सुप्रीम कोर्ट बोला- OTT पर अश्लीलता गंभीर मुद्दा:सरकार को कुछ करना चाहिए; केंद्र का जवाब- कुछ प्रतिबंध लागू, कुछ पर विचार जारी

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ओवर द टॉप (OTT) और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अश्लील कंटेंट की स्ट्रीमिंग पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका पर केंद्र सरकार और कंपनियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा कि याचिका एक गंभीर चिंता पैदा करती है। केंद्र को इस पर कुछ कदम उठाने की जरूरत है। यह मामला कार्यपालिका या विधायिका के अधिकार क्षेत्र में आता है। ऐसे भी हम पर आरोप हैं कि हम कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में दखल देते हैं। फिर भी हम नोटिस जारी कर रहे हैं। केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि OTT और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर कंटेंट को लेकर कुछ रेगुलेशन पहले से मौजूद हैं। सरकार और नए नियम लागू करने पर विचार कर रही है। याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट विष्णु शंकर जैन पेश हुए। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार को अश्लील कंटेंट की स्ट्रीमिंग पर रोक लगाने के लिए सही कदम उठाने का निर्देश देने की मांग को लेकर याचिका लगाई गई है। इसमें कहा गया है कि OTT और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बिना किसी फिल्टर के अश्लील कंटेंट परोस रहे हैं। यह युवाओं, बच्चों और यहां तक ​​कि बड़ों के दिमाग को भी गंदा करती है। याचिकाकर्ता ने कहा- अश्लील कंटेंट समाज के लिए खतरा
OTT और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अश्लील कंटेंट से जुड़ी याचिका में नेशनल कंटेंट कंट्रोल अथॉरिटी बनाने की मांग और इसके लिए गाइडलाइन निर्धारित करने की मांग की गई है। याचिकाकर्ता ने कहा कि सोशल मीडिया साइट्स बिना किसी फिल्टर के अश्लील कंटेंट परोस रहे हैं। कई OTT प्लेटफॉर्म्स पर चाइल्ड पोर्नोग्राफी के एलिमेंट्स भी हैं। इससे विकृत और अननेचुरल सेक्स टेंडेंसी को बढ़ावा मिलता है, जिससे क्राइम रेट बढ़ता है।’ याचिका में आगे कहा गया, ‘इंटरनेट की पहुंच और सस्ते कीमत के कारण बिना किसी जांच के सभी उम्र के यूजर्स तक अश्लील कंटेंट पहुंचाना आसान हो गया है। बेरोकटोक अश्लील कंटेंट सार्वजनिक सुरक्षा में खतरा पैदा कर सकता है। अगर इसपर पाबंदियां नहीं लगाई गई तो सामाजिक मूल्यों और लोगों के मेंटल हेल्थ पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं।’ ‘वक्त की यही मांग है कि सरकार अपना संवैधानिक कर्तव्य निभाए और सामाजिक नैतिकता की रक्षा करे। उसे यह निश्चित करना चाहिए कि डिजिटल प्लेटफॉर्म्स विकृत मानसिकता को जन्म देने वाली जगह न बन जाए।’ याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग की है कि वह सोशल मीडिया और OTT प्लेटफॉर्म्स तक लोगों के पहुंच पर तब तक रोक लगाए, जब तक ऐसे प्लेटफॉर्म्स भारत में खुलेआम, खासकर बच्चों और नाबालिगों के लिए पोर्नोग्राफिक कंटेंट पर रोक लगाने के लिए कोई सिस्टम तैयार न कर ले। 2020 में OTT प्लेटफॉर्म्स ने सेल्फ रेगुलेशन कोड बनाया था
साल 2020 में नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम वीडियो सहित 15 OTT प्लेटफॉर्म्स ने सेल्फ रेगुलेशन कोड बनाया था। इंटरनेट एंड मोबाइल असोसिएशन ऑप इंडिया (IAMAI) ने बताया था कि यह रेगुलेशन कोड अलग-अलग उम्र के लोगों के लिए कंटेंट के बांटने और दर्शकों के लिए उपयुक्त कंटेंट परोसने पर ध्यान केंद्रित करेगा। केंद्र सरकार लेकर आएगी डिजिटल इंडिया बिल
