14 जनवरी को मकर संक्रांति:सूर्य पूजा का महापर्व- नदी स्नान, तिल-गुड़ खाने और दान करने की परंपरा, जानिए संक्रांति से जुड़ी मान्यताएं

इस साल मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाएगी। पिछले कुछ सालों में ये पर्व कभी-कभी 15 जनवरी को मनाया गया था। ज्योतिष में सूर्य के राशि परिवर्तन को संक्रांति कहते हैं और जब ये ग्रह धनु से मकर राशि में प्रवेश करता है, तब इसे मकर संक्रांति कहा जाता है। ये दिन सूर्य की पूजा करने का और सूर्य के साथ प्रकृति का आभार मानने का पर्व है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण होता है। जानिए मकर संक्रांति से जुड़ी खास बातें… महाभारत में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति की तिथि चुनी थी। महाभारत युद्ध खत्म होने के बाद भी कई दिनों तक भीष्म बाणों की शय्या पर ही रहे। दरअसल, भीष्म को इच्छामृत्यु का वरदान मिला हुआ था, इस वजह से वे इतने बाण लगने के बाद भी मरे नहीं। शास्त्रों की मान्यता है कि उत्तराणय से देवताओं का दिन शुरू होता है, ये धर्म-कर्म और दान-पुण्य के नजरिए से संक्रांति का महत्व काफी अधिक है। इस दिन किए गए नदी स्नान, पूजन और दान से अक्षय पुण्य मिलता है, ऐसा पुण्य जिसका असर जीवनभर बना रहता है। पंचदेवों में से एक हैं सूर्य देव शास्त्रों में पंचदेव बताए गए हैं, इनकी पूजा के साथ ही सभी शुभ कामों की शुरुआत होती है। इन पांच देवताओं में भगवान गणेश, शिव, विष्णु, देवी दुर्गा और सूर्य देव शामिल हैं। सूर्य एकमात्र प्रत्यक्ष दिखाई देने वाले देवता माने गए हैं। सूर्य की वजह से ही ये पूरी सृष्टि चल रही है, धरती पर जीवन सूर्य की वजह से ही है। सूर्य के कारण ही हमें भोजन, पानी, प्राण वायु, सब कुछ मिल रहा है। इसलिए संक्रांति पर सूर्य पूजा करके हम सूर्य के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं। सूर्य पूजा के बारे में स्कंद पुराण, पद्म पुराण, भविष्य पुराण, भागवत पुराण और महाभारत जैसे कई ग्रंथों में बताया गया है। मकर संक्रांति से जुड़ी मान्यताएं