राम मंदिर के लिए चला आंदोलन हो या इसके लिए हिंदुओं को एकजुट करने की पहल, भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) व उससे जुड़े संगठन सबसे आगे रहे हैं। लेकिन, क्या राम मंदिर के लिए पूरा श्रेय इन्हें दिया जाना सही है? क्या कांग्रेस ने इसकी खातिर कुछ नहीं किया?
राम मंदिर पर आज क्या है कांग्रेस का रुख?
सरलता, साहस, संयम, त्याग, वचनवद्धता, दीनबंधु राम नाम का सार है। राम सबमें हैं, राम सबके साथ हैं।
भगवान राम और माता सीता के संदेश और उनकी कृपा के साथ रामलला के मंदिर के भूमिपूजन का कार्यक्रम राष्ट्रीय एकता, बंधुत्व और सांस्कृतिक समागम का अवसर बने।
मेरा वक्तव्य pic.twitter.com/ZDT1U6gBnb
— Priyanka Gandhi Vadra (@priyankagandhi) August 4, 2020
आज हनुमान चालीसा पाठ कर देश – प्रदेश की खुशहाली की कामना की ….#श्रीराम_के_हनुमान_करो_कल्याण pic.twitter.com/lL1pvA8tJK
— Office Of Kamal Nath (@OfficeOfKNath) August 4, 2020
- इस समय कांग्रेस की भूमिका बेहद भ्रमित नजर आ रही है। दो ध्रुव बन गए हैं। राहुल गांधी, सोनिया गांधी, दिग्विजय सिंह, सलमान खुर्शीद समेत कई नेता भूमिपूजन के आयोजन पर सवाल उठा रहे हैं।
- वहीं, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने ट्वीट किया- भगवान राम और माता सीता के संदेश और उनकी कृपा के साथ रामलला के मंदिर के भूमिपूजन राष्ट्रीय एकता, बंधुत्व और सांस्कृतिक समागम का अवसर बनेगा।
- मध्यप्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भगवा चोला पहनकर हनुमान चालीसा का पाठ कराया। मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी की ओर से राम मंदिर के लिए 11 चांदी की ईंटें भेंट करने का ऐलान भी कर दिया।
क्या है कांग्रेस के भाजपा-संघ पर आरोप?
- कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने राम मंदिर ट्रस्ट पर निशाना साधा और कांग्रेस नेतृत्व को भूमिपूजन कार्यक्रम में न बुलाने को लेकर कहा कि यह कार्यक्रम पूरी तरह से भाजपा-संघ का आयोजन हो गया है।
- खुर्शीद ने कहा कि किसी एक नेता को नहीं, बल्कि इस कार्यक्रम में तो राजनीतिक स्पेक्ट्रम के सभी नेताओं को बुलाया जाना चाहिए। ट्रस्ट के पदाधिकारी मोदी सरकार के करीबी हैं और उनके कहने पर ही काम हो रहा है।
- कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह ने कहा कि यह एक जनआंदोलन था। अब मंदिर साकार हो रहा है तो उसमें राजनीति क्यों लाई जा रही है? आंदोलन तो संघ के बनने से पहले से चल रहा था।
क्या अहमियत है कांग्रेस के लिए भगवान राम की?
