बड़े हो रहे बच्चे अपनी स्वतंत्रता की तलाश करते हैं। वह अपने निर्णय खुद लेना चाहते हैं। ऐसे में उन्हें लगता है कि पेरेंट्स उनकी स्वतंत्रता को सीमित कर रहे हैं। इससे वे पेरेंट्स की बात नहीं सुनते। ऐसा अक्सर टीनएज में होता है। पेरेंट्स द्वारा इग्नोर किए जाने से जब बच्चे महसूस करते हैं कि पेरेंट्स उन्हें इग्नोर करते हैं तो वह भी उनकी बातों को नजरअंदाज करने लगते हैं। बच्चे के विचार और भावनाओं का सम्मान करना जरूरी है, ताकि वे भी पेरेंट्स को सुनने और समझने का प्रयास करें। धमकियां और चेतावनी देने की वजह से जब पेरेंट्स अक्सर बच्चे को धमकियां या चेतावनी देते हैं तो बच्चे इनका प्रभाव कम समझने लगते हैं। वे यह सोचने लगते हैं कि चेतावनी देने से कोई फर्क नहीं पड़ता और वे इसे गंभीरता से नहीं लेते। जिद्दी स्वभाव की वजह से कुछ बच्चे स्वभाव से ही जिद्दी होते हैं और वे पेरेंट्स की बातों को मानने के लिए तैयार नहीं होते हैं। वे अपनी बात मनवाने के लिए अड़ जाते हैं और पेरेंट्स को चुनौती देते हैं। बच्चे को ऐसे समझाएं अपनी बातें बच्चों के साथ बात करते समय शांत और धैर्यवान रहें। चिल्लाने या धमकी देने से बचें, क्योंकि इससे वे और भी अधिक डिफेंसिव हो सकते हैं। इसके बजाय उनकी बात ध्यान से सुनें और उन्हें अपनी बात स्पष्ट रूप से समझने का मौका दें। इसके अलावा पेरेंट्स को कुछ और बातों का ध्यान रखना चाहिए। इसे नीचे दिए ग्राफिक से समझिए- अपनी बात मनवाने के लिए बच्चे को मारना-पीटना गलत कुछ पेरेंट्स अपनी बात मनवाने के लिए बच्चे को मारने-पीटने और डांटने का तरीका अपनाते हैं, जो कि बिल्कुल गलत है। इससे बच्चे की मानसिक और भावनात्मक स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। शारीरिक दंड से बच्चों को चोट लग सकती है। लगातार डांट-फटकार और मारपीट से बच्चों में डर, स्ट्रेस और डिप्रेशन जैसी मेंटल प्रॉब्लम्स हो सकती हैं। इससे बच्चों का आत्मविश्वास कम होता है और उनमें हीन भावना पैदा होती है। मारपीट और डांट-फटकार से बच्चे और पेरेंट्स के बीच का रिश्ता खराब हो जाता है। बच्चे अपने पेरेंट्स से डरने लगते हैं और उनसे अपनी बातें शेयर करना बंद कर देते हैं। बच्चे के दिल में पेरेंट्स के लिए सम्मान खत्म हो जाता है। इसलिए अनुशासन का तरीका ऐसा होना चाहिए, जो बच्चों को सही मार्गदर्शन दे, ना कि उन्हें डराए या चोट पहुंचाए।