सीरिया में इन दिनों हालात बेकाबू हैं। पिछले एक हफ्ते में विद्रोहियों ने देश के तीन बड़े शहरों पर कब्जा कर लिया हैं। इनमें अलेप्पो, होम्स और दारा शहर शामिल है। विद्रोही राजधानी दमिश्क तक पहुंच चुके हैं। इस बीच आशंका जताई जा रही है कि विद्रोहियों के डर से राष्ट्रपति बशर के परिवार ने देश छोड़ दिया है और भागकर रूस की शरण ली है। हालांकि, सीरिया सरकार ने असद के देश छोड़कर भागने के खबरों का खंडन किया है। बशर की कमजोर होती पकड़ और विद्रोहियों के मजबूत होने से देश में गृह युद्ध की आशंका है। अब तक 3.70 लाख लोग विस्थापन के शिकार हुए हैं। दारा वही शहर हैं, जहां से 2011 में राष्ट्रपति बशर अल-असद के खिलाफ विद्रोह की शुरुआत हुई थी। दारा से राजधानी दमिश्क की दूरी करीब 100 किमी है। यहां स्थानीय विद्रोहियों ने कब्जा किया है। वहीं, अलेप्पो और हमा इस्लामी चरमपंथी ग्रुप हयात तहरीर अल-शाम की गिरफ्त में है। हालात के लिए ओबामा व रूस जिम्मेदार: ट्रम्प
सीरिया में हो रही अस्थिरता के लिए अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया है। साथ ही उन्होंने इसके पीछे रूस को भी जिम्मेदार बताया। ट्रम्प ने कहा, यह हमारी लड़ाई नहीं है। अमेरिका को इस संघर्ष में शामिल नहीं होना चाहिए। सीरिया अमेरिका का दोस्त नहीं है। भारत के नागरिकों के लिए एडवाइजरी जारी
सीरिया में स्थिति को देखते हुए भारतीय विदेश मंत्रालय ने ट्रैवल एडवाइजरी जारी की है। सीरिया में रह रहे भारतीय नागरिकों से भारत ने तत्काल देश छोड़ देने की सलाह दी है। साथ ही भारतीयों से सीरिया जाने से भी मना किया गया है। विदेश मंत्रालय ने कहा, कि सीरिया में रह रहे भारतीय दमिश्क में स्थित भारतीय दूतावास के संपर्क में रहें। 3 पॉइंट्स में समझिए… विद्रोह का क्या होगा असर… 1. वर्चस्व की लड़ाई:
यूएस इंस्टीट्यूट ऑफ पीस की प्रोफेसर मोना याकूबियन का कहना है कि यह पश्चिम एशिया में वर्चस्व की लड़ाई है। सीरिया भूराजनीतिक रूप से अहम है। इसकी सीमा इराक, तुर्किये, जॉर्डन, लेबनान व इजराइल जैसे देशों से लगती है। सीरिया पर नियंत्रण अहम व्यापार मार्गों, ऊर्जा गलियारों तक पहुंच प्रदान करता है, और पूरे क्षेत्र में प्रभाव डालने के लिए एक आधार प्रदान करता है। 2. रूस पर बड़ा असर:
विद्रोह का रूस पर बड़ा असर होगा। पश्चिमी एशिया में सीरिया उसका सबसे भरोसेमंद पार्टनर है। साथ ही 2011 में बशर के खिलाफ विद्रोह के बाद से रूस बशर को हर तरह की सैन्य, आर्थिक व रणनीतिक मदद देता रहा है। इस कारण रूस चाहता है कि बशर सत्ता मंे बने रहें। साथ ही विद्रोहियों को अमेरिकी समर्थन प्राप्त है। ऐसे में यदि बशर जाते हैं तो इसका बड़ा नुकसान रूस को होगा। 3. तेल महंगे संभव: भारत व सीरिया के रिश्ते ऐतिहासिक हैं। विद्रोह नहीं रुका तो कच्चे तेल के दामों में उछाल देखने को मिलेगा। इससे भारत पर असर पड़ेगा। वहीं, हाल में पावर और सोलर प्लांट प्रोजेक्ट पर दोनों मुल्क साथ काम कर रहे हैं। भारत ने 2022 में इसके लिए 28 करोड़ डॉलर की मदद की घोषणा की थी। विद्रोह के बढ़ने पर इन प्रोजेक्ट पर असर होगा। 2008 में बशर भारत का दौरा कर चुके हैं। सीरिया में 27 नवंबर को सेना और विद्रोही गुटों के बीच संघर्ष शुरू हुआ था
