सेहतनामा- टिटनेस इन्फेक्शन हो सकता है जानलेवा:टीकाकरण ही बचाव, 9 लक्षणों को न करें नजरअंदाज, डॉक्टर से जानें हर सवाल का जवाब

टिटनेस एक गंभीर बीमारी है, जो सीधा नर्वस सिस्टम पर अटैक करती है। इस खतरनाक बीमारी से हर साल हजारों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ती है। आमतौर पर जंग लगे लोहे, लकड़ी, प्लास्टिक या किसी भी अन्य वस्तु से चोट लगने या घाव होने पर इसका खतरा ज्यादा होता है। अगर समय रहते टिटनेस का इलाज न किया जाए तो ये मौत का कारण बन सकता है। यूरोपियन सेंटर फॉर डिजीज प्रिवेंशन एंड कंट्रोल (ECDC) के मुताबिक, दुनिया में हर साल टिटनेस से लगभग 2 से 3 लाख लोगों की मौतें होती हैं। वहीं इंटरनेशनल जर्नल ऑफ इन्फेक्शियस डिजीज में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, साल 2019 में भारत में टिटनेस के 16,579 केस सामने आए थे, जिसमें 7332 मौतें हुई थीं। हालांकि अच्छी बात ये है कि पिछले कुछ दशकों में टिटनेस से होने वाली मौतों का आंकड़ा काफी कम हुआ है। आज सेहतनामा में हम टिटनेस के बारे में विस्तार से बात करेंगे। साथ ही जानेंगे कि- टिटनेस क्या है? टिटनेस एक बैक्टीरियल इन्फेक्शन है, जो मिट्टी, धूल, गोबर और जानवरों के मल में पाए जाने वाले ‘क्लॉस्ट्रिडियम टेटानी’ (Clostridium tetani) नामक बैक्टीरिया से होता है। ये बैक्टीरिया चोट या घाव के जरिए शरीर में प्रवेश करते हैं। शरीर में घुसने के बाद ये तुरंत एक्टिव हो जाते हैं और ब्लड में ‘टेटानोस्पास्मिन’ और ‘टेटानोलीसिन’ नामक जहर छोड़ते हैं। यह जहर मसल्स और नर्वस सिस्टम को प्रभावित करते हैं। इससे मसल्स बहुत तेजी से सिकुड़ने लगती हैं और इसमें दर्दनाक ऐंठन होती है। ये ऐंठन इतनी तेज हो सकती है कि मसल्स फट सकती हैं या रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर का कारण बन सकती हैं। वहीं टिटनेस का जहर दिमाग तक पहुंचने के बाद बचने की उम्मीद नहीं रहती है। ये बैक्टीरिया इतने खतरनाक और मजबूत होते हैं कि अधिकांश दवाएं इन पर बेअसर होती हैं। ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में ये बैक्टीरिया तेजी से ग्रोथ करते हैं। टिटनेस की गंभीर स्थिति में जबड़े इतने कसकर जकड़ जाते हैं कि मुंह खोलना मुश्किल हो जाता है। इसलिए इसे ‘लॉकजॉ’ भी कहते हैं। आयुर्वेद में इसे ‘धनुस्तंभ’ कहा जाता है क्योंकि इसमें मसल्स ऐंठने लगती हैं और बदन अकड़कर धनुष की तरह हो जाता है। टिटनेस का कारण टिटनेस बैक्टीरिया आमतौर पर गहरे घावों के जरिए शरीर में प्रवेश करते हैं। कभी-कभी लोग अपनी चोट को नजरअंदाज कर देते हैं। लेकिन अगर ये चोट गोबर या मिट्‌टी जैसे टॉक्सिन्स के संपर्क में आते हैं तो इससे टिटनेस का खतरा बढ़ जाता है। कई बार बच्चे के जन्म के समय नाल काटते समय लापरवाही से भी टिटनेस हो सकता है। इसके अलावा टिटनेस इन्फेक्शन के और भी कई कारण हो सकते हैं। इसे नीचे दिए ग्राफिक से समझिए- टिटनेस होने पर दिखते ये लक्षण टिटनेस इन्फेक्शन होने के 2 सप्ताह के भीतर इसके लक्षण दिखाई देने लगते हैं। ये लक्षण कुछ ही दिनों में गंभीर होने लगते हैं। इसके सबसे आम लक्षण में मसल्स में जकड़न और ऐंठन शामिल है। ये आमतौर पर जबड़े से शुरू होती है और फिर गर्दन, पीठ और पेट तक फैल जाती है। टिटनेस से पीड़ित व्यक्ति चिड़चिड़ा और बेचैन हो सकता है। इससे तेज बुखार और अधिक पसीना आ सकता है। इसके अलावा टिटनेस इन्फेक्शन में और भी कई लक्षण नजर आ सकते हैं। इसे नीचे दिए ग्राफिक से समझिए- टिटनेस का इलाज टिटनेस का इलाज मरीज की स्थिति की गंभीरता पर निर्भर करता है। डॉक्टर टिटनेस का इलाज कई तरीकों से करते हैं। जैसेकि- घाव की सफाई करके डॉक्टर सबसे पहले जहां चोट लगी है, उस घाव को अच्छी तरह से साफ करते हैं। इससे शरीर में इन्फेक्शन फैलने से रोका जाता है। कुछ मामलों