कोरोनावायरस महामारी ने वाइट कॉलर जॉब करनेवालों पर बुरा असर डाला है। मई से अगस्त के बीच 66 लाख लोग बेरोजगार हो गए हैं। थिंक-टैंक सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) रिपोर्ट के मुताबिक, इसमें इंजीनियर, डॉक्टर, शिक्षक, एकाउंटेंट, विश्लेषक समेत कई सेक्टर के पेशेवरों की नौकरी गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2016 के बाद से रोजगार अपने सबसे न्यूनतम स्तर आ गई है।
2016 के बाद इन प्रोफेशनल्स में यह सबसे कम स्तर है
सीएमआई के साप्ताहिक विश्लेषण के आधार पर यह सर्वे जारी किया गया है। यह सर्वे हर चार महीने में किया जाता है। सैलरीड कर्मचारियों में सबसे बड़ा रोजगार का नुकसान व्हाइट कॉलर प्रोफेशनल और अन्य कर्मचारियों का हुआ है। देश में मई-अगस्त 2019 के दौरान व्हाइट कॉलर कर्मचारियों की संख्या 18.8 मिलियन थी। मई-अगस्त 2020 में इसमें 12.2 मिलियन की कमी आई है। साल 2016 के बाद इन प्रोफेशनल्स में यह सबसे कम स्तर है। सीएमआईई ने कहा कि पिछले चार सालों में लॉकडाउन में सबसे ज्यादा गिरावट रोजगार में देखी गई है।
सेल्फ इम्प्लायमेंट वाले पेशेवर उद्यमी शामिल नहीं
सीएमआईई के मुताबिक योग्य सेल्फ इम्पलाॅयमेंट वाले पेशेवर उद्यमी इसमें शामिल नहीं हैं। हालांकि, लॉकडाउन ने उन कर्मचारियों को प्रभावित नहीं किया, जो मुख्य रूप से डेस्क-वर्क के कर्मचारी शामिल हैं। इनमें सचिव और ऑफिस क्लर्क से लेकर बीपीओ / केपीओ , डेटा-एंट्री ऑपरेटर समेत अन्य शामिल हैं।
केवल जुलाई महीने में 50 लाख नौकरियां गई
सीएमआईई की रिपोर्ट के अनुसार केवल जुलाई महीने में ही 50 लाख लोगों की नौकरियां चली गईं। रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना काल में अब तक 1 करोड़ 89 लाख लोग अपनी नौकरियां गंवा चुके हैं। इससे पहले सीएमआईई ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि अप्रैल 2020 में 17.7 मिलियन लोगों की नौकरी चली गयी थी, वहीं मई में यह आंकड़ा 0.1 मिलियन का रहा। इसके बाद जून में लगभग 3.9 मिलियन लोगों को नौकरी वापस मिली।
दोबारा नौकरी मिलेगी या नहीं पता नहीं
सीएमआईई ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि यह स्थिति बहुत विपरीत है और बहुत ही कम उम्मीद है कि वेतनभोगी लोगों को दोबारा से नौकरी मिलेगी। रिपोर्ट में संदेह जताया गया है कि जितनी बड़ी तादाद में लोगों की नौकरियां गई हैं उतनी तादाद में नौकरियां वापस मिलने की संभावना नहीं है। लॉकडाउन के दौरान वेतनभोगी लोगों की नौकरी पर काफी असर पड़ा वे बेरोजगार हो गये। असंगठित क्षेत्रों में स्थिति और भी गंभीर है। 2019-20 में वेतनभोगी नौकरियां औसतन लगभग 190 लाख थीं। लेकिन पिछले वित्त वर्ष में इसकी संख्या कम होकर अपने स्तर से 22 प्रतिशत नीचे चली गई।