60-65 साल की उम्र में रिटायर होने से पहले इसे देखिए, 77 साल में दूसरा स्टार्टअप खड़ा करने वाले ये हैं हैप्पिएस्ट माइंड के अशोक सूता

आप अगर यह सोच रहे हैं कि 60-65 साल में रिटायर हो जाएं तो आपको उससे पहले यह भी देखना चाहिए। अशोक सूता एक बार फिर चर्चा में हैं। वे 60-65 के नहीं हैं। ना ही वे रिटायर हुए हैं। वे 77 साल के हैं और इस उम्र में उन्होंने दूसरा स्टार्टअप खड़ा कर दिया। सिर्फ खड़ा ही नहीं किया, बल्कि पूरी तरह से स्थापित कर उसका आईपीओ लाया। आईपीओ भी कोई एक दो गुना नहीं भरा, बल्कि 150 गुना भरा। वह भी ऐसे माहौल में लाया जब कोविड का असर पूरी अर्थव्यवस्था पर है।

उनकी हिम्मत देखिए की आईपीओ का बाजार पूरी तरह से सूना है। सेबी से मंजूरी पा कर दर्जनों कंपनियां आईपीओ इसलिए नहीं लाई क्योंकि उन्हें पैसा न मिलने का डर है। पर अशोक सूता ने इसी डर के माहौल में एंट्री की और इस महीने में आईपीओ की लाइन लग गई।

700 करोड़ चाहिए था, मिला 58 हजार करोड़ से ज्यादा

अशोक सूता को हैप्पिएस्ट के आईपीओ से केवल 700 करोड़ रुपए चाहिए था। उन्हें निवेशकों से 58 हजार करोड़ से ज्यादा की राशि मिली। रिटेल निवेशकों ने भी दम लगाया और 70 गुना सब्सक्रिप्शन दिया। इसकी लिस्टिंग बुधवार को है। किसी भी उद्यमी के लिए दूसरी बार सफलता का स्वाद चखना बड़ा मुश्किल होता है। पर 77 साल के अशोक सूता उन असाधारण लोगों में से एक हैं।

13 साल पहले के आईपीओ की याद दिला दी

हैप्पिएस्ट माइंड्स के 700 करोड़ रुपए के इनिशियल पब्लिक ऑफर से करीब 13 साल पहले उन्होंने अपनी पिछली कंपनी माइंडट्री का आईपीओ लाया था और उस इश्यू को 103 बार ओवरसब्सक्राइब किया गया था। सूता ने कहा कि लोगों को लगा कि हम लॉकडाउन के बीच में आईपीओ के लिए फाइल करने के लिए पागल हुए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें अपने कारोबार को देखते हुए पूर्ण विश्वास था।

76 प्रतिशत रेवेन्यू पर कोरोना का भी असर नहीं

उनके रेवेन्यू कुल रेवेन्यू के 76 प्रतिशत हिस्से पर लॉकडाउन या कोरोना का कोई असर नहीं हुआ। उस रेवेन्यू का आधे से अधिक शिक्षा और हाईटेक क्षेत्रों से आता है। उन्होंने कहा कि डिजिटल सेवाओं पर कंपनी का फोकस भी इसे पारंपरिक आईटी कंपनियों से बिल्कुल अलग स्तर पर रखता है ।

तीन सालों में 21 प्रतिशत सीएजीआर की दर से बढ़ा रेवेन्यू

हैप्पिएस्ट माइंड का कारोबार पिछले तीन सालों में लगभग 21% सीएजीआर की दर से बढ़ा है। वह भी ऐसे समय में, जब आईटी उद्योग महज 8-10% तक की ही ग्रोथ हासिल कर पाया। सूता ने आईआईटी-रुड़की से इंजीनियरिंग की और श्रीराम रेफ्रिजरेशन इंडस्ट्रीज में रहे। उन्हें 1985 में अजीम प्रेमजी ने विप्रो के तत्कालीन आईटी बिजनेस बनाने के लिए हायर किया था। इसी के बाद अगले 14 वर्षों में सूता विप्रो का चेहरा बन गये। इसके बाद प्रेमजी की कंपनी में वाईस चेयरमैन भी बने।

10 लोगों के साथ 1999 में माइंडट्री को सूता ने लीड किया

1999 में सूता ने विप्रो और अन्य कंपनियों के 10 वरिष्ठ अधिकारियों के एक समूह का नेतृत्व किया, जो आगे चलकर माइंडट्री बना। अगले एक साल तक सब कुछ अच्छा ही हुआ। उससे भी अच्छा तब हुआ जब 2007 में इसका आईपीओ आया। यह आईपीओ 100 गुना से ज्यादा सब्सक्राइब हुआ। हालांकि यह खुशी बहुत दिन तक सूता के साथ नहीं रह पाई। कारण कि वहां संस्थापकों के बीच मतभेद उभरने लगे।

सूता एक ओर और बाकी सब एक ओर थे माइंडट्री में

ऐसा लग रहा था जैसे एक तरफ सूता थे और दूसरी ओर बाकी सब। यह अभी भी बहुत स्पष्ट नहीं है कि वे मतभेद क्या थे। कुछ इसे मोबाइल हैंडसेट कारोबार में प्रवेश के लिए सूता की जोर आजमाइश को देखते हैं जिससे काफी नुकसान हुआ था। जबकि कुछ का कहना है कि संस्थापकों के बीच जिम्मेदारियों को लेकर मतभेद थे। आखिरकार सूता ने माइंडट्री छोड़ दिया और कंपनी में अपने सभी शेयरों को बेच दिया। 2011 में 68 की उम्र में धैर्य और दृढ़ता का एक उल्लेखनीय प्रदर्शन कर उन्होंने हैप्पिएस्ट माइंड की स्थापना की।

इसलिए हैप्पिएस्ट माइंड का नाम दिया

सूता ने बताया कि उन्होंने कंपनी को हैप्पिएस्ट माइंड्स का नाम इसलिए दिया कि ताकि कंपनी को यह लगे कि वे अपने खुश कर्मचारियों की बदौलत ग्राहकों की खुशी-खुशी सेवा कर रही है। लेकिन चूंकि हैप्पिएस्ट माइंड ने यह संकेत नहीं दिया कि कंपनी क्या करती है इसलिए सूता ने द माइंडफुल आईटी कंपनी की टैग लाइन बना दी। इसका मतलब यह था कि यह एक आईटी कंपनी है जो अपने लोगों, ग्राहकों और समुदाय के प्रति अपनी तरफ से सजग होगी।

डिजिटल के सहारे खेला दांव

सूता ने कहा की कंपनी ने डिजिटल पर अपना ध्यान केंद्रित किया। आज जबकि बड़ी- बड़ी आईटी कंपनियों के कामकाज का 30 से 50% हिस्सा डिजिटल में होता है तो वही हैप्पिएस्ट माइंड के लिए शत प्रतिशत कामकाज डिजिटल है। सूता का मानना है कि दुनिया में केवल चार फर्में हैं जिन्हें 100% डिजिटल कहा जा सकता है – हैप्पिएस्ट माइंड, ईपैम सिस्टम्स, एंडवा और ग्लोबेंट।

हमेशा सार्वजनिक कंपनियों को चलाना पसंद किया

सूता ने पिछले हफ्ते कहा था कि उन्होंने हमेशा सार्वजनिक कंपनियों को चलाना पसंद किया है। उन्होंने कहा कि जब कोई कंपनी सार्वजनिक हो जाती है तो कॉर्पोरेट गवर्नेंस में सुधार का दबाव होता है। उन्होंने कहा कि प्राइवेट पूंजी पर निर्भरता से कोई मदद नहीं मिलती है। वह उबर और लिफ्ट जैसी भारी उधारी लेनेवाली कंपनियों के अनुभव की ओर इशारा करते हैं।

निवेशकों को सूता के नाम पर है भरोसा

अशोक सूता के नाम पर निवेशकों को काफी ज्यादा भरोसा है। हैप्पिएस्ट माइंड की शुरुआत उन्होंने बंगलुरू में अप्रैल 2011 में की थी। अशोक सूता भारत की इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (आईटी) सर्विसेज इंडस्ट्री के जाने माने नाम हैं। सूता ने आईआईटी-रुड़की से इंजीनियरिंग की है। इन्होंने तीन बड़ी आउटसोर्सिंग कंपनियों के प्रमुख की भूमिका निभाई है। इसमें प्रमुख कंपनी विप्रो लिमिटेड है। बाकी दो पब्लिक कंपनियां हैं।

सामाजिक जिम्मेदारियों को देते हैं तवज्जो

अजीम प्रेमजी की तरह अशोक सूता भी सामाजिक जिम्मेदारियों को तवज्जो देते हैं। उनके मुताबिक शोध से पता चलता है कि समाज को कुछ देने के क्षणों में खुशी सबसे अधिक होती है। सूता कहते हैं कि हम अपनी उपलब्धियों की खुशी का इजहार अपनी टीम के सदस्य और कस्टमर के नाम पर स्कूल में गरीब बच्चों को मिड डे मील में भोजन देकर करते हैं। हमने आईपीओ के आने के वक्त तक एक मिलियन बच्चों को खाना देने का लक्ष्य निर्धारित किया था।

सूता कहते हैं कि हैप्पिएस्ट माइंड्स के लिए अगर हम पूरे भारत को आउटसोर्सिंग बाजार मानते तो हमें लगता है कि हम 150 अरब डॉलर के बाजार में होते। हालांकि हमने सिर्फ खास तकनीकों और डिजिटल बदलाव पर फोकस किया। उस लिहाज से हमें बाजार की समीक्षा करनी पड़ी और कई ऐसे सेगमेंट से हम पीछे हट गए जिसमें हम कारोबार नहीं करने वाले थे।

Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today

अशोक सूता कहते हैं कि जब कोई कंपनी सार्वजनिक (पब्लिक) हो जाती है तो कॉर्पोरेट गवर्नेंस में सुधार का दबाव होता है। उन्होंने कहा कि प्राइवेट पूंजी पर निर्भरता से कोई मदद नहीं मिलती है