स्वामी विवेकानंद से एक व्यक्ति ने पूछा था:श्रीकृष्ण मुरली बजाते थे तो गायें दौड़कर उनके पास कैसे आ जाती थीं, जानिए स्वामी जी ने कैसे दिया इस प्रश्न का जवाब

जीवन में संवाद का महत्व केवल इतना नहीं होता कि हम क्या कह रहे हैं, असल शक्ति इस बात में होती है कि हम अपनी बात कैसे कह रहे हैं। प्रभावशाली वाणी, सही समय पर सही उत्तर और सही तर्क, इन तीनों की मदद से व्यक्ति सफल होता है, सभी से मान-सम्मान पाता है। स्वामी विवेकानंद के एक किस्से से ये बात आसानी से समझ सकते हैं… स्वामी विवेकानंद जब लोगों को उपदेश देते थे, तब कई लोग उनसे तरह-तरह के सवाल भी पूछा करते थे। कुछ सवालों के जवाब वे तुरंत दे देते थे, और कुछ के लिए कहते थे, थोड़ी प्रतीक्षा कीजिए। जब वे ऐसा कहते थे तो लोग समझ जाते थे कि स्वामी जी इस प्रश्न का उत्तर किसी उदाहरण के साथ और तर्क के साथ ढंग से देंगे। एक दिन किसी व्यक्ति ने स्वामी जी से पूछा कि हमने सुना है कि जब श्रीकृष्ण मुरली बजाते थे तो गायें दौड़कर उनके पास आ जाती थीं। ऐसा कैसे संभव है, गायों को भी क्या सुनाई देता होगा? उस समय वहां कई लोग मौजूद थे, सभी ने ये प्रश्न सुना और सभी इसका उत्तर सुनने के लिए उत्सुक थे, लेकिन स्वामी जी ने कहा कि इसके उत्तर के लिए थोड़ी प्रतीक्षा करें। इसके बाद कई दिन बीत गए, कई लोग ये प्रश्न भी भूल गए। फिर एक दिन स्वामी जी एक सुंदर और रोचक व्याख्यान दे रहे थे। उनकी बातें लोगों को बहुत अच्छी लग रही थीं, सभी बहुत ध्यान से सुन रहे थे। तभी उन्होंने बीच में बोलना बंद कर दिया और बिना कुछ कहे वहां से जाने लगे। सुनने वाले लोग हैरान रह गए। वे उनकी अधूरी बात सुनने के लिए बेचैन हो गए। लोग स्वामी जी के पीछे-पीछे चलने लगे और आग्रह करने लगे कि कृपया अपना व्याख्यान पूरा कीजिए। हम आपकी बात पूरी सुनना चाहते हैं। तब स्वामी विवेकानंद रुके, मुस्कराए और बोले कि कुछ दिन पहले आप में से किसी ने मुझसे पूछा था कि भगवान श्रीकृष्ण की मुरली सुनकर गायें दौड़कर कैसे आ जाती थीं? अब आप सभी सोचिए, जब मेरे जैसे साधारण मनुष्य की अधूरी बात सुनने के लिए आप सब मेरे पीछे-पीछे आ सकते हैं तो वे तो श्रीकृष्ण स्वयं भगवान हैं, उनकी मुरली में कितना आकर्षण रहा होगा? लोगों को स्वामी जी की बातें समझ आ गईं और भीड़ वह व्यक्ति भी था, जिसने ये प्रश्न पूछा था, वह भी स्वामी जी के सामने नतमस्तक हो गया। इस कहानी से सीखें जीवन प्रबंधन के ये सूत्र स्वामी विवेकानंद ने न तो उस व्यक्ति से बहस की और न ही उसकी आलोचना की। उन्होंने उस प्रश्न का उत्तर इतनी विनम्रता, गहराई और तर्क से दिया कि श्रोता स्वयं ही उत्तर समझ गए। हमें अपनी बात को तर्क और सम्मान के साथ रखना चाहिए। आवाज में कठोरता नहीं, बल्कि शांति और आत्मविश्वास हो। मीठी वाणी से आप विरोधियों को भी प्रभावित कर सकते हैं। अगर हमारे घर में या ऑफिस में कोई व्यक्ति गलती करता है तो हमें कहना चाहिए कि अगर अगली बार हम इस हिस्से को थोड़ा और सावधानी से देखें तो बेहतर होगा। ऐसा कहने से हम अपनी बात कह भी देते हैं और रिश्ता भी नहीं बिगड़ता। स्वामी जी ने प्रश्न का उत्तर तुरंत नहीं दिया। उन्होंने सही समय की प्रतीक्षा की, ताकि जवाब न केवल तर्कसंगत हो, बल्कि अनुभव से जुड़ा हो। जरूरी नहीं कि हर सवाल का जवाब, उसी पल दिया जाए। सोचने, समझने और सही अवसर ढूंढने में समय लगाएं। जवाब तब दीजिए, जब वह सामने वाले को महसूस हो, सिर्फ सुनाई न दे। अगर कोई हमसे तीखा सवाल पूछता है तो हमें कहना चाहिए कि ये विषय महत्वपूर्ण है। मैं इस पर सोचकर कल विस्तार से जवाब दूंगा। ये आपको मानसिक संतुलन देता है और जवाब का महत्व बढ़ाता है। स्वामी जी ने वही उदाहरण चुना, जिसे श्रोता महसूस कर सकें। जब लोग स्वयं दौड़ पड़े, तब उन्होंने कृष्ण की मुरली का प्रभाव लोगों को खुद की स्थिति से समझाया। अगर हम चाहते हैं कि लोग हमारी बात समझें तो उन्हें वही अनुभव कराएं जो हम कहना चाहते हैं। जब लोग खुद अपनी स्थिति से जुड़े उदाहरण देखते हैं तो बात बहुत जल्दी समझते हैं।