सीरिया में 27 नवंबर को सेना और सीरियाई विद्रोही गुट हयात तहरीर अल शाम (HTS) के बीच संघर्ष शुरू हुआ था। इसके बाद 1 दिसंबर को विद्रोहियों ने उत्तरी शहर अलेप्पो पर कब्जा कर लिया। इसके 4 दिन बाद विद्रोही गुटों ने एक और बड़े शहर हमा पर भी कब्जा कर लिया। विद्रोहियों ने दक्षिणी शहर दारा पर कब्जा करने के बाद राजधानी दमिश्क को दो दिशाओं से घेर लिया है। दारा और राजधानी दमिश्क के बीच सिर्फ 90 किमी की दूरी है। इस बीच ईरान ने अपने लोगों को सीरिया से बाहर निकालना शुरू कर दिया है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने शुक्रवार देर रात सीरिया की यात्रा और वहां रहने वाले भारतीय मूल के लोगों के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं। HTS विद्रोहियों के हमा और दारा पर कब्जे से जुड़ीं 5 फुटेज… ईरान ने राष्ट्रपति असद का साथ छोड़ा
न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक ईरान ने शुक्रवार से सीरिया से अपने सैन्य कमांडरों, रिवोल्यूशनरी गार्ड से जुड़े लोगों, राजनयिक कर्मचारियों और उनके परिवारों को निकालना शुरू कर दिया है। रिपोर्ट में ईरानी अधिकारियों के हवाले से बताया गया है कि ईरान पहले की तरह असद सरकार का साथ देने में असमर्थ है। अधिकारी ने बताया कि दमिश्क में रह रहे विशेष कर्मचारियों को विमानों से तेहरान लाया जा रहा है। जबकि बाकियों को जमीनी रास्ते से लताकिया बंदरगाह जा रहे हैं जहां से वे ईरान पहुंचेंगे। ईरानी मामले के जानकारी मेहदी रहमती ने NYT से कहा कि ईरान ने अपनी अधिकारियों और सुरक्षाकर्मियों को निकालना शुरू किया है, क्योंकि उन्हें लग रहा है कि सीरिया की सेना विद्रोहियों का मुकाबला नहीं कर पाएगी। ईरानी संसद के सदस्य अहमद नादेरी ने सोशल मीडिया पर नाराजगी जताई है। उन्होंने कहा कि सीरिया पतन के कगार पर है और हम शांति से यह सब देख रहे हैं। अगर दमिश्क गिर गया तो ईरान, इराक और लेबनान में अपना असर खो देगा। मुझे समझ नहीं आता कि हमारी सरकार इस पर चुप क्यों है। यह हमारे देश के लिए अच्छा नहीं है। ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची ने इस सप्ताह दमिश्क की यात्रा की थी। इस दौरान उन्होंने सीरिया की सुरक्षा करने का वचन दिया था। हालांकि, शुक्रवार को उन्होंने बगदाद में इससे अलग बयान दिया। उन्होंने कहा- हम भविष्य नहीं बता सकते। अल्लाह की जो भी इच्छा होगी वही होगा। रूस से भी असद को नहीं मिल रही पूरी मदद
रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने असद को सैन्य और राजनीतिक समर्थन दिया था, लेकिन इस बार के संकट में रूस का असद को बचाने कोई इरादा नहीं है। शुरुआत में रूसी वायुसेना ने अलेप्पो में विद्रोहियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी लेकिन ये मदद कम होती जा रही है। इस बीच दमिश्क में रूसी दूतावास ने अपने नागरिकों को देश छोड़ने की सलाह दी है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट में क्रेमलिन के हवाले बताया गया है कि रूस के पास सीरिया संकट का हल नहीं है। सीरियाई राष्ट्रपति असद विद्रोह को दबाने के लिए कई सालों से रूस और ईरान पर निर्भर रहे हैं, लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है। रूस और ईरान दोनों ही अपनी-अपनी समस्याओं में उलझे हुए हैं। जानकारों का कहना है कि पहली बार असद अकेले पड़ चुके हैं। रूस ने अब राष्ट्रपति असद की परवाह करना छोड़ दिया है। सीरिया का सबसे बड़ा संगठन बना HTS
HTS पहले अल कायदा से जुड़ा रहा है। सुन्नी गुट HTS का नेतृत्व अबू मोहम्मद अल-जुलानी कर रहा है। जुलानी बीते कई साल से सीरिया की अल असद सरकार के लिए खतरा बना हुआ है। रिपोर्ट्स के मुताबिक अल-जुलानी का जन्म 1982 में रियाद, सऊदी अरब में हुआ। वहां उसके पिता पेट्रोलियम इंजीनियर थे। साल 1989 जुलानी का परिवार सीरिया लौट आया और दमिश्क के पास बस गया। जुलानी ने 2003 में इराक पर अमेरिकी हमले के बाद मेडिकल की पढ़ाई बीच में छोड़कर अल-कायदा ज्वाइन कर लिया था। वह अल कायदा में अबू मुसाब अल-जरकावी का करीबी रहा। 2006 में जरकावी की हत्या के बाद जुलानी ने लेबनान और इराक में समय बिताया। 2006 में ही जुलानी को इराक में अमेरिकी सेना ने गिरफ्तार कर लिया। 5 साल जेल में रहने के बाद उसे रिहा कर दिया गया। इसके बाद वह इस्लामिक स्टेट के साथ जुड़ गया। 2011 में असद के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के बीच जुलानी सीरिया आ गया। इसके बाद उसने जबात अल-नुसरा का गठन किया और असद सरकार के खिलाफ जंग छेड़ दी। साल 2017 में अल-नुसरा कुछ दूसरे आतंकी गुटों के साथ मिलकर हयात तहरीर अल-शाम (HTS) बना। HTS अब सीरिया में सबसे शक्तिशाली विद्रोही गुट है। अलेप्पो और हमा पर कब्जे से पहले इस संगठन का इदलिब पर कब्जा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक इस संगठन के बाद 30 हजार लड़ाके हैं। अमेरिका ने 2018 में इस संगठन को आतंकी लिस्ट में डाला था। सीरिया में 2011 में शुरू हुआ गृह युद्ध
2011 में अरब क्रांति के साथ ही सीरिया में गृह युद्ध की शुरुआत हुई थी। सीरिया के लोगों ने 10 साल से सत्ता में काबिज बशर अल-असद सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए। इसके बाद ‘फ्री सीरियन आर्मी’ के नाम से एक विद्रोही गुट तैयार हुआ। विद्रोही गुट के बनने के साथ ही सीरिया में गृह युद्ध की शुरुआत हो गई थी। इसमें अमेरिका, रूस, ईरान और सऊदी अरब के शामिल होने के बाद ये संघर्ष और बढ़ता गया। इस बीच, सीरिया में आतंकवादी संगठन ISIS ने भी पैर पसार लिए थे। 