देश में कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं। इसकी एक वजह यह भी है कि देश में जांच का दायरा बढ़ रहा है। कोविड-19 की जांच के लिए कई तरह के टेस्ट किए जा रहे हैं। लेकिन ज्यादातर लोग इन जांच में फर्क नहीं समझ पा रहे हैं। जैसे आरटी- पीसीआर, रैपिड एंटीजन टेस्ट और ट्रू नेट टेस्ट में क्या अंतर यह कैसे समझें। जानिए कोरोना की कौन सी जांच कब कराएं…
#1) आरटी- पीसीआर टेस्ट
क्या है : कोरोना वायरस की जांच का तरीका है। इसमें वायरस के आरएनए की जांच की जाती है। आरएनए वायरस का जेनेटिक मटीरियल है।
तरीका क्या है : नाक एवं गले के तालू से स्वैब लिया जाता है। ये टेस्ट लैब में ही किए जाते हैं।
रिजल्ट आने में कितना समय लगता है : 12 से 16 घंटे
एक्यूरेसी कितनी है : टेस्टिंग की इस पद्धति की विश्वसनीयता लगभग 60% है। कोरोना संक्रमण के बाद भी टेस्ट निगेटिव आ सकता है। मरीज को लक्षणिक रूप से भी देखा जाना जरूरी है।
#2) रैपिड एंटीजन टेस्ट (रैट)
क्या है : कोरोना संक्रमण के वायरस की जांच की जाती है।
तरीका क्या है : नाक से स्वैब लिया जाता है। वायरस में पाए जाने वाले एंटीजन का पता चलता है।
रिजल्ट आने में कितना समय लगता है : 20 मिनट
एक्यूरेसी कितनी है : अगर टेस्ट पॉजिटिव है तो इसकी विश्वसनीयता लगभग 100% है। मगर 30-40 % मामलों में यह निगेटिव रह सकता है। उस स्थिति में आरटी-पीसीआर टेस्ट किया जा सकता है।
#3) ट्रू नेट टेस्ट
क्या है : ट्रू नेट मशीन के द्वारा न्यूक्लिक एम्प्लीफाइड टेस्ट किया जाता है। अभी इस मशीन से टीबी व एचआईवी संक्रमण की जांच की जाती है। अब कोरोना का स्क्रीन टेस्ट किया जा रहा है।
तरीका क्या है : नाक या गले से स्वैब लिया जाता है। इसमें वायरस के न्यूक्लियिक मटीरियल को ब्रेक कर डीएनए और आरएनए जांचा जाता है।
रिजल्ट आने में कितना समय लगता है : तीन घंटे
एक्यूरेसी कितनी है : 60 से 70 % मरीजों में कोरोना के संक्रमण की संभावना को बताता है। निगेटिव होने पर आरटी-पीसीआर किया जा सकता है।
#4) एंटीबॉडी टेस्ट
क्या है : यह शरीर में पूर्व में हुए कोरोना वायरस के संक्रमण की जांच के लिए किया जाने वाला टेस्ट है। संक्रमित व्यक्ति का शरीर लगभग एक सप्ताह बाद लड़ने के लिए एंटीबॉडी बनाता है। 9वें दिन से 14वें दिन तक एंटीबॉडी बन जाती है।
तरीका क्या है : खून का सैंपल लेकर किया जाता है।
रिजल्ट आने में कितना समय लगता है : एक घंटा
एक्यूरेसी कितनी है : कोरोना वायरस की मौजूदगी का सीधा पता नहीं चलता। केवल एंटीबॉडी की उपस्थिति की जानकारी मिलती है। इससे यह पता चलता है कि व्यक्ति को कभी इंफेक्शन हो चुका है। संक्रमण बहुत हल्का होने पर कभी कभी एंटीबॉडी टेस्ट में नहीं पाई जाएगी।