दो दिन पहले मैं कार देखो डॉट कॉम पर सेकंड हैंड कार सर्च कर रहा था। यूज्ड कार के ऑप्शन में एक ऑल्टो-800 नजर आई। कार के डिस्क्रिप्शन में इसका मॉडल 2015 बताया गया था और पांच फोटोज भी अपलोड करके रखी गईं थीं। 33 हजार किमी कार चली थी और इसकी कीमत महज 1 लाख रुपए बताई गई थी।
भास्कर की टीम ने डिस्क्रिप्शन में दिए नंबर पर कॉल किया तो फोन उठाने वाले ने खुद का नाम जितेंद्र टटवाल बताया। उसने बताया कि मैं आर्मी में हूं और अभी जैसलमेर में पोस्टेड हूं। अभी पैसे की जरूरत है इसलिए कार बेच रहा हूं। बोला, पेमेंट आपको कार आने पर ही करना है। कार कैसे आएगी? ये पूछने पर कहा, आर्मी का ट्रांसपोर्ट है। मैं जैसलमेर से बुक कर दूंगा और अगले दिन ही गाड़ी भोपाल आ जाएगी। वहां हमारे दो लोग आएंगे और गाड़ी घर तक छोड़ देंगे।
इसके बाद उस शख्स ने किसी अन्य व्यक्ति से बात करवाते हुए कहा कि ये आर्मी में ट्रांसपोर्ट का काम देखते हैं, आप इनसे बात कीजिए। ये आपको जैसलमेर से गाड़ी भोपाल भेजने का चार्ज बताएंगे। बात करने वाले ने खुद को आर्मी का जवान बताया और 6 हजार 150 रुपए ट्रांसफर करने की बात कही। इसके बाद जितेंद्र टटवाल नाम के व्यक्ति ने हमें अपना गूगल पे नंबर दिया और कहा कि पेमेंट कर दीजिए।
जैसे ही आप पेमेंट करेंगे, मैं रिसिप्ट शेयर कर दूंगा और अगले दिन गाड़ी पहुंच जाएगी। हालांकि, शक होने पर हमने उससे रेजिमेंट और यूनिट के बारे में पूछा तो वो कुछ बता नहीं सका। हमने उससे आइडेंटिटी डॉक्युमेंट्स, घर का एड्रेस, नंबर मांगा तो इधर-उधर की बातें करने लगा और फिर फोन स्विच ऑफ कर दिया।
आर्मी के नाम पर चल रहे फ्रॉड की यह सिर्फ एक बानगी है। हम अलर्ट थे तो पैसे गूगल पे नहीं किए और ठगी का शिकार होने से बच गए। इसके बाद हमने पड़ताल की तो पता चला कि इंडियन आर्मी के नाम पर फर्नीचर, कैमरा, मोबाइल, कार से लेकर बुलेट तक का लालच देकर लोगों को ठगा जा रहा है।
ज्यादातर मामलों में ट्रांसपोर्ट फीस के नाम पर पैसे डलवाए जाते हैं। कुछ मामलों में कहा जाता है कि कस्टम विभाग ने सामान जब्त कर लिया है इसलिए कुछ पैसे डालना पड़ेगा वरना सामान की डिलिवरी नहीं हो पाएगी। सस्ते के लालच में लोग आ जाते हैं और पैसे डाल देते हैं।
जयपुर के सायबर एक्सपर्ट मुकेश चौधरी कहते हैं, देशभर में ऐसे रैकेट चल रहे हैं। राजस्थान में भरतपुर और अलवर जिले में ये लोग काफी ज्यादा एक्टिव हैं और पिछले दो-तीन सालों से इस तरह की ठगी बढ़ी है। पहले ये घटनाएं ओएलएक्स के जरिए बहुत होती थीं, लेकिन अब ये लोग दूसरे प्लेटफॉर्म्स पर भी शिफ्ट हो गए हैं।
इन लोगों के पास आर्मी पर्संस के कैंटीन कार्ड, लिकर कार्ड की कॉपी भी होती है। कई बार फोटोकॉपी की दुकानों से भी यह पैसे देकर आइडेंटिटी ले लेते हैं और इसी के जरिए सिम लेते हैं और लोगों को फंसाते हैं। ऑफर ऐसी चीजों का देते हैं, जिनके लालच में लोग जल्दी आ जाते हैं। जैसे सस्ते में बुलेट, कैमरा, गांव वालों को बोलेरा बेचने का ऑफर देते हैं।
कई केस में ये भी सामने आया है कि ये लोग गांव के लोगों की आइडेंटिटी कार्ड ले लेते हैं और उस पर ही जालसाजी करते हैं। ऐसे में कोई मामला जांच तक पहुंचता भी है तो जिसकी आईडी होती है, वो फंसता है। बहुत से बैंक अब ऑनलाइन अकाउंट खोलने की परमिशन दे रहे हैं। जहां सिर्फ डॉक्युमेंट्स अपलोड करके अकाउंट खुल जाता है। कोई वेरिफिकेशन नहीं होता। इसका फायदा जालसाज उठाते हैं।