2020 के सीजफायर समझौते के बाद यहां सिर्फ छिटपुट झड़प ही हुई हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक, एक दशक तक चले गृहयुद्ध में 3 लाख से ज्यादा लोग मारे गए थे। इसके अलावा लाखों लोगों को विस्थापित होना पड़ा था। ——————————————– सीरिया में जंग से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें… सीरिया में विद्रोहियों ने 4 दिन में कब्जाया अलेप्पो शहर:सेना भागी, लोगों को घरों में रहने के आदेश ; रूसी हमले में 300 की मौत सीरिया में विद्रोही गुटों ने 4 दिन के भीतर अलेप्पो शहर के ज्यादातर हिस्सों पर कब्जा कर लिया है। CNN की रिपोर्ट के मुताबिक, यह हमला बुधवार को शुरू हुआ था और शनिवार तक आस-पास के गांवों पर कब्जा करते हुए लड़ाकों ने अलेप्पो का बड़ा हिस्सा अपने कंट्रोल में ले लिया। पूरी खबर यहां पढ़ें…
सीरिया में हो रही अस्थिरता के लिए अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया है। साथ ही उन्होंने इसके पीछे रूस को भी जिम्मेदार बताया। ट्रम्प ने कहा, यह हमारी लड़ाई नहीं है। अमेरिका को इस संघर्ष में शामिल नहीं होना चाहिए। सीरिया अमेरिका का दोस्त नहीं है। भारत के नागरिकों के लिए एडवाइजरी जारी
सीरिया में स्थिति को देखते हुए भारतीय विदेश मंत्रालय ने ट्रैवल एडवाइजरी जारी की है। सीरिया में रह रहे भारतीय नागरिकों से भारत ने तत्काल देश छोड़ देने की सलाह दी है। साथ ही भारतीयों से सीरिया जाने से भी मना किया गया है। विदेश मंत्रालय ने कहा, कि सीरिया में रह रहे भारतीय दमिश्क में स्थित भारतीय दूतावास के संपर्क में रहें। 3 पॉइंट्स में समझिए… विद्रोह का क्या होगा असर… 1. वर्चस्व की लड़ाई:
यूएस इंस्टीट्यूट ऑफ पीस की प्रोफेसर मोना याकूबियन का कहना है कि यह पश्चिम एशिया में वर्चस्व की लड़ाई है। सीरिया भूराजनीतिक रूप से अहम है। इसकी सीमा इराक, तुर्किये, जॉर्डन, लेबनान व इजराइल जैसे देशों से लगती है। सीरिया पर नियंत्रण अहम व्यापार मार्गों, ऊर्जा गलियारों तक पहुंच प्रदान करता है, और पूरे क्षेत्र में प्रभाव डालने के लिए एक आधार प्रदान करता है। 2. रूस पर बड़ा असर:
विद्रोह का रूस पर बड़ा असर होगा। पश्चिमी एशिया में सीरिया उसका सबसे भरोसेमंद पार्टनर है। साथ ही 2011 में बशर के खिलाफ विद्रोह के बाद से रूस बशर को हर तरह की सैन्य, आर्थिक व रणनीतिक मदद देता रहा है। इस कारण रूस चाहता है कि बशर सत्ता मंे बने रहें। साथ ही विद्रोहियों को अमेरिकी समर्थन प्राप्त है। ऐसे में यदि बशर जाते हैं तो इसका बड़ा नुकसान रूस को होगा। 3. तेल महंगे संभव: भारत व सीरिया के रिश्ते ऐतिहासिक हैं। विद्रोह नहीं रुका तो कच्चे तेल के दामों में उछाल देखने को मिलेगा। इससे भारत पर असर पड़ेगा। वहीं, हाल में पावर और सोलर प्लांट प्रोजेक्ट पर दोनों मुल्क साथ काम कर रहे हैं। भारत ने 2022 में इसके लिए 28 करोड़ डॉलर की मदद की घोषणा की थी। विद्रोह के बढ़ने पर इन प्रोजेक्ट पर असर होगा। 2008 में बशर भारत का दौरा कर चुके हैं। सीरिया में 27 नवंबर को सेना और विद्रोही गुटों के बीच संघर्ष शुरू हुआ था
