शुक्रवार को एयर इंडिया एक्सप्रेस का विमान कोझीकोड़ एयरपोर्ट पर लैंडिंग के वक्त फिसल गया। हादसे के वक्त विमान पर 191 लोग सवार थे। हादसे में 14 लोगों की जान गई है। विमान दुबई से आ रहा था और रनवे पर लैंडिंग करते हुए फिसल गया। इससे विमान के 2 टुकड़े हो गए। गनीमत रही कि सामने का हिस्सा खाई में गिरने से बच गया। अभी मौके पर रेस्क्यू ऑपरेशन जारी है।
ये इत्तफाक ही है कि 10 साल पहले यानी 22 मई 2010 में ठीक इसी तरह का हादसा मंगलौर में हुआ था। तब एयर इंडिया की फ्लाइट 812 दुबई से मंगलौर आई थी। यह फ्लाइट भी लैंडिंग के वक्त रनवे से फिसल गई थी और एक पहाड़ी में गिर गई थी। उस हादसे में 6 क्रू मेंबर समेत 158 यात्रियों की मौत हो गई थी।
2010 में मंगलौर में हुए हादसे के बाद विमान में आग लग गई थी। इसके चलते ज्यादा लोगों की जान गई थी। इस बार कोझीकोड़ में हुए हादसे के बाद आग नहीं लगी। इसलिए नुकसान भी कम हुआ है।
लोगों के सवाल, पहले के हादसों से सीख क्यों नहीं ली
विमान के जानकार विशेषज्ञों ने इस हादसे के बाद सवाल खड़ा करना शुरू कर दिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि मंगलौर हवाई अड्डा एक टेबलटॉप एयरपोर्ट है। उस वक्त हादसे के बाद इस तरह के टेबलटॉप एयरपोर्ट को सुरक्षित बनाने की बात हुई थी। लेकिन, कोझिकोड़ हादसे को देखकर ऐसा लग रहा है कि कोई सीख नहीं ली गई है। कोझिकोड़ भी टेबलटॉप एयरपोर्ट है।
विशेषज्ञों का कहना है कि टेबलटॉप एयरपोर्ट पर लैंडिंग के लिए पायलट को विशेष तरह की ट्रेनिंग दी जाती है। ऐसे एयरपोर्ट पर लैंडिंग कराने वाले पायलटों की संख्या कम ही होती है।
क्या होता है टेबलटॉप रनवे?
टेबलटॉप रनवे आमतौर पर पहाड़ के ऊपर होता है। इसमें ज्यादातर एयरपोर्ट के अगल-बगल खाई होती है। यहां विमानों की लैंडिंग करना बेहद कठिन होता है। लैंडिंग और उड़ान दोनों के दौरान पायलट को खासतौर पर सावधानी बरतनी होती है।
देश में तीन ऐसे एयरपोर्ट हैं, जो बेहद ऊंचाई पर स्थित हैं और इन्हें टेबलटॉप रनवे कहा जाता है। इनमें एक केरल के मलाप्पुरम में स्थित कोझिकोड़ इंटरनेशनल एयरपोर्ट है। यहीं पर शुक्रवार को हादसा हुआ। दूसरा एयरपोर्ट कर्नाटक के मंगलोर में है जहां 2010 में हादसा हुआ था। तीसरा एयरपोर्ट मिजोरम में है।
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