मानवाधिकार मामलों पर नजर रखने वाली संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच (एचआरडब्ल्यू) ने पाकिस्तान की इमरान खान सरकार पर बेहद गंभीर आरोप लगाया। एचआरडब्ल्यू ने कहा- पाकिस्तान सरकार विपक्ष और विरोधियों की आवाज दबाने के लिए जांच एजेंसियां का बेजा इस्तेमाल कर रही है। संस्था ने खासतौर पर भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करने वाली एजेंसी नेशनल अकाउंटेबिलिटी (नैब) का जिक्र किया।
पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी समेत कई नेताओं पर नैब ने न सिर्फ केस दर्ज किए। बल्कि गैरकानूनी तरीके से उन्हें गिफ्तार कर जेल में भी रखा।
ये तनाशाही तरीका
एचआरडब्ल्यू ने नैब के रवैये पर कहा- इमरान सरकार की यह जांच एजेंसी तानाशाही के दौर की याद दिलाती है। इसका इस्तेमाल विपक्ष की आवाज दबाने और उसके नेताओं को टॉर्चर करने के लिए किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस जांच एजेंसी के अधिकार कम करने को कहा है। इस बारे में सुप्रीम कोर्ट ने 87 पेज का आदेश जारी किया था। लेकिन, सरकार ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया।
बिलावल भुट्टो का उदाहरण
रिपोर्ट में कहा गया- पाकिस्तान युवा विपक्षी नेता बिलावल भुट्टो जरदारी के खिलाफ किसी तरह का कोई केस दर्ज नहीं है। लेकिन, नैब उन्हें भी पेश होने के आदेश जारी करती है। इसे साफ तौर पर सियासी बदला क्यों न माना जाए? इस्लामाबाद हाईकोर्ट ने फरवरी में ही कहा था कि नैब के जरिए सत्ता बचाने और उसे मजबूत करने की कोशिश की जा रही है और इसे फौरन बंद होना चाहिए।
ये कैसा कानून
नैब किसी भी शख्स को बिना आरोप के भी 90 दिन तक हिरासत में रख सकती है। इसके लिए इमरान सरकार ने संसद में विधेयक पास कराया था। पाकिस्तान के बड़े जर्नलिस्ट मीर शकील-उर-रहमान को सरकारी विरोधी आर्टिकल लिखने की वजह से मार्च में अरेस्ट किया गया था। वो अब भी जेल में हैं। जबकि, हाईकोर्ट उनकी रिहाई के आदेश दे चुका है।
इन नेताओं को भी गिरफ्तार किया
असिफ अली जरदारी पिछले साल से बिना किसी आरोप के सिद्ध हुए जेल में हैं। नवाज शरीफ भी कई महीने जेल में रहे। तबीयत बिगड़ने पर उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने विदेश जाने की मंजूरी दी। पूर्व प्रधानमंत्री गिलानी और शाहिद खकान अब्बासी भी जेल जा चुके हैं। पंजाब यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर मुजाहिद कामरान और प्रोफेसर जावेद अहमद तो 2018 से जेल में हैं। इन्हें इमरान का विरोधी माना जाता है।
रिपोर्ट के मायने क्या
इस रिपोर्ट से इमरान सरकार पर दबाव बढ़ना तय है। पाकिस्तान वर्ल्ड बैंक, एशियन डेवलपमेंट बैंक यानी एडीबी और आईएमएफ से कर्जों की किश्त चुकाने के लिए भी कर्ज मांग रहा है। ये संस्थाएं कर्ज देने से पहले मानवाधिकार समेत कई रिपोर्ट्स पर नजर रखती हैं। अगर इमरान सरकार ने तानाशाही रवैया नहीं छोड़ा तो उसकी मुश्किलें बढ़ना तय है।
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