सीरिया में 27 नवंबर को सेना और सीरियाई विद्रोही गुट हयात तहरीर अल शाम (HTS) के बीच संघर्ष शुरू हुआ था। इसके बाद 1 दिसंबर को विद्रोहियों ने उत्तरी शहर अलेप्पो पर कब्जा कर लिया। इसके 4 दिन बाद विद्रोही गुटों ने एक और बड़े शहर हमा पर भी कब्जा कर लिया। विद्रोहियों ने दक्षिणी शहर दारा पर कब्जा करने के बाद राजधानी दमिश्क को दो दिशाओं से घेर लिया है। दारा और राजधानी दमिश्क के बीच सिर्फ 90 किमी की दूरी है। इस बीच ईरान ने अपने लोगों को सीरिया से बाहर निकालना शुरू कर दिया है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने शुक्रवार देर रात सीरिया की यात्रा और वहां रहने वाले भारतीय मूल के लोगों के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं। HTS विद्रोहियों के हमा और दारा पर कब्जे से जुड़ीं 5 फुटेज… ईरान ने राष्ट्रपति असद का साथ छोड़ा
न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक ईरान ने शुक्रवार से सीरिया से अपने सैन्य कमांडरों, रिवोल्यूशनरी गार्ड से जुड़े लोगों, राजनयिक कर्मचारियों और उनके परिवारों को निकालना शुरू कर दिया है। रिपोर्ट में ईरानी अधिकारियों के हवाले से बताया गया है कि ईरान पहले की तरह असद सरकार का साथ देने में असमर्थ है। अधिकारी ने बताया कि दमिश्क में रह रहे विशेष कर्मचारियों को विमानों से तेहरान लाया जा रहा है। जबकि बाकियों को जमीनी रास्ते से लताकिया बंदरगाह जा रहे हैं जहां से वे ईरान पहुंचेंगे। ईरानी मामले के जानकारी मेहदी रहमती ने NYT से कहा कि ईरान ने अपनी अधिकारियों और सुरक्षाकर्मियों को निकालना शुरू किया है, क्योंकि उन्हें लग रहा है कि सीरिया की सेना विद्रोहियों का मुकाबला नहीं कर पाएगी। ईरानी संसद के सदस्य अहमद नादेरी ने सोशल मीडिया पर नाराजगी जताई है। उन्होंने कहा कि सीरिया पतन के कगार पर है और हम शांति से यह सब देख रहे हैं। अगर दमिश्क गिर गया तो ईरान, इराक और लेबनान में अपना असर खो देगा। मुझे समझ नहीं आता कि हमारी सरकार इस पर चुप क्यों है। यह हमारे देश के लिए अच्छा नहीं है। ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची ने इस सप्ताह दमिश्क की यात्रा की थी। इस दौरान उन्होंने सीरिया की सुरक्षा करने का वचन दिया था। हालांकि, शुक्रवार को उन्होंने बगदाद में इससे अलग बयान दिया। उन्होंने कहा- हम भविष्य नहीं बता सकते। अल्लाह की जो भी इच्छा होगी वही होगा। रूस से भी असद को नहीं मिल रही पूरी मदद
रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने असद को सैन्य और राजनीतिक समर्थन दिया था, लेकिन इस बार के संकट में रूस का असद को बचाने कोई इरादा नहीं है। शुरुआत में रूसी वायुसेना ने अलेप्पो में विद्रोहियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी लेकिन ये मदद कम होती जा रही है। इस बीच दमिश्क में रूसी दूतावास ने अपने नागरिकों को देश छोड़ने की सलाह दी है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट में क्रेमलिन के हवाले बताया गया है कि रूस के पास सीरिया संकट का हल नहीं है। सीरियाई राष्ट्रपति असद विद्रोह को दबाने के लिए कई सालों से रूस और ईरान पर निर्भर रहे हैं, लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है। रूस और ईरान दोनों ही अपनी-अपनी समस्याओं में उलझे हुए हैं। जानकारों का कहना है कि पहली बार असद अकेले पड़ चुके हैं। रूस ने अब राष्ट्रपति असद की परवाह करना छोड़ दिया है। सीरिया का सबसे बड़ा संगठन बना HTS