इधर, केंद्र सरकार मौजूदा IT एक्ट की जगह डिजिटल इंडिया बिल लाने की योजना बना रही है। इस नए कानून का उद्देश्य सोशल मीडिया पर अश्लीलता को रोकना है। यूट्यूबर्स और डिजिटल कंटेंट क्रिएटर्स को विनियमित करना है। सरकार इस विधेयक पर 15 महीने से काम कर रही है और इसमें टेलीकम्युनिकेशन, आईटी और मीडिया जैसे विभिन्न क्षेत्रों के लिए विशिष्ट नियम शामिल होंगे। ऑनलाइन कंटेंट को लेकर सरकार की मौजूदा गाइडलाइन
भारत सरकार ने 2021 में The Information Technology (Intermediary Guidelines and Digital Media Ethics Code) Rules बनाया था। इसे 6 अप्रैल, 2023 को अपडेट किया गया। 30 पेज की गाइडलाइंस में सोशल मीडिया, फिल्म और वेब सीरीज के लिए नियम बताए गए हैं। पेज नंबर-28 पर फिल्म, वेब सीरीज और एंटरटेनमेंट प्रोग्राम के लिए जनरल गाइडलाइंस है। इसमें टारगेट ऑडियंस के आधार पर कैटेगरी तय करना जरूरी है। ये चेतावनी देना भी जरूरी है कि आप क्या कंटेंट दिखा रहे हैं। गाइडलाइंस के मुताबिक, OTT और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर ग्रीवांस ऑफिसर रखने होंगे। कंटेंट कानून के हिसाब से होना चाहिए। उसमें सेक्स न हो, एंटी नेशन न हो और बच्चों-महिलाओं को नुकसान पहुंचाने वाला न हो। इसकी निगरानी के लिए दो तरह के नियम हैं-
पहला: सेल्फ रेगुलेटरी होना चाहिए। मतलब कंटेंट को अपलोड करने वाला सरकार की गाइडलाइंस का ध्यान रखेगा। इसके लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स, OTT, मोबाइल एप्स खुद इनका ध्यान रखेंगे। ये जांचेंगे कि कोई कंटेंट गलत तो नहीं है। चाइल्ड पोर्नोग्राफी नहीं होनी चाहिए। ये भी देखेंगे कि सेक्शुअल कंटेंट किस लेवल का है और भाषा किस तरह की है। दूसरा: अगर किसी को कंटेंट पर आपत्ति है, तो वो शिकायत कर सकता है। इसके लिए कंटेंट पब्लिश करने वाले प्लेटफॉर्म्स, वेबसाइट, एप पर शिकायत करने के लिए सिस्टम होगा। उस पर ग्रीवांस ऑफिसर का नाम, फोन नंबर और ईमेल आईडी होगी। कोई भी व्यक्ति उस पर शिकायत कर सकेगा। शिकायत अधिकारी 24 घंटे में शिकायत रजिस्टर करेगा। शिकायत करने वाले को एक्नॉलेजमेंट देना होगा। शिकायत की तारीख से 15 दिनों के अंदर उसका हल करना होगा। अगर कंटेंट हटाने की जरूरत होगी, तो उसे हटाना होगा। शिकायत न सुनी जाए, तो सूचना प्रसारण मंत्रालय की वेबसाइट पर भी शिकायत कर सकते हैं। ………………………………….. सुप्रीम कोर्ट से जुड़ी ये खबरें भी पढ़ें कलकत्ता हाईकोर्ट बोला- नाबालिग के ब्रेस्ट छूना रेप की कोशिश नहीं, आरोपी को जमानत दी; सुप्रीम कोर्ट ने दी थी हिदायत कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा है कि नशे में नाबालिग लड़की के ब्रेस्ट छूने की कोशिश करना, प्रिवेंशन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंस (POCSO) एक्ट के तहत रेप की कोशिश नहीं है। इसे गंभीर यौन उत्पीड़न की कोशिश माना जा सकता है। कलकत्ता हाईकोर्ट का यह फैसला तब आया है, जब सुप्रीम कोर्ट ने कुछ दिन पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट के ऐसे एक कमेंट को असंवेदनशील बताया था। पूरी खबर पढ़ें… इलाहाबाद हाईकोर्ट बोला- ब्रेस्ट पकड़ना और लड़की को खींचना रेप नहीं, ये सिर्फ गंभीर यौन उत्पीड़न ‘पीड़िता के स्तनों को पकड़ना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना, उसे पुलिया के नीचे खींचकर ले जाने की कोशिश करना रेप या रेप की कोशिश नहीं मान सकते।’ यह टिप्पणी इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की पीठ ने की थी। पूरी खबर पढ़ें…