सेहतनामा- दुनिया के 180 करोड़ लोगों को है प्रेसबिओपिया:नजदीक की चीजें दिखती धुंधली, प्रीमेच्योर कंडीशन से बचाव के 8 जरूरी टिप्स

सिनेमा में किसी टीचर या दफ्तर के अधेड़ बाबू को फिल्माने के लिए दशकों से एक ही सीन का प्रयोग किया जा रहा है। टीचर चश्मा लगाए किसी नोटबुक या रजिस्टर में कुछ लिखने में व्यस्त है। उसी समय एक बच्चा आकर उन्हें किसी काम के लिए टोकता है। टीचर की नजरें चश्मे के ऊपर से झांककर बच्चे की ओर देखती हैं। कभी सोचा है कि टीचर ने बच्चे की ओर चश्मे के ऊपर से झांककर क्यों देखा? ऐसा एक आई कंडीशन प्रेसबिओपिया के कारण होता है। इसमें पास की नजर कमजोर हो जाती है। इसके करेक्शन के लिए ही टीचर ने चश्मा पहन रखा है। उनका ये चश्मा किताब या नोटबुक को देखने के लिए तो जरूरी है, लेकिन दूर की चीजें देखने के लिए उस चश्मे को हटाना पड़ता है। प्रेसबिओपिया एक उम्र संबंधी समस्या है, जो आमतौर पर किसी को 40 साल के बाद होती है। यह समस्या तब आती है, जब हमारी आंखों के लेंस की इलास्टिसिटी कम हो जाती है। इसमें सुधार के लिए चश्मा, कॉन्टैक्ट लेंस और सर्जरी जैसे विकल्प पहले से उपलब्ध हैं। अब बीते कुछ समय से भारत में इसके इलाज के विकल्प के तौर पर आई ड्रॉप प्रेस्वू को लेकर भी चर्चा चल रही है। आज ‘सेहतनामा’ में बात करेगें प्रेसबिओपिया की। साथ ही जानेंगे कि- प्रेसबिओपिया क्या है हमारी आंखों की खास बात ये है कि हम जितनी दूर की चीजें देखते या पढ़ते हैं, उसके हिसाब से इसका फोकस बदल जाता है। इसका मतलब है कि आंखों का लेंस इलास्टिक होता है। प्रेसबिओपिया होने पर आंखो की फोकस बदलने की क्षमता खत्म हो जाती है। इसके कारण पास की नजर कमजोर हो जाती है और पढ़ने-लिखने में समस्या होने लगती है। देश-दुनिया में प्रेसबिओपिया नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, दुनिया भर में 180 करोड़ लोग प्रेसबिओपिया से प्रभावित हैं। भारत में भी यह आंकड़ा काफी बड़ा है। आइए ग्राफिक में देखते हैं। बढ़ रहा प्रेसबिओपिया आई कंडीशन के करेक्शन का बाजार डेटा ब्रिज मार्केट रिसर्च ने साल 2021 में प्रेसबिओपिया से जुड़े आंकड़े जारी किए। इसमें बताया गया कि दुनिया भर में लोग प्रेसबिओपिया से प्रभावित आंखों की जांच, करेक्शन, लेंस और दवाओं में 944.1 करोड़ यूएस डॉलर खर्च करते हैं। इसमें यह भी अनुमान लगाया गया है कि यह खर्च अगले सात सालों में 4.90% की कंपाउंड ग्रोथ रेट से बढ़ने वाला है। इसका मतलब ये है कि जिस तेजी से प्रेसबिओपिया के मामले बढ़ रहे हैं, साल 2029 तक पूरी दुनिया में लोग इसके लिए 1384 करोड़ यूएस डॉलर खर्च कर रहे होंगे। प्रेसबिओपिया के लक्षण क्या हैं ज्यादातर लोगों में प्रेसबिओपिया के सबसे आम लक्षण 40 वर्ष के आसपास दिखाई देते हैं। इसके कारण पढ़ने या करीब से काम करने की क्षमता में धीरे-धीरे गिरावट होती जाती है। इसके अन्य लक्षण क्या-क्या हैं, ग्राफिक में देखिए। हमारी आंख में फिट है नेचुरल कैमरा हमारी आंख एक कैमरे की तरह होती है। कैमरे से तस्वीर खींचने के लिए पास और दूर की चीजों के लिए लेंस बदलने पड़ते हैं, जबकि हमारी आंखों के लेंस में ऑटोफोकस करने की क्षमता होती है। उम्र बढ़ने पर आंखों का यह लेंस धीरे-धीरे अपनी इलास्टिसिटी (लचीलापन) खो देता है। इसलिए प्रेसबिओपिया के कारण फोकस करने में परेशानी होने लगती है। आमतौर पर यह समस्या 40 की उम्र के बाद शुरू होती है। हालांकि कई बार खराब लाइफ स्टाइल के कारण प्रीमेच्योर प्रेसबिओपिया भी हो सकता है। प्रीमेच्योर प्रेसबिओपिया के रिस्क फैक्टर्स क्या हैं इसका मुख्य रिस्क फैक्टर तो 40 वर्ष से अधिक उम्र का होना है। जबकि खतराब लाइफस्टाइल, कुछ दवाएं और मेडिकल कंडीशंस के कारण यह स्थिति 40 से कम उम्र में ही बन सकती है। इसे प्रीमेच्योर प्रेसबिओपिया कहते हैं। एनीमिया, दिल से जुड़ी बीमारियां और डायबिटीज जैसी बीमरियां इसके प्रमुख रिस्क फैक्टर्स हैं। इसके अलावा डिप्रेशन, एलर्जी और मनोविकार की दवाएं भी समय से पहले प्रेसबिओपिया का कारण बन सकती हैं। आइए ग्राफिक में देखते हैं। प्रेसबिओपिया को कैसे ठीक किया जाता है प्रेसबिओपिया के लिए किसी तरह का इलाज मौजूद नहीं है। हालांकि नजर को ठीक करने के लिए कुछ ट्रीटमेंट उपलब्ध हैं। किसी शख्स के स्वास्थ्य, उसकी लाइफ स्टाइल और प्राथमिकताओं के आधार पर इस कंडीशन को ठीक किया जाता है। इसके करेक्शन के निम्नलिखित तरीके हैं। प्रीमेच्योर प्रेसबिओपिया से कैसे बच सकते हैं प्रेसबिओपिया कोई बीमारी नहीं है। यह उम्र के साथ पैदा हुई कंडीशन है। इसलिए इसे रोकने का कोई तय तरीका नहीं होता है। समय के साथ पास की चीजों को देखने की क्षमता कमजोर होती चली जाती है। हालांकि प्रीमेच्योर प्रेसबिओपिया को रोकने की कोशिश जरूर की जा सकती है। इसके लिए अच्छी लाइफस्टाइल फॉलो करें। पोषणयुक्त भोजन करें औऱ अपनी आंखों की नियमित जांच करवाएं। धूप में निकलें तो हानिकारक अल्ट्रा वॉयलेट किरणों से बचने के लिए सन ग्लासेज पहनें। विटामिन A, विटामिन C, विटामिन E और ल्यूटिन सहित आंखों के स्वास्थ्य के लिए जरूरी पोषक तत्वों से भरपूर फूड्स खाएं। इसके लिए गाजर, पालक, टमाटर, संतरे और हरी सब्जियां खानी चाहिए।