HTS पहले अल कायदा से जुड़ा रहा है। सुन्नी गुट HTS का नेतृत्व अबू मोहम्मद अल-जुलानी कर रहा है। जुलानी बीते कई साल से सीरिया की अल असद सरकार के लिए खतरा बना हुआ है। रिपोर्ट्स के मुताबिक अल-जुलानी का जन्म 1982 में रियाद, सऊदी अरब में हुआ। वहां उसके पिता पेट्रोलियम इंजीनियर थे। साल 1989 जुलानी का परिवार सीरिया लौट आया और दमिश्क के पास बस गया। जुलानी ने 2003 में इराक पर अमेरिकी हमले के बाद मेडिकल की पढ़ाई बीच में छोड़कर अल-कायदा ज्वाइन कर लिया था। वह अल कायदा में अबू मुसाब अल-जरकावी का करीबी रहा। 2006 में जरकावी की हत्या के बाद जुलानी ने लेबनान और इराक में समय बिताया। 2006 में ही जुलानी को इराक में अमेरिकी सेना ने गिरफ्तार कर लिया। 5 साल जेल में रहने के बाद उसे रिहा कर दिया गया। इसके बाद वह इस्लामिक स्टेट के साथ जुड़ गया। 2011 में असद के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के बीच जुलानी सीरिया आ गया। इसके बाद उसने जबात अल-नुसरा का गठन किया और असद सरकार के खिलाफ जंग छेड़ दी। साल 2017 में अल-नुसरा कुछ दूसरे आतंकी गुटों के साथ मिलकर हयात तहरीर अल-शाम (HTS) बना। HTS अब सीरिया में सबसे शक्तिशाली विद्रोही गुट है। अलेप्पो और हमा पर कब्जे से पहले इस संगठन का इदलिब पर कब्जा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक इस संगठन के बाद 30 हजार लड़ाके हैं। अमेरिका ने 2018 में इस संगठन को आतंकी लिस्ट में डाला था। सीरिया में 2011 में शुरू हुआ गृह युद्ध
2011 में अरब क्रांति के साथ ही सीरिया में गृह युद्ध की शुरुआत हुई थी। सीरिया के लोगों ने 10 साल से सत्ता में काबिज बशर अल-असद सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए। इसके बाद ‘फ्री सीरियन आर्मी’ के नाम से एक विद्रोही गुट तैयार हुआ। विद्रोही गुट के बनने के साथ ही सीरिया में गृह युद्ध की शुरुआत हो गई थी। इसमें अमेरिका, रूस, ईरान और सऊदी अरब के शामिल होने के बाद ये संघर्ष और बढ़ता गया। इस बीच, सीरिया में आतंकवादी संगठन ISIS ने भी पैर पसार लिए थे। 2020 के सीजफायर समझौते के बाद यहां सिर्फ छिटपुट झड़प ही हुई हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक, एक दशक तक चले गृहयुद्ध में 3 लाख से ज्यादा लोग मारे गए थे। इसके अलावा लाखों लोगों को विस्थापित होना पड़ा था। ——————————————– सीरिया में जंग से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें… सीरिया में विद्रोहियों ने 4 दिन में कब्जाया अलेप्पो शहर:सेना भागी, लोगों को घरों में रहने के आदेश ; रूसी हमले में 300 की मौत सीरिया में विद्रोही गुटों ने 4 दिन के भीतर अलेप्पो शहर के ज्यादातर हिस्सों पर कब्जा कर लिया है। CNN की रिपोर्ट के मुताबिक, यह हमला बुधवार को शुरू हुआ था और शनिवार तक आस-पास के गांवों पर कब्जा करते हुए लड़ाकों ने अलेप्पो का बड़ा हिस्सा अपने कंट्रोल में ले लिया। पूरी खबर यहां पढ़ें…