- बात शुरू होती है महात्मा गांधी से। उनका और भगवान राम का गहरा नाता था। उन्होंने अक्सर कहा कि मुझे ताकत भगवान राम के नाम से मिलती है। यह मुझे संकट के क्षणों से उबारती है। नई ऊर्जा देती है।
- न केवल एक सच्चे रामभक्त की तरह महात्मा गांधी ने पूरे जीवन में राम नाम का जाप किया, बल्कि अपने जीवन में भी सरलता, सादगी और आत्म-समर्पण को अपनाया।
- भगवान श्रीराम का ऐसा ही प्रभाव पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर भी था। उन्हें देश पर रामायण का असर पता था। उनके ही कहने पर 1985 में दूरदर्शन ने रामानंद सागर के रामायण का प्रसारण किया।
- 1986 में उन्होंने उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री बीर बहादुर सिंह को मनाया और राम जन्मभूमि मंदिर के ताले खुलवाए। तभी तो हिंदुओं को भगवान श्रीराम के दर्शन का अवसर मिला।
- 1989 में चुनावी भाषणों में वे अक्सर देश में रामराज्य लाने का वादा करते हुए शुरुआत करते। इतना ही नहीं, राजीव गांधी के काम भी भगवान राम और जन्मभूमि के प्रति उनका प्रेम दिखाते हैं।
- नवंबर 1989 में उन्होंने विश्व हिंदू परिषद को राम मंदिर के शिलान्यास की अनुमति दी। तब तत्कालीन गृह मंत्री बूटा सिंह को भी शिलान्यास में भाग लेने के लिए भेजा था।
- चेन्नई में अपनी आखिरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब राजीव गांधी से राम मंदिर पर प्रश्न पूछा गया था तो उन्होंने कहा था कि इस पर आम राय बनाने की काेशिशें जारी हैं। अयोध्या में ही राम जन्मभूमि मंदिर बनेगा।
- यदि 1989 में राजीव गांधी की सरकार बनती तो शायद राम मंदिर के लिए प्रयास भी तेज हो गए होते। भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी तक इस बात का दावा करते दिखते हैं।
राजीव गांधी के बाद क्या कांग्रेस ने राम का साथ छोड़ दिया?
- ऐसा कहना सही नहीं होगा। उनके बाद पीवी नरसिम्हा राव ने भी राम जन्मभूमि मंदिर के प्रति अपनी तैयारी दिखाई थी। केंद्र में उनकी ही सरकार थी, जब 6 दिसंबर, 1992 में बाबरी मस्जिद गिरा दी गई।
- हालांकि, इसके कुछ ही दिन बाद यानी जनवरी 1993 में राव सरकार विवादित जमीन के अधिग्रहण के लिए एक अध्यादेश लेकर आई थी। इस अध्यादेश को 7 जनवरी 1993 को उस समय के राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा ने मंजूरी दी थी।
- राष्ट्रपति से मंजूरी के बाद तत्कालीन गृहमंत्री एसबी चव्हाण ने इस बिल को मंजूरी के लिए लोकसभा में रखा। पास होने के बाद इसे अयोध्या एक्ट के नाम से जाना गया।
- नरसिम्हा राव सरकार ने 2.77 एकड़ विवादित जमीन के साथ चारों तरफ 60.70 एकड़ जमीन को कब्जे में लिया। उस समय योजना अयोध्या में राम मंदिर, एक मस्जिद, लाइब्रेरी, म्यूजियम और अन्य सुविधाओं के निर्माण की थी।
- हालांकि, बीजेपी ने राव सरकार के कदम का विरोध किया था। बीजेपी के साथ मुस्लिम संगठन भी विरोध में थे। राव सरकार ने इस मसले पर प्रेसिडेंशियल रेफरेंस का इस्तेमाल किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने राय देने से मना कर दिया था।
- सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से पूछा था कि क्या राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद के विवादित जगह पर कोई हिंदू मंदिर या कोई हिंदू ढांचा था। 5 जजों की बेंच ने इन सवालों पर विचार किया था लेकिन कोई जवाब नहीं दिया था।
… नरसिम्हा राव के बाद तो जैसे राम का नाम ही कांग्रेस के लिए फोबिया हो गया?
- राव सरकार के जाने के बाद कांग्रेस ने राम मंदिर के मुद्दे को छोड़ दिया। भाजपा ने इसे सीने से लगाए रखा। कांग्रेस में धीरे-धीरे राम, रामायण और रामराज्य को लेकर ही फोबिया विकसित हो गया।
- 2009 में यूपीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामे में भगवान श्रीराम के अस्तित्व पर ही सवाल उठा दिए। लाखों हिंदुओं की भावनाओं को इससे धक्का लगा। कांग्रेस को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ा।
- इसके बाद तो जैसे कांग्रेस नेताओं ने राम मंदिर के मसले पर बोलना ही बंद कर दिया। जो भी राम का नाम लेता, उसे कांग्रेस नेता संघी, सांप्रदायिक, हिंदुत्व एजेंट कहने लगे।
- 1989 में उत्तरप्रदेश में कांग्रेस को हार मिली और उसके बाद वह हारती चली गई। मुस्लिम भी बाबरी ढांचे के गिरने के बाद उससे दूर होकर सपा जैसे क्षेत्रीय दलों के करीब होते गए।
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