ये लोग इंडियन आर्मी, सीआरपीएफ, बीएसएफ का नाम इसलिए लेते हैं, क्योंकि लोग इन पर यकीन जल्दी कर लेते हैं। मुकेश कहते हैं, बचने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि किसी भी अंजान व्यक्ति को ऑनलाइन पैसा ट्रांसफर नहीं करें। फेस टू फेस मिलने और सामान की डिलीवरी के बाद ही पेमेंट करें।
ठगी सिर्फ ऑनलाइन पेमेंट करवाकर ही नहीं हो रही, बल्कि क्यू आर कोड भेजकर भी हो रही है। सायबर एक्सपर्ट चातक वाजपेयी के मुताबिक, इंदौर में कुछ ही दिनों पहले राखी के एक होलसेल व्यापारी के पास डेढ़ लाख रुपए की राखी खरीदने का ऑर्डर आया था। फोन करने वाले ने खुद को इंडियन आर्मी का बताया और कहा कि मैं आपको पैसे गूगल पे पर भेज रहा हूं, आप राखी पहुंचा दें। पहले उसने 10 रुपए ट्रांसफर किए और पूछा कि पेमेंट आ गया न। व्यापारी ने कहा कि हां दस रुपए आए हैं। फिर उसने कहा, अब मैं आपको एक क्यू आर कोड भेज रहा हूं। उस पर क्लिक कीजिए। आपको बाकी का पेमेंट मिल जाएगा। क्यू आर कोड पर क्लिक करके आगे का प्रोसीजर करने पर व्यापारी के साठ हजार रुपए चले गए।
चातक कहते हैं, मैं 2013 से इस तरह के फ्रॉड पर रिसर्च कर रहा हूं। यह काम 18 से 40 साल की उम्र के लोग करते हैं। दिल्ली में इनके नेटवर्क वाले डाटा खरीदने का काम भी करते हैं और ये लोग किसी गांव में खेत-खलिहान से बैठकर लोगों को नए-नए तरह के ऑफर देते हैं और फंसाने की कोशिश करते हैं। आठ-दस मामलों में से किसी एक में पकड़ा भी गए तो थोड़ा बहुत ले-देकर सेटलमेंट कर लेते हैं और बाहर हो जाते हैं। मुकेश कहते हैं, इस तरह की जालसाजी इंडियन आईटी एक्ट में नॉन बेलेबल ऑफेंस है, इसलिए गिरफ्तारी नहीं होती। यदि किसी केस में मामला कोर्ट तक गया तब भी बाहर ही सेटलमेंट हो जाता है और अपराधी बच जाते हैं।
स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (एसओजी) के डीआईजीपी शरद कविराज (जयपुर) ने बताया कि, जो फोन नंबर वेरिफाइड नहीं होते, उनके जरिए ऐसे फ्रॉड होते हैं। बचाव का एक तरीका ये भी है कि वॉट्सऐप पर वीडियो कॉल करके बात की जाए और बात करने वाले की फोटो भी ली जाए। अक्सर जालसाज फेसबुक, वॉट्सऐप पर दोस्ती करके भी फंसाने की कोशिश करते हैं।
पार्सल भेजने का कहकर फ्रॉड करना कॉमन है। फर्जी वेबसाइट की लिंक तक शेयर कर देते हैं और कहते हैं आप ऑर्डर की ट्रैकिंग कर सकते हो। फिर कुछ देर बाद कॉल आता है कि कस्टम विभाग ने सामान जब्त कर लिया है इसलिए इतने रुपए डाल दो। तभी छूट पाएगा। पैनिक क्रिएट करके ठग लेते हैं। राजस्थान ही नहीं देशभर में यह काम चल रहा है। इससे बचने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि किसी को भी ऑनलाइन पेमेंट न करें। कोई क्यू आर कोड या लिंक भी भेजता है तो उसे ओपन न करें। अपनी आइडेंटिटी, ओटीपी किसी से कभी शेयर न करें। कोई भी ऐसी डील कर रहे हैं तो पहले ऑफर देने वाले से फिजिकली मिलें। उसके डॉक्युमेंट्स चेक करें। इसके बाद ही आगे का प्रोसीजर शुरू करें।
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