केंद्र सरकार आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए जाने वाले राजनेताओं पर आजीवन पाबंदी लगाने के खिलाफ है। केंद्र ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में इसका विरोध किया। कहा कि 6 साल के लिए डिसक्वालिफिकेशन पर्याप्त है।इस तरह की अयोग्यता पर फैसला लेना संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में दोषी नेताओं के खिलाफ आजीवन बैन लगाने वाली याचिका पर सुनवाई हुई। केंद्र ने कहा, ‘याचिका की मांग कानून को दोबारा लिखने या संसद को किसी खास तरीके से कानून बनाने का निर्देश देने के जैसी है। ये पूरी तरह से न्यायिक समीक्षा की शक्तियों के विपरीत है।’ वकील अश्विनी उपाध्याय ने 2016 में जनहित याचिका लगाई थी, जिसमें जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 8 और 9 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई। उन्होंने पूछा था कि राजनीति पार्टियों को यह बताना चाहिए कि आखिर वे अच्छे छवि वाले लोगों को क्यों नहीं खोज पाते हैं। इसमें कहा गया कि देश में सांसदों-विधायकों के खिलाफ क्रिमिनल केसों को जल्द खत्म किया जाए और दोषी राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाया जाए। केंद्र ने कहा… आजीवन अयोग्यता वह अधिकतम पैनल्टी है जो प्रावधानों के तहत लगाई जा सकती है। ऐसा अधिकार संसद के पास है। यह कहना अलग है कि एक शक्ति मौजूद है और यह कहना दूसरी बात है कि इसका हर मामले में अनिवार्य रूप से प्रयोग किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में केंद्र का जवाब… सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में दिया था फैसला
अप्रैल 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला देते हुए कहा था कि कम से कम 2 साल की सजा पाने वाले विधायकों और सांसदों को सदन से तत्काल प्रभाव से निष्कासित कर दिया जाए। इसमें अपील करने की 3 महीने की अवधि को नकार दिया गया था। संविधान के अनुच्छेद102 और 191 का हवाला देते हुए केंद्र ने कहा था कि संविधान ने अयोग्यता को नियंत्रित करने वाले कानून बनाने के लिए संसद को अधिकार दिया है। संसद के पास अयोग्यता के आधार और अयोग्यता की अवधि दोनों निर्धारित करने की शक्ति है। ……………………………….
सुप्रीम कोर्ट से जुड़ी ये खबर भी जरूर पढ़ें… सुप्रीम कोर्ट बोला- गवाही की कोई उम्र सीमा नहीं होती: 7 साल की बच्ची ने बयान दिया, मां के हत्यारे पिता को उम्रकैद की सजा दिलाई सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि गवाह की कोई उम्र सीमा नहीं होती है। अगर कोई बच्चा गवाह देने में सक्षम है तो उसकी गवाही उतनी ही मान्य होगी, जितनी किसी और गवाह की। दरअसल, कोर्ट ने 7 साल की बच्ची के गवाह के आधार पर हत्यारे पति को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई है। बच्ची ने अपने पिता को मां की हत्या करते देखा था। पूरी खबर पढ़ें…
अप्रैल 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला देते हुए कहा था कि कम से कम 2 साल की सजा पाने वाले विधायकों और सांसदों को सदन से तत्काल प्रभाव से निष्कासित कर दिया जाए। इसमें अपील करने की 3 महीने की अवधि को नकार दिया गया था। संविधान के अनुच्छेद102 और 191 का हवाला देते हुए केंद्र ने कहा था कि संविधान ने अयोग्यता को नियंत्रित करने वाले कानून बनाने के लिए संसद को अधिकार दिया है। संसद के पास अयोग्यता के आधार और अयोग्यता की अवधि दोनों निर्धारित करने की शक्ति है। ……………………………….
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