रविवार, 16 फरवरी को फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्थी है। रविवार को हस्त नक्षत्र होने से इस दिन मानस नाम का शुभ बनेगा। रविवार, चतुर्थी और मानस योग होने से इस दिन धर्म-कर्म, दान-पुण्य करना चाहिए और सुबह उगते सूर्य को जल चढ़ाकर दिन की शुरुआत करनी चाहिए। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, रविवार और चतुर्थी के योग में गणेश पूजा के साथ ही सूर्य देव के लिए भी विशेष पूजा करनी चाहिए। चतुर्थी तिथि के स्वामी भगवान गणेश माने गए हैं, क्योंकि इसी तिथि पर गणेश जी प्रकट हुए थे। इस कारण साल की सभी चतुर्थियों पर भक्त व्रत-उपवास रखते हैं और विशेष पूजन करते हैं। ज्योतिष में सूर्य को रविवार का कारक ग्रह बताया गया है यानी इस वजह से रविवार को सूर्य की पूजा खासतौर पर की जाती है। जिन लोगों की कुंडली में सूर्य ग्रह से जुड़े दोष हैं, उन्हें रोज सुबह सूर्य को जल चढ़ाने की सलाह ज्योतिषियों द्वारा दी जाती है। सूर्य नौ ग्रहों का राजा है और इस ग्रह की पूजा से कुंडली के ग्रह दोषों का असर कम हो सकता है। ऐसे कर सकते हैं गणपति पूजा गणेश चतुर्थी पर घर के मंदिर में गणेश प्रतिमा स्थापित करें। भगवान को जल, दूध, पंचामृत चढ़ाएं। हार-फूल और वस्त्रों से श्रृंगार करें। चंदन का तिलक लगाएं। दूर्वा, शमी पत्तों के साथ ही चावल, फूल, सिंदूर भी अर्पित करें। गणेश जी को दूर्वा के जोड़े बनाकर चढ़ाना चाहिए। 22 दूर्वा को लेकर दूर्वा के 11 जोड़े तैयार करें और भगवान को चढ़ाएं। दूर्वा चढ़ाते समय ऊँ गं गणपतयै नम: मंत्र का जप करना चाहिए। मोदक, बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं। धूप-दीप जलाकर आरती करें। भगवान के सामने चतुर्थी व्रत करने का संकल्प लें। दिनभर निराहार रहें और शाम को चंद्र उदय के बाद चंद्र पूजा करें, गणेश पूजा करें और इसके बाद भोजन करें। इस तरह चतुर्थी व्रत पूरा होता है। चतुर्थी पर किसी पौराणिक गणेश मंदिर जाएं और भगवान को दूर्वा, शमी के पत्ते चढ़ाएं। लड्डू का भोग लगाएं। ध्यान रखें दूर्वा किसी साफ जगह पर उगी हुई होनी चाहिए या किसी मंदिर के पार्क में उगी हुई हो। दूर्वा धोकर भगवान को अर्पित करें। पूजा में गणेश जी के इन 11 नाम मंत्रों का जप भी कर सकते हैं… ऊँ गं गणपतेय नम:, ऊँ गणाधिपाय नमः, ऊँ उमापुत्राय नमः, ऊँ विघ्ननाशनाय नमः, ऊँ विनायकाय नमः, ऊँ ईशपुत्राय नमः, ऊँ सर्वसिद्धिप्रदाय नमः, ऊँ एकदन्ताय नमः, ऊँ इभवक्त्राय नमः, ऊँ मूषकवाहनाय नमः, ऊँ कुमारगुरवे नमः