हिंदू कैलेंडर के अनुसार 15 या 16 जुलाई को सूर्य कर्क राशि में आ जाता है। जिसे कर्क संक्रांति कहते हैं। कर्क संक्रांति से दिन छोटे और रातें लंबी होने लगती हैं। काशी के ज्योतिषाचार्य पं. गणेश मिश्र का कहना है कि इस बार गुरुवार, 16 जुलाई को रात 10:36 पर रोहिणी नक्षत्र में सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करेगा। जिससे दक्षिणायन शुरू हो जाएगा। दक्षिणायन अगले 6 महीने यानी मकर संक्रांति तक रहेगा। पं. मिश्र के अनुसार कर्क संक्रांति का पुण्यकाल गुरुवार को ही सुबह 6.15 से 11 बजे तक रहेगा। इस दौरान ही तीर्थ जल से स्नान, दान और पूजा करने से पुण्य फल मिलेगा।
- हिंदू कैलेंडर के श्रावण महीने से पौष मास तक सूर्य का उत्तरी छोर से दक्षिणी छोर तक जाना दक्षिणायन होता है। पं. मिश्र ने बताया कि ज्योतिष और धर्म ग्रंथों के अनुसार दक्षिणायन देवताओं की रात होती है और उत्तरायन का समय देवताओं का दिन कहलाता है। इस तरह वैदिक काल से ही उत्तरायण को देवयान और दक्षिणायन को पितृयान कहा जाता रहा है।
गुरुवार कोकर्क संक्रांति होना शुभ
पं. मिश्र ने बताया कि इस बार रात में सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करेगा। ज्योतिष के संहिता ग्रंथों के अनुसार रात में संक्रांति हो तो सुख देने वाली होती है। डंक ऋषि के अनुसार गुरुवार के दिन सूर्य की संक्रान्ति होने से इसका नाम महोदरी है। इसके प्रभाव से लोगों का व्यापार बढ़ेगा और आर्थिक स्थिति भी मजबूत होंगी। पीले रंग की चीजों के दाम कम होने की भी संभावना है।
कर्क संक्रांति पूजन
कर्क संक्रांति पर सूर्योदय के समय पवित्र नदियों में स्नान करना चाहिए। फिर स्वस्थ रहने की कामना से सूर्यदेव को अर्घ्य देना चाहिए। इसके साथ ही भगवान शिव और विष्णु की पूजा का खास महत्व होता है। विष्णु सहस्त्रनाम का जाप किया जाता है। पूजा के बाद श्रद्धाअनुसार दान का संकल्प लिया जाता है। फिर जरुरतमंद लोगों को जल, अन्न, कपड़ें और अन्य चीजों का दान किया जाता है। इसके साथ ही गाय को घास खिलाने का भी महत्व है।
- सावन महीने में सूर्य संक्रांति होने से इस दिन भगवान भोलेनाथ की पूजा करने से पुण्य फलों में वृद्धि होती है। इस दिन ऊं नम: शिवाय मंत्र बोलते हुए दूध और गंगाजल से शिवजी का अभिषेक करना चाहिए। इसके बाद बेलपत्र, फल और अन्य सामग्री सहित शिवलिंग का पूजन भी करना चाहिए।
दक्षिणायन के 4 महीनों में नहीं किए जाते शुभ काम
हिंदू कैलेंडर के श्रावण, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष और पौष ये 6 महीने दक्षिणायन में आते हैं। इनमें से शुरुआती 4 महीने किसी भी तरह के शुभ और नए काम नहीं करना चाहिए। इस दौरान देव शयन होने के कारण दान, पूजन और पुण्य कर्म ही किए जाने चाहिए। इस समय में भगवान विष्णु के पूजन का खास महत्व होता है और यह पूजन देवउठनी एकादशी तक चलता रहता है क्योंकि विष्णु देव इन 4 महीनों के लिए क्षीर सागर में योग निद्रा में शयन करते हैं। इसके अलावा भाद्रपद महीने में पितृ पूजा करने का महत्व होता है।