में सर्जरी की जरूरत भी पड़ सकती है। मेडिसिन के जरिए टिटनेस के लक्षण के आधार पर डॉक्टर कई तरह की दवाएं दे सकते हैं। इनमें टिटनेस इम्यून ग्लोब्यूलिन (TIG), एंटीबायोटिक्स और मसल्स को आराम देने वाली दवाएं शामिल हैं। TIG टिटनेस के जहर को बेअसर करने में मदद करता है। वहीं एंटीबायोटिक्स टिटनेस पैदा करने वाले बैक्टीरिया को मारते हैं। बेड-रेस्ट और ब्रीदिंग सपोर्ट के जरिए टिटनेस के मरीज को शांत और अंधेरे कमरे में आराम करने की सलाह दी जाती है क्योंकि तेज रोशनी और शोर से मसल्स में ऐंठन बढ़ सकती है। अगर मरीज को सांस लेने में दिक्कत हो रही है तो डॉक्टर ऑक्सीजन देते हैं। गंभीर मामलों में वेंटिलेटर की जरूरत पड़ सकती है। वैक्सीन डॉक्टर मरीज को टिटनेस का टीका या बूस्टर डोज देते हैं। टिटनेस होने के बाद शरीर में इस बीमारी से लड़ने की क्षमता विकसित नहीं होती। इसलिए टीका लगवाना जरूरी है। ध्यान रखें कि टिटनेस का इलाज तुरंत शुरू होना चाहिए। टिटनेस से बचाव जरूरी टीका ही टिटनेस से बचाव का सबसे अच्छा तरीका है। इससे बचने के लिए कई टीके उपलब्ध हैं, जिनमें डिप्थीरिया और पर्टुसिस (काली खांसी) के टीके भी शामिल हैं। नवजात शिशुओं और बच्चों को टिटनेस से बचाने के लिए डिप्थीरिया, टिटनेस और पर्टुसिस (DPT) का टीका लगाया जाता है। बच्चों के लिए टिटनेस के टीके का एक कोर्स होता है, उसे जरूर पूरा करें। वहीं एडल्ट्स को भी हर 10 साल में टिटनेस का बूस्टर डोज लगवाना चाहिए। इसके अलावा टिटनेस से बचने के लिए और भी कुछ बातों का ध्यान रखें। टिटनेस से जुड़े कॉमन सवाल और जवाब सवाल- टिटनेस इन्फेक्शन का पता कैसे लगाया जाता है? जवाब- सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) के मुताबिक, टिटनेस इन्फेक्शन का पता लगाने के लिए अभी तक कोई लैबोरेटरी टेस्ट नहीं उपलब्ध है। आमतौर डॉक्टर लक्षणों और मेडिकल हिस्ट्री के आधार पर इसका इलाज करते हैं। सवाल- टिटनेस से ठीक होने में कितना समय लगता है? जवाब- एक बार टिटनेस के लक्षण डेवलप होने के बाद इसे ठीक होने में दो से तीन सप्ताह लग सकते हैं। उचित इलाज के साथ अधिकांश लोग ठीक हो जाते हैं। लेकिन इसे पूरी तरह से ठीक होने में कई महीने लग सकते हैं। सवाल- टिटनेस का खतरा सबसे ज्यादा किन्हें होता है? जवाब- टिटनेस का खतरा उन लोगों को अधिक होता है, जिन्होंने कभी इसका टीका नहीं लगवाया है या फिर बूस्टर डोज नहीं लिया है। इसके अलावा कमजोर इम्यून सिस्टम वाले लोगों, नवजात शिशुओं, गर्भवती महिलाओं और डायबिटिक लोगों को भी इसका खतरा ज्यादा होता है। बच्चों में होने वाले टिटनेस को ‘नियोनेटल टिटनेस’ कहा जाता है, जो खासकर तब होता है, जब गर्भनाल को ठीक से साफ नहीं किया जाता है। वहीं प्रेग्नेंट महिलाओं को होने वाले टिटनेस को ‘मैटरनल टिटनेस’ कहा जाता है, जो प्रेग्नेंसी के दौरान या डिलीवरी के 6 सप्ताह के भीतर होता है। सवाल- क्या टिटनेस से इन्फेक्टेड व्यक्ति फिर से इन्फेक्टेड हो सकते हैं? जवाब- दिल्ली के अपोलो स्पेक्ट्रा हॉस्पिटल के सीनियर कंसल्टेंट इंटरनल मेडिसिन डॉ. संचयन रॉय बताते हैं कि टिटनेस से इन्फेक्टेड व्यक्ति को भविष्य में फिर से ये इन्फेक्शन हो सकता है। सवाल- क्या नवजात शिशुओं और गर्भवती महिलाओं के लिए टिटनेस के टीके का कोई विशेष कोर्स है? जवाब- बच्चे को जन्म से लेकर 16 साल तक टिटनेस वैक्सीन की करीब 5-7 डोज दी जाती है। वहीं प्रेग्नेंट वुमन को प्रेग्नेंसी के दौरान 1-2 डोज दी जाती है। ये टीके उन्हें टिटनेस इन्फेक्शन के खतरे से बचाने में मदद करते हैं। सवाल- चोट लगने के कितनी देर बाद टिटनेस का टीका लगवाया जा सकता है? जवाब- डॉ. संचयन रॉय बताते हैं कि चोट लगने के 24 घंटे के भीतर टिटनेस का टीका लगवा लेना चाहिए। अगर किन्हीं कारणों से ये टाइम ओवर हो जाए तो भी 2-3 दिन के भीतर टीका लगवा सकते हैं।