मंगलवार, 5 नवंबर से महाव्रत छठ पूजा शुरू हो रहा है। 5 तारीख को नहाय खाय, 6 को खरना, 7 को डूबते सूर्य को अर्घ्य और 8 की सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। ये सूर्य भगवान और षष्ठी माता की पूजा का महापर्व है। जानिए छठ पूजा से जुड़ी खास बातें… व्रत करने वाले व्यक्ति को करीब 36 घंटों तक निर्जल रहना होता है। निर्जल रहना यानी व्रत करने वाले व्यक्ति को 36 घंटों तक पानी भी नहीं पीना होता है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, छठ माता का ये व्रत जो लोग करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस व्रत के लिए नियम भी बहुत कठोर हैं, अगर व्रत करने वाला व्यक्ति कोई गलती कर देता है, उसका व्रत खंडित हो जाता है और व्रत निष्फल हो जाता है। चार दिनों का व्रत-उत्सव है छठ पूजा छठ पूजा व्रत चार दिनों का होता है। इसका पहला दिन नहाय खाय है, जो कि 5 नवंबर को है। पहले दिन भक्त नमक का सेवन नहीं करते हैं। व्रत करने वाला व्यक्ति स्नान के बाद नए वस्त्र पहनता है। इस दिन लौकी की सब्जी और चावल बनाए जाते हैं। पूजा के बाद प्रसाद रूप में लौकी की सब्जी और चावल खाते हैं। 6 नवंबर को है खरना छठ पूजा व्रत का दूसरा दिन खरने का होता है। खरने में शाम को सूर्यास्त के बाद पीतल के बर्तन में गाय के दूध से खीर बनाते हैं। व्रत करने वाला व्यक्ति ये खीर खाता है, लेकिन खीर खाते समय अगर उसे कोई आवाज सुनाई दे जाए तो वह खीर वहीं छोड़ देता है। इसके बाद पूरे 36 घंटों का निर्जल व्रत शुरू हो जाता है। सूर्यास्त और सूर्योदय के समय देते हैं अर्घ्य तीसरे दिन यानी छठ पूजा (7 नवंबर) के दिन शाम को सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन सुबह से व्रत करने वाला व्यक्ति निराहार और निर्जल रहता है। प्रसाद में ठेकुआ बनाते हैं। शाम को सूर्य पूजा करने के बाद भी रात में व्रत करने वाला निर्जल रहता है। चौथे दिन यानी यानी सप्तमी तिथि (8 नवंबर) की सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत पूरा होता है।