शाम को गोलियों की आवाज आई, पूरी रात गांव में कोई सोया नहीं, यहां सिर्फ सेना ही नजर आ रही है

जिस इलाके में कल यानी 7 सितंबर को भारत-चीन सीमा पर गोली चली, उससे 5 किमी दूर है चुशूल। सोनम शेरिंग उसी गांव में रहते हैं और सेना के लिए पोर्टर का काम करते हैं। शेरिंग कहते हैं कि कल शाम 6 बजे के आसपास की बात है। बॉर्डर फ्लैग मीटिंग पाइंट से एक किमी दूर गुरुंग हिल पर चीन की सेना चढाई की कोशिश कर रही थी। उन्हें और उनके बाकी साथी पोर्टर को गोलियों की आवाज सुनाई दी।

डॉ जिगमेट वॉन्गचुक चुशूल गांव के मेडिकल ऑफिसर हं, जो कल ही एलएसी पर भारतीय सेना को दवाइयां पहुंचाने गए थे।

उन्होंने गांव वापस लौटकर जब ये बात बताई तो पूरी रात कोई गांव वाला सो नहीं पाया। उनके गांव के बुजुर्ग बता रहे थे कि सरहद पर गोली की आवाज 1962 के बाद पहली बार सुनाई दी है।

कल ही चुशूल के मेडिकल ऑफिसर डॉ जिगमेट वॉन्गचुक एलएसी पर कुछ दवाइयां और पानी लेकर गए थे। वो बताते हैं ये दवाइयां लद्दाख स्काउट के दो सैनिकों के लिए लेकर गए थे। उन्होंने लद्दाख स्काउट के कमांडिंग ऑफिसर से मुलाकात भी की और उनसे ये भी कहा कि किसी को दवाई या इलाज की जरूरत हो तो उन्हें जरूर बताएं।

तस्वीर चुशूल गांव की है, जो उस जगह से बमुश्किल 5 किमी दूर है जहां कल गोली चली है। यहां करीब 170 परिवार रहते हैं।

वहीं चुशूल से सटे मानमिरक गांववाले कहते हैं कि पिछले एक हफ्ते से ही हालात बेहद खराब हैं। वो लोग सेना की सामान उठाकर ले जाने में मदद कर रहे हैं। इनमें सिर्फ पोर्टर ही नहीं, बौद्ध भिक्षु, सरकारी कर्मचारी, पूर्व सैनिक, स्टूडेंट और महिलाएं भी शामिल हैं। रिंगजिग भी उन पोर्टर में शामिल हैं जो ब्लैक टॉप माउंटेन तक समान उठाकर सेना के साथ गए थे।

1962 का युद्ध अक्टूबर के महीने में ही लड़ा गया था। गांववालों को डर है कि वो मनहूस अक्टूबर दोबारा तो नहीं होगा। वो सेना के ट्रक और मूवमेंट देखकर डरे हुए हैं। पूरी रात सड़कों से बस सेना की गाड़ियों की आवाजें आती हैं। लोग कह रहे हैं जितने गांववाले नहीं उससे चार गुना सैनिक नजर आ रहे हैं।

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तस्वीर उस ब्लैक टॉप इलाके की है, जहां पोर्टर और सेना की गाड़ियां सामान लेकर जा रही हैं।