18 जुलाई को सावन महीने के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी और शनिवार यानी शनि प्रदोष का संयोग बन रहा है। प्रदोष पर्व पर पूरे दिन व्रत रखा जाता है और शाम को भगवान शिव की पूजा की जाती है। स्कंद पुराण के अनुसार सावन में शनिवार को शिव पर्व होने से ये दिन और भी महत्वपूर्ण हो गया है। इस शुभ योग में भगवान शिव और शनि की पूजा एवं व्रत करने से हर इच्छा पूरी होती है। हर तरह के पाप भी खत्म हो जाते हैं। ये साल का तीसरा शनि प्रदोष है। इसके बाद 1 अगस्त को फिर से ये शुभ योग बनेगा। फिर साल का आखिरी शनि प्रदोष 12 दिसंबर को बनेगा।
प्रदोष व्रत और पूजा की विधि
व्रत करने वाले को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नहाना चाहिए। इसके बाद भगवान शिव की पूजा और ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प करना चाहिए। त्रयोदशी यानी प्रदोष व्रत में शिवजी और माता पार्वती की पूजा की जाती है। कुछ लोग इस व्रत के दौरान पूरे दिन पानी भी नहीं पीते हैं। इस दिन सुबह और शाम दोनों समय शिव पूजा की जाती है। शाम को फिर से नहाकर सफेद कपड़े पहनकर भगवान शिव को बेलपत्र, गंगाजल, चंदन, अक्षत, धूप और दीप के साथ पूजा करें। शाम को शिव पूजा के बाद पानी पी सकते हैं।
प्रदोष व्रत का महत्व
प्रदोष व्रत करने से हर तरह के दोष खत्म हो जाते हैं। शिवपुराण के अनुसार सबसे पहले ये व्रत चंद्रमा ने किया था। शाम को सूर्य अस्त होने के बाद और रात शुरू होने से पहले वाले समय को प्रदोष काल कहा जाता है। ऐसा माना जाता है की प्रदोष काल में शिवजी कैलाश पर्वत पर अपने रजत भवन में नृत्य करते हैं। इसीलिए इस समय शिवजी की पूजा करने से मनोकामना पूरी होती है।
सावन का शनि प्रदोष है खास
स्कंद पुराण के ब्रह्मखंड में बताया गया हैं कि एक गोप ने शनिवार को प्रदोष के दिन बिना मंत्र शिव पूजा के बाद भी भगवान शंकर को पा लिया था। इसके साथ ही कृष्णपक्ष में शनिवार को आने वाला प्रदोष व्रत और भी खास हो जाता है। शनिदेव के गुरू भगवान शिव हैं। इसलिए शनिवार को ये व्रत और शिवजी की पूजा करने से शनि संबंधी दोष दूर हो जाते हैं।