शिव भक्त रावण रहता था सोने की लंका में, वह चाहता था कि शिवजी भी उसके साथ लंका में ही रहें, एक दिन रावण पूरे कैलाश पर्वत को उठाने लगा

दैनिक जीवन में क्रोध की वजह से कई बार बने बनाए काम बिगड़ जाते हैं। कभी-कभी हमें दूसरों की वजह से क्रोध आ जाता है। ऐसी स्थिति में भी धैर्य नहीं खोना चाहिए, हमें बुद्धिमानी से काम करना चाहिए। शिवजी और रावण से जुड़ा एक प्रसंग प्रचलित है। इस प्रसंग में रावण ने कैलाश पर्वत उठाने की कोशिश की थी, लेकिन शिवजी ने उस समय क्रोध नहीं किया, बल्कि धैर्य बनाए रखा और रावण को सबक भी सीखा दिया।

रावण को अपनी शक्ति पर बहुत घमंड था। वह शिवजी का परम भक्त था। रावण सोने की लंका में रहता था और शिवजी कैलाश पर्वत पर। एक दिन रावण ने सोचा कि उसके आराध्य देव शिवजी को भी सोने की लंका में ही रहना चाहिए।

ये सोचकर रावण कैलाश पर्वत की ओर निकल पड़ा। वह कैलाश पर्वत पहुंचा तो उसे शिवजी के वाहन नंदी मिले। नंदी ने रावण को प्रणाम किया, लेकिन रावण ने कोई उत्तर नहीं दिया। नंदी ने फिर उससे बात की तो रावण ने उसका अपमान करते हुए कहा कि वह शिवजी को लंका ले जाने के लिए आया है।

नंदी ने कहा भगवान को उनकी इच्छा के विरुद्ध कोई भी कहीं नहीं ले जा सकता। रावण को अपनी शक्ति पर बहुत घमंड था। उसने कहा कि अगर शिव नहीं माने तो वह पूरा कैलाश पर्वत ही उठाकर लंका ले जाएगा।

इसके बाद रावण ने कैलाश पर्वत उठाने के लिए अपना हाथ एक चट्टान के नीचे रखा। शिवजी भी रावण को देख रहे थे। रावण की वजह से कैलाश हिलने लगा। लेकिन, शिव शांति से बैठे रहे। जब रावण ने अपना पूरा हाथ कैलाश पर्वत के नीचे फंसा दिया तो भगवान ने मात्र अपने पैर के अंगूठे से कैलाश का भार बढ़ा दिया।

कैलाश के भार से रावण का हाथ पर्वत के नीचे ही फंस गया। तब रावण ने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए शिव तांडव स्तोत्र की रचना की। जिसे सुनकर शिवजी प्रसन्न हुए और उन्होंने उसे मुक्त कर दिया।

इस प्रसंग की सीख यही है कि हमें दूसरों के अहंकार की वजह से क्रोधित नहीं होना चाहिए। धैर्य बनाए रखना चाहिए। इस कथा में शिवजी ने रावण की मूर्खता और अहंकार पर क्रोध नहीं किया, बल्कि खेल-खेल में ही उसे सबक सीखा दिया।

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