आपने अपने आसपास ऐसे कई लोगों काे देखा या सुना होगा, जिन्हें बहुत ज्यादा पसीना होता है। महज कुछ ही देर में उनकी हथेली से लेकर पैर के तलवों तक पसीना ही पसीना दिखाई देने लगता है। कई बार तो हाथ पकड़ने पर ऐसा लगता है, जैसे उसने अभी-अभी अपना हाथ पानी से धुला हो। ये एक आम समस्या है, जिसे मेडिकल की भाषा में हाइपरहाइड्रोसिस (अधिक पसीने की समस्या) कहा जाता है। नवंबर 2019 में ‘इंडियन डर्मेटोलॉजी ऑनलाइन जर्नल’ में एक स्टडी पब्लिश हुई। इस स्टडी के मुताबिक, देश के एक जाने-माने हॉस्पिटल के डर्मेटोलॉजी ओपीडी में आए 832 स्किन पेशेंट्स में से 17.9% लोगों को हाइपरहाइड्रोसिस था। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत में हाइपरहाइड्रोसिस एक आम समस्या है। वहीं ‘इंटरनेशनल हाइपरहाइड्रोसिस सोसाइटी’ के मुताबिक, दुनिया भर में करीब 38.5 करोड़ लोग हाइपरहाइड्रोसिस से पीड़ित हैं। इसमें 18 से 39 वर्ष की उम्र के 8.8% लोग शामिल हैं। इसलिए आज सेहतनामा कॉलम में हम हाइपरहाइड्रोसिस के बारे में विस्तार से बात करेंगे। साथ ही जानेंगे कि- हाइपरहाइड्रोसिस क्या है? हाइपरहाइड्रोसिस का मतलब ‘शरीर से ज्यादा पसीना निकलना’ है। यह स्थिति तब होती है, जब शरीर अपने टेम्परेचर को कंट्रोल करने के लिए जरूरत से ज्यादा पसीना बाहर निकालता है। इस कंडीशन में आराम करते समय, उठते-बैठते समय या कोई काम करते समय पसीना आ सकता है। पसीना एक फ्लूइड है, जो शरीर के एक्राइन ग्लैंड्स (पसीने की ग्रंथियों) से निकलता है। ये ग्लैंड्स स्किन में होती हैं। पसीने का काम शरीर के टेम्परेचर को कंट्रोल करने और ज्यादा गर्मी को रोकने में मदद करना है। एक बार जब पसीना ग्लैंड्स के जरिए बाहर निकल जाता है तो यह फ्लूइड से भाप में बदलकर स्किन से गायब हो जाता है। इससे शरीर ठंडा होता है। गर्म मौसम में या कोई फिजिकल एक्टिविटी के दौरान शरीर खुद को ठंडा करने के लिए पसीना पैदा करता है। हालांकि इस पर अभी रिसर्च जारी है कि ग्लैंड्स बहुत अधिक पसीना क्यों बनाती हैं। इन कारणों से होता हाइपरहाइड्रोसिस हाइपरहाइड्रोसिस के कई कारण हैं, जो इसके प्रकार पर आधारित हैं। जैसेकि- प्राइमरी हाइपरहाइड्रोसिस इस कंडीशन का कोई स्पष्ट कारण नहीं है। आमतौर पर यह जेनेटिक या हॉर्मोनल परिवर्तन के कारण हो सकता है। यह आमतौर पर बचपन या टीनएज में शुरू होता है। सेकेंडरी हाइपरहाइड्रोसिस यह किसी खास मेडिकल कंडीशन के कारण होता है। इसमें डायबिटीज, थायरॉयड, इन्फेक्शन, मेनोपॉज, जरूरत से ज्यादा मेडिसिन, मोटापा, पार्किंसंस डिजीज, टीबी, लिंफोमा, लो ब्लड प्रेशर, हार्ट अटैक, स्ट्रेस और एंग्जाइटी ज्यादा पसीने का कारण हो सकते हैं। इसके अलावा कुछ फूड्स और ड्रिंक्स जैसे कि मसालेदार भोजन, कैफीन, शराब और निकोटिन भी पसीना बढ़ाते हैं। सेकेंडरी हाइपरहाइड्रोसिस किसी भी उम्र में हो सकता है। हाइपरहाइड्रोसिस के लक्षण हाइपरहाइड्रोसिस का मुख्य लक्षण ज्यादा पसीना आना है। इससे व्यक्ति को कई अन्य लक्षण भी महसूस हो सकते हैं। इसे नीचे दिए ग्राफिक से समझिए- ऐसे होती है हाइपरहाइड्रोसिस की जांच डॉक्टर हाइपरहाइड्रोसिस का कारण जानने के लिए कुछ टेस्ट करते हैं। जैसेकि- स्टार्च-आयोडीन टेस्ट डॉक्टर पसीने वाली जगह पर आयोडीन का घोल लगाते हैं और फिर उसके ऊपर स्टार्च डालते हैं। जहां बहुत ज्यादा पसीना आता है, वहां घोल गहरा नीला हो जाता है। पेपर टेस्ट डॉक्टर पसीने वाली जगह पर एक खास तरह का पेपर रखते हैं, जो पसीने को सोख लेता है। बाद में उसी पेपर का वजन करके पसीने की मात्रा और उसके कारण का पता लगा लगाया जाता है। ब्लड या इमेजिंग टेस्ट इन दो टेस्ट से खून के सैंपल या स्किन के नीचे की इमेज से पसीने के लक्षणों के कारण का पता लगाया जाता है। हाइपरहाइड्रोसिस का इलाज हाइपरहाइड्रोसिस का इलाज इसके कारण और गंभीरता पर निर्भर करता है। इसके लिए कई तरह के इलाज मौजूद हैं। दवाओं के जरिए डॉक्टर हाइपरहाइड्रोसिस के लक्षणों को कम करने के लिए दवाएं देते हैं। इनमें एंटीकोलिनर्जिक एजेंट, एंटीडिप्रेसेंट, बीटा-ब्लॉकर्स और एल्युमिनियम क्लोराइड जेल शामिल हैं। अगर इन दवाओं से लक्षणों में सुधार नहीं होता है तो डॉक्टर स्पेशल थेरेपी की सलाह दे सकते हैं। इसे नीचे पॉइंटर्स से समझिए- आयनटोफोरेसिस इस प्रक्रिया में हाथों या पैरों को माइल्ड इलेक्ट्रिक करंट वाले पानी में डुबोया जाता है। यह पसीने की ग्लैंड्स को अस्थायी रूप से डी-एक्टिव कर देता है। बोटॉक्स इंजेक्शन बोटुलिनम टॉक्सिन (बोटॉक्स) को पसीने वाले एरिया में इंजेक्ट किया जाता है। यह पसीने की ग्लैंड्स को एक्टिव करने वाली नसों को ब्लॉक करता है। यह इंजेक्शन कुछ महीनों तक कारगर होता है। माइक्रोवेव थेरेपी यह थेरेपी पसीने की ग्लैंड्स को स्थायी रूप से नष्ट कर देती है। नष्ट हुई ग्लैंड्स पसीना नहीं बना सकती हैं, जिससे अधिक पसीने की समस्या कम हो जाती है। हालांकि इस थेरेपी का बहुत कम इस्तेमाल किया जाता है। सर्जरी जब अन्य इलाज अच्छी तरह से काम नहीं करते हैं तो डॉक्टर सर्जरी पर विचार कर सकते हैं। इसकी सर्जरी दो तरीके से की जाती है। एंडोस्कोपिक थोरेसिक सिम्पेथेक्टोमी (ETS) इस सर्जरी में डॉक्टर शरीर की उस नस को काट देते हैं, जो पसीने वाली ग्लैंड्स को पसीना बनाने का संकेत देती हैं। यह सर्जरी बहुत छोटे चीरों से होती है, इसलिए इसमें ज्यादा परेशानी नहीं होती है। स्वेट ग्लैंड रिमूवल इसमें डॉक्टर पसीने की ग्रंथियों को लेजर, खुरचकर, काटकर या लिपोसक्शन जैसी तकनीकों से हटा देते हैं। ध्यान रखें कि इन इलाजों के कुछ संभावित दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं। इनमें स्किन में जलन या छाले, स्किन का रंग बदलना, दर्द या बेचैनी और निशान पड़ना शामिल है। इसलिए इलाज से पहले डॉक्टर से संभावित खतरे के बारे में जानकारी जरूर लें। हाइपरहाइड्रोसिस से कैसे बचें डर्मेटोलॉजिस्ट डॉ. संदीप अरोड़ा बताते हैं कि कुछ सुरक्षा उपायों को अपनाकर हाइपरहाइड्रोसिस से बचा जा सकता है। इसे नीचे दिए ग्राफिक से समझिए- हाइपरहाइड्रोसिस के कारण होने वाली अन्य परेशानियां हाइपरहाइड्रोसिस से कुछ अन्य स्वास्थ्य समस्याएं भी हो सकती हैं। स्किन लगातार गीली रहने से इन्फेक्शन का खतरा बढ़ जाता है। ज्यादा पसीने से स्किन का रंग बदल सकता है। स्किन रूखी हो सकती है। इसके अलावा ज्यादा पसीने के कारण लोग दूसरों से मिलने से कतराते हैं। वे अपनी पसंदीदा चीजें करना छोड़ देते हैं और तनाव में रहने लगते हैं। हालांकि हाइपरहाइड्रोसिस में घबराने की कोई बात नहीं है। कुछ घरेलू उपायों और मेडिकल ट्रीटमेंट से इस पर काबू पाया जा सकता है। ………………… सेहतनामा की ये खबर भी पढ़िए सेहतनामा- नाखून भी देता है बीमारी का संकेत: रंग और आकार में बदलाव को न करें इग्नोर आमतौर नाखूनों का रंग हल्का गुलाबी होना चाहिए। इसके बजाय अगर वे सफेद, पीले, नीले या काले हैं या उनकी बनावट असामान्य है तो ये कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का संकेत हो सकता है। पूरी खबर पढ़िए…