शास्त्रों में चार युग बताए गए हैं। अभी कलियुग चल रहा है। चार युगों में सबसे पहले सतयुग, फिर त्रेतायुग, द्वापर युग और अंत में कलियुग आता है। द्वापर युग में महाभारत युद्ध खत्म होने के बाद श्रीकृष्ण अपनी द्वारिका आ गए थे। द्वारिका में कुछ समय तक रहने के बाद श्रीकृष्ण अपने धाम यानी वैकुंठ चले गए।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य और भागवत कथाकार पं. मनीष शर्मा के अनुसार श्रीकृष्ण के जाने क बाद अर्जुन युद्ध हारने लगे थे। लगातार हार मिलने से सभी पांडव दुखी थे। तब युधिष्ठिर ने अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र परिक्षित को राजा बनाया था। इसके बाद युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव द्रौपदी के साथ हिमालय की ओर यात्रा पर निकल गए। इसी यात्रा में सभी पांडव और द्रौपदी का अंत हुआ। सिर्फ युधिष्ठिर सशरीर स्वर्ग पहुंचे थे।
परिक्षित ने युद्ध में हरा दिया था कलियुग को
श्रीकृष्ण के जाने के बाद धरती पर कलियुग का आगमन हो गया था। राजा परिक्षित ने कलियुग को युद्ध में हरा दिया था। इसके बाद कलियुग ने प्रार्थना की और धरती पर रहने के लिए स्थान मांगा। तब परिक्षित ने कलियुग को रहने के लिए द्युत यानी जुआ, हिंसा, व्यभिचार और मदिरा वाले स्थान दे दिए। इसके बाद कलियुग ने एक स्थान और मांगा। तब परिक्षित ने कलियुग को स्वर्ण यानी सोने में भी रहने की स्थान दे दिया। जो लोग इन पांचों का त्याग करते हैं, कलियुग उन पर हावी नहीं होता है।
कलियुग की एक और महिमा है, इस युग में केवल भगवान का नाम स्मरण करने और जपने से ही पुण्य फलों की प्राप्ति हो जाती है। साथ ही, कलियुग में दान करना श्रेष्ठ माना गया है।
कलियुग में श्रीमद् भागवत का महत्व
भगवान श्रीकृष्ण ने अपने धाम लौटने से पहले अक्रूर से बात की थी। उस समय समय अक्रूर ने भगवान से प्रार्थना की थी कि आपके जाने के बाद कलियुग का प्रभाव हो जाएगा। लोग अधर्म की ओर बढ़ेंगे। तब भगवान ने अक्रूर को श्रीमद् भागवत का उपदेश किया था। श्रीकृष्ण ने कहा था कि इस भागवत में शब्द स्वरूप में इस धरा पर निवास करुंगा। श्रीमद् भागवत का पाठ करने से और इसके उपदेशों का पालन करने से हमारी सभी परेशानियां खत्म हो सकती हैं।