श्रीकृष्ण और मयासुर के प्रसंग की सीख:बिना किसी स्वार्थ के करें दूसरों की मदद, भविष्य को ध्यान में रखकर लेना चाहिए निर्णय

महाभारत के प्रसंगों में जीवन प्रबंधन के सूत्र छिपे हैं। इन सूत्रों को समझकर जीवन में उतार लेने से हमारी सभी समस्याएं खत्म हो जाती हैं। महाभारत का एक प्रसंग खांडव वन दहन के समय का है। इंद्रप्रस्थ के पास खांडव वन में जब आग लग गई। उस अग्नि में एक राक्षस, जिसका नाम मयासुर था, वह भी जलने को था। अर्जुन ने उसे देखा और बिना भेदभाव के उसे बचा लिया। मयासुर ने कहा कि आपने मुझे जीवनदान दिया है। बताइए, मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं? अर्जुन ने उत्तर दिया कि आपका यह भाव ही मेरे लिए पर्याप्त है। अब आप मुक्त हैं और प्रेमपूर्वक जीवन बिताइए। लेकिन मयासुर ने फिर से विनम्रतापूर्वक आग्रह किया कि मैं दानवों का विश्वकर्मा हूं। मैं अद्भुत निर्माण करने में निपुण हूं। मैं आपके लिए कुछ सेवा अवश्य करना चाहता हूं। अर्जुन ने फिर मना कर दिया, लेकिन सुझाया कि यदि आप सेवा करना ही चाहते हैं तो श्रीकृष्ण से पूछिए। श्रीकृष्ण सदा दूरदृष्टि से निर्णय लेते हैं, वे मुस्कराए और बोले कि तुम पांडवों के ज्येष्ठ भ्राता धर्मराज युधिष्ठिर के लिए एक अद्वितीय सभा भवन बना दो, ऐसा भवन कि संसार उसे देखकर विस्मित रह जाए। मयासुर ने उस समय की सबसे अद्भुत वास्तुकला के साथ एक सभा भवन का निर्माण किया। यही सभा भवन बाद में महाभारत की महत्वपूर्ण घटनाओं का केंद्र बना, लेकिन इसी भवन ने इंद्रप्रस्थ को समृद्धि और पांडवों को प्रतिष्ठा दी थी। प्रसंग की सीख