बुधवार, 30 अप्रैल को वैशाख शुक्ल तृतीया यानी अक्षय तृतीया है। यह दिन न केवल शुभ कार्यों के लिए जाना जाता है, बल्कि भगवान विष्णु के छठे अवतार, परशुराम के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। इस अवसर पर महाभारत काल की एक प्रेरक कथा हमें जीवन प्रबंधन का एक गहरा संदेश देती है। कथा है कि कर्ण, जो जन्म से कुंती पुत्र था, लेकिन पालन-पोषण सूत अधिरथ और राधा ने किया था, एक महान योद्धा बनना चाहता था। परशुराम से अस्त्र-शस्त्र की विद्या सीखने का उसका संकल्प अटल था, लेकिन उसे यह भी पता था कि परशुराम केवल ब्राह्मणों को ही युद्ध विद्या सिखाते हैं। इसलिए कर्ण ने ब्राह्मण होने का झूठ बोलकर परशुराम से दीक्षा ली। कर्ण ने पूरी श्रद्धा और लगन से विद्याभ्यास किया। एक दिन, जब परशुराम उसकी गोद में सिर रखकर विश्राम कर रहे थे, एक कीड़ा आकर कर्ण की जांघ में डंक मारने लगा। कर्ण ने अत्यधिक पीड़ा सहन की, लेकिन गुरु की नींद में विघ्न न पड़े, इसलिए हिला तक नहीं। जब रक्त की धार ने परशुराम को जगा दिया। परशुराम ने देखा कि कर्ण की जांघ पर कीड़े ने डंक मारे है, कर्ण को असहनीय पीड़ा भी हो रही थी, लेकिन उसने ये पीड़ा सहन कर ली, ताकि गुरु की नींद में बाधा न पड़े। ये देखकर परशुराम समझ गए कि कर्ण ब्राह्मण नहीं है, क्योंकि कोई ब्राह्मण इतनी पीड़ा इस तरह सहन नहीं कर सकता था। उन्होंने कर्ण से सच्चाई पूछी। कर्ण ने अपना झूठ स्वीकार कर लिया। परशुराम, जो सत्य के प्रतीक माने जाते हैं, क्रोधित हुए और कर्ण को शाप दिया कि जब सबसे अधिक आवश्यकता होगी, तब वह अपने दिव्यास्त्रों के प्रयोग की विधि भूल जाएगा। यही शाप महाभारत युद्ध के निर्णायक समय में कर्ण के पतन का कारण बना। जीवन प्रबंधन के महत्वपूर्ण सूत्र ईमानदारी सबसे बड़ी पूंजी है: विद्या प्राप्ति हो या कोई भी लक्ष्य, यदि नींव झूठ पर रखी जाए, तो सफलता स्थायी नहीं रहती। लक्ष्य पाने की लगन अच्छी है, लेकिन साधन भी शुद्ध होने चाहिए: किसी भी उद्देश्य के लिए सही मार्ग चुनना उतना ही आवश्यक है जितना कि स्वयं उद्देश्य। धैर्य और सेवा का महत्व: कर्ण ने दर्द सहते हुए भी अपने गुरु की सेवा को प्राथमिकता दी, जो उसकी चरित्र की उच्चता को दर्शाता है। सेवा और समर्पण जीवन में बड़ी शक्ति देते हैं। कर्मफल अटल है: गलत साधनों से अर्जित ज्ञान भी समय आने पर साथ छोड़ सकता है। इसलिए अपने कर्मों में शुद्धता आवश्यक है। अक्षय तृतीया जैसे शुभ अवसरों पर हमें यह आत्मचिंतन करना चाहिए कि हमारे कार्य, हमारे उद्देश्य और हमारा मार्ग कितना शुद्ध है। जब हम सत्य, सेवा और समर्पण के साथ आगे बढ़ते हैं, तभी सफलता भी अक्षय बनती है यानी कभी न समाप्त होने वाली।