चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में ऐसे सूत्र बताए हैं, जिनमें अपनाने से हमारी कई समस्याएं दूर हो सकती हैं। इन नीतियों को जीवन में उतार लेने से सफलता और मान-सम्मान मिल सकता है। चाणक्य नीति शास्त्र के छठे अध्याय के दसवें श्लोक में लिखा है कि-
राजा राष्ट्रकृतं पापं राज्ञ: पापं पुरोहित:।
भर्ता च स्त्रीकृतं पापं शिष्यपापं गुरुस्तथा।।
इस श्लोक में चाणक्य कहते हैं कि अगर किसी राज्य या देश की जनता कोई गलत काम करती है तो उसका फल शासन को या उस देश के राजा को मिलता है। इसीलिए राजा या शासन की जिम्मेदारी होती है कि प्रजा या जनता का पूरा ध्यान रखें।
राजा के गलत कामों का दोष राजगुरु को
अगर किसी देश का राजा कोई गलत काम करता है तो उसका दोष राजगुरु को लगता है। राजगुरु का कर्तव्य है कि वह राजा को धर्म के अनुसार काम करने के प्रेरित करे और बुरे कामों से बचाए।
वैवाहिक जीवन में एक साथी के गलत काम की सजा दूसरे को
वैवाहिक जीवन में पति या पत्नी दोनों को एक-दूसरे के अच्छे-बुरे कामों का फल मिलता है। अगर पति को बुरा काम करता है तो उसकी वजह से पत्नी को भी परेशानियां होती हैं। इसी तरह पत्नी की वजह से पति को समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसीलिए पति-पत्नी को एक-दूसरे का अच्छा सलाहकार होना चाहिए। जीवन साथी को गलत काम करने से रोकना चाहिए।
शिष्य की गलती के लिए गुरु होता है जिम्मेदार
चाणक्य ने कहते हैं कि गुरु ही शिष्य के व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं। अगर कोई शिष्य गलत काम कर रहा है तो ये गुरु दायित्व है कि वह उसे ऐसा करने से रोके और सही काम करने के लिए प्रेरित करें। अगर गुरु ये करने में असफल होते हैं तो शिष्य के गलत कामों का दोष गुरु को ही लगता है।