सेहतनामा- 75% टीनएजर्स को है एंग्जाइटी और डिप्रेशन:क्या यह सिर्फ इमोशनल हेल्थ है, जानें सेहत से क्या है इसका कनेक्शन

फेमस साइंटिफिक जर्नल ‘द लैंसेट साइकिएट्री’ में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, ऑस्ट्रेलिया में 75% टीनएजर्स एंग्जाइटी और डिप्रेशन से जूझ रहे हैं। 10 से 18 साल के बीच 64% एडल्ट्स को तीन से ज्यादा बार खराब मेंटल हेल्थ का सामना करना पड़ा। यह स्टडी बच्चों के लिए जाने-माने रिसर्च इंस्टीट्यूट ‘मरडोक चिल्ड्रेन्स रिसर्च इंस्टीट्यूट’ ने की है। स्टडी में यह भी लिखा गया है कि इन मामलों में क्लिनिकल केयर से ज्यादा बचाव के लिए स्ट्रेटजी बनाए जाने की जरूरत है। ‘इंडियन जर्नल ऑफ साइकिएट्री’ में साल 2019 में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, भारत में 5 करोड़ से ज्यादा बच्चे मेंटल हेल्थ की समस्याओं से जूझ रहे थे। इनमें से ज्यादातर बच्चे एंग्जाइटी और डिप्रेशन का सामना कर रहे थे। यूनिसेफ के मुताबिक, ये आंकड़े कोरोना महामारी के बाद पहले से बहुत ज्यादा बढ़ गए होंगे। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, पूरी दुनिया में 30 करोड़ से ज्यादा लोग एंग्जाइटी से जूझ रहे हैं और 28 करोड़ लोग डिप्रेशन का सामना कर रहे हैं। मौजूदा समय में यह समस्या टीनएज और युवाओं में बहुत ज्यादा है। इसलिए ‘सेहतनामा’ में आज डिप्रेशन और एंग्जाइटी की बात करेंगे। साथ ही जानेंगे कि- प्रिवेंटिव मेजर्स की सख्त जरूरत मरडॉक चिल्ड्रेन्स रिसर्च इंस्टीट्यूट की प्रोफेसर सूजन सॉयर के मुताबिक, किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर की गई यह स्टडी बहुत बड़ी समस्या की ओर इशारा कर रही है। आते हैं इमोशनल और बिहेवियरल बदलाव टीनएज में डिप्रेशन और एंग्जाइटी एक गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्या बनती जा रही है। इसके कारण बच्चों के सोचने, महसूस करने और व्यवहार करने के तरीके बदल जाते हैं। अगर थोड़ा गौर किया जाए तो किशोरों की एंग्जाइटी या डिप्रेशन की समस्या को पहचाना जा सकता है। इसका पता लगाकर उनकी मदद की जा सकती है। बिहेवियर में होते हैं बदलाव अगर कोई व्यक्ति एंग्जाइटी या डिप्रेशन का शिकार है तो उसके बिहेवियर में उसका असर दिखना शुरू हो जाता है। इन्हें पहचानकर उनकी मदद कर सकते हैं। किस तरह के बदलाव होते हैं, ग्राफिक में देखिए: क्या हैं टीनएज में एंग्जाइटी और डिप्रेशन के मुख्य कारण डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि टीनएज में लड़के-लड़कियों में कई हॉर्मोनल और शारीरिक बदलाव हो रहे होते हैं। उन्हें उसी दौरान बोर्ड परीक्षाओं के दबाव और करियर के लिए कोर्स सिलेक्शन जैसी उहापोह से भी गुजरना होता है। अगर उन्हें घर और स्कूल में सही परिवेश नहीं मिल पाया तो ये दबाव एंग्जाइटी और डिप्रेशन में बदल जाते हैं। ये कारण टीवी और अखबार में इतनी बार चर्चा का विषय बने हैं कि ज्यादातर लोग इनके लिए अवेयर हो गए हैं। हालांकि कई ऐसे कारण भी हैं, जिन पर लोगों का ध्यान नहीं जाता है। हमारी रोज की आदतों में शामिल हो चुके फास्ट फूड, शुगरी ड्रिंक्स और सोशल मीडिया भी एंग्जाइटी और डिप्रेशन का कारण बन रहे हैं। आइए देखते हैं। अनहेल्दी खानपान से पड़ता है असर साल 2024 में नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, जंक फूड, अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड और फास्ट फूड खाने से एंग्जाइटी और डिप्रेशन का जोखिम कई गुना बढ़ जाता है। इसका सबसे ज्यादा जोखिम एडल्ट्स को है क्योंकि फास्ट फूड और अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड के सबसे बड़े कंज्यूमर भी वही हैं। ज्यादा शुगरी ड्रिंक्स से बढ़ता डिप्रेशन का जोखिम नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में साल 2022 में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, चीनी या शुगरी ड्रिंक्स का सेवन किशोरों के खराब मानसिक स्वास्थ्य की बड़ी वजह बन रहा है। एनर्जी ड्रिंक या कोल्डड्रिंक के नाम पर मिल रहे सभी पेय एंग्जाइटी और डिप्रेशन का कारण बन सकते हैं। स्क्रीन टाइम और सोशल मीडिया से भी बढ़ रहा डिप्रेशन साइंटिफिक जर्नल फ्रंटियर्स में साल 2023 में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, जो टीनएजर्स रोज 7 घंटे से अधिक समय स्क्रीन पर बिताते हैं, उन्हें डिप्रेशन होने की आशंका अन्य टीनएजर्स की तुलना में दोगुने से ज्यादा थी। इसमें यह भी पता चला कि अगर कोई सोशल मीडिया पर रोज एक घंटे बिता रहा है तो हर घंटे के हिसाब से डिप्रेशन के लक्षण प्रतिवर्ष 40% बढ़ जाते हैं। एक्टिव नहीं रहने से बढ़ता डिप्रेशन BMC मेडिसिन में साल 2010 में पब्लिश हुई एक स्टडी के मुताबिक, जो लड़के-लड़कियां किसी तरह के खेल या फिजिकल एक्टिविटीज में हिस्सा नहीं लेते हैं। उन्हें डिप्रेशन होने की ज्यादा आशंका होती है। इसमें यह भी पता चला कि रोज 1 घंटे एक्सरसाइज करने से या फिजिकल एक्टिविटीज करने से डिप्रेशन या एंग्जाइटी का जोखिम 95% तक कम हो जाता है। छोटे बदलावों से होगा बड़ा असर डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि एंग्जाइटी और डिप्रेशन बड़ी मेंटल हेल्थ समस्याएं हैं। इसलिए इनके इलाज के लिए हम उपाय भी बड़े खोजते हैं। जबकि कई बार बहुत छोटे-छोटे बदलाव भी बड़ी समस्याओं को हल कर सकते हैं। यह सच है कि मेंटल हेल्थ समस्याओं को रोकने का कोई निश्चित तरीका नहीं है। इसके बावजूद हम कुछ उपाय कर सकते हैं। इसमें खास मेहनत भी नहीं लगनी है। इसके लिए स्ट्रेटजी बनाकर लाइफस्टाइल में बहुत छोटे-छोटे बदलाव करने हैं: 1. बच्चे के डाइट और डेली रुटीन पर ध्यान दें। उन्हें बैलेंस्ड और हेल्दी डाइट के फायदे बताएं और इसे नियमित रूप से फॉलो करने के लिए प्रेरित करें। 2. सुबह उठकर बच्चों के साथ टहलने या जॉगिंग के लिए जाएं। इसके बाद शाम के समय उन्हें कुछ देर आउटडोर गेम्स खेलने का मौका दें। 3. अच्छी मेंटल हेल्थ के लिए क्वालिटी नींद बहुत जरूरी है। इसके लिए ध्यान दें कि बच्चा रोज 7 घंटे की पर्याप्त नींद ले रहा है। 4. हम टीनएजर्स को स्क्रीन और सोशल मीडिया से एकदम दूर नहीं रख सकते हैं। उन्हें इसके इस्तेमाल के लिए इंटरनेट और सोशल मीडिया लिटरेसी सिखाएं। इसके इस्तेमाल के लिए समय तय करने की आदत बनवाएं। 5. बच्चों पर अपनी अपेक्षाओं का बोझ कभी न डालें। उनके परफॉर्मेंस पर निगरानी रखें। इसके बाद उनकी कमजोरी और ताकत को पहचानकर स्ट्रेटजिक तरीके से उनकी मदद करें। 6. अपने बच्चे को ऐसा माहौल दें कि वह अपने मन की बात दोस्तों और परिवार के लोगों के साथ साझा करने में संकोच महसूस न करें। ……………………..
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