‘धारावी’ में स्लम की दुनिया दिखा चुके सुधीर मिश्रा ने इस फिल्म में एक बार फिर वैसी ही कोशिश की है। इसके लिए इस बार उन्होंने मुंबई में वर्ली की बीडीडी चॉल का चयन किया है। जहां 120 कबूतरखाने साइज वाली चॉल में 15 हजार परिवार रहते हैं। उस चॉल के चारों तरफ गगनचुंबी इमारतें हैं, जहां बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दफ्तर और करोड़पतियों के घर हैं। जिन्हें देखकर चॉल में रहने वाले लोग भी महत्वाकांक्षी हो चुके हैं।
समंदर से गहरी ख्वाहिशों को पूरा करने के चक्कर में चॉल के लोग कई बार शॉर्ट कट रास्ते अख्तियार करते हैं, कई बार जिनकी उन्हें कीमत चुकानी पड़ जाती है। इसी चॉल में तमिल दलित अय्यन मणि (नवाज) अपनी बीवी (इंदिरा तिवारी) और बेटे आदि (अक्षत दास) के साथ रहता है। वैज्ञानिक बॉस आचार्य (नसर) की डांट सुनकर जीवन व्यतीत करने को मजबूर है।
अय्यन का बचपन तो तंगहाली में बीता है। लेकिन वो अपने बेटे आदि के साथ किसी हाल में उसकी पुनरावृति नहीं होने देना चाहता। इसलिए वो अपने वैज्ञानिक बॉस आचार्य की सिफारिशों की जुगाड़ लगाता रहता है। बेटे आदि की गणना क्षमता का प्रपंच तक रचता है। इसमें कथित तौर पर ‘ह्यूमन एंगल’ वाली स्टोरीज ढूंढने वाली मीडिया की भी खूब मदद मिलती है।
दलित आदि की ख्याति जीनियस के तौर पर स्थापित हो जाती है। वहां दलित कार्ड खेलने वाले बाप-बेटी पॉलिटिशन (संजय नार्वेकर और श्वेता बासु प्रसाद) आ जाते हैं। फिर अय्यन मणि अपने सपने अपने बेटे के द्वारा पूरा कर पाता है या नहीं, वही फिल्म में है।

सुधीर मिश्रा दरअसल अय्यन के किरदार के जरिए ऐसे इंसान से मिलवाते हैं, जो कथित तौर पर ‘महत्वाकांक्षी’ है। उसे जस्टिफाई करने के लिए वो अपने द्वारा ही गढ़े गए खोखले तर्कों के जाल में फंस कर रह जाता है। अय्यन जानता है कि अपने जीनियस बेटे के द्वारा जो खेल वो खेल रहा है, उसका अंतिम परिणाम क्या है। पर उसे अपने खोखले, झूठे तर्कों पर ही इतना भरोसा होता जाता है कि वह लगातार जोखिम लेता चला जाता है। वो धोखे को सीढ़ी बना लेता है, जो आसमानी ऊंचाइयों तक बिरले ही ले जाते हैं।
हम दरअसल ऐसी दुनिया में रह रहे हैं, जहां लोग इस बात की ज्यादा परवाह करते हैं कि चीजें ऊपरी तौर पर कैसी दिखती हैं। असल में उस चीज की असलियत क्या है, उससे हमें कोई लेना देना नहीं है। अगर झूठ और खोखले तर्क खूबसूरती से सजा कर हमारे सामने लाए जाएं तो उन्हें मान लेने में हम देर नहीं करते। फिल्म में अय्यन, वैज्ञानिक आचार्य हर कोई ‘रैट रेस’ में है। हर कोई उन झूठों से भी कन्वींस हो जाना चाहता है, जिसे महत्वाकांक्षा के नाम पर बेचा जा रहा है। यह काम सोशल मीडिया कर रहा है। हम उन्हें सच मान रहे हैं।
अय्यन भी अपने बेटे के झूठे जीनियसपन को बेच रहा है कि उसका आईक्यू 169 है। अय्यन के रोल में नवाज ने फिर जाहिर किया है कि वो क्यूं अभिनय के सरताज हैं। उन्हें बाकी सभी कलाकारों का ‘सीरियस’ साथ मिला है। सबने जानदार एक्टिंग की है। सूत्रधार के तौर पर भी नवाज की आवाज और सर्वाइवल के टेंशन में जी रहे इंसान का सधा हुआ इस्तेमाल हुआ है।
सर्वाइवल की लड़ाई पर सिस्टम, समाज और साइंस तीनों डिनाइल मोड में हैं। इसका अंत उसी तरह तय है, जैसा एक स्टार की तरह होता है, जब अल्टीमेटली वह ब्लैक होल बन जाता है। फिल्म हालांकि उस नोट पर खत्म होती है, जहां मामला पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त सा है।
अवधि:- एक घंटे 54 मिनट
स्टार:- साढ़े तीन
कहां देखें: नेटफ